बुधवार, 17 दिसंबर 2025

लॉकडाउन




             लॉकडाउन 


                14 मार्च 2020 को मैं प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुई और 22 मार्च 2020 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने संपूर्ण लॉकडाउन घोषित कर दिया ।कोरोना के कारण यह अजीब सी मुसीबत आ गयी थी। घर के चहारदीवारी में सब कैद हो गए। कहाँ में उत्साह से लरबेज थी कि पंद्रह दिन में यहाँ का काम समेट कर एक अप्रैल तक भाई के पास चली जाऊँगी , लेकिन लॉक डाउन के बाद तो ऐसा लगने लगा था कि समय ठहर सा गया है। इधर-उधर के बहुत सारे कार्य करती, पढ़ती- लिखती; फिर भी समय व्यतीत नहीं हो रहा था, या यूँ कह लीजिए कि पिछले 35 वर्षों से जो कॉलेज जाने की दिनचर्या थी उसे भूल नहीं पा रही थी । अकेलेपन से ऊब कर थोड़ा सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गई ।अब हर दिन कुछ नया लिखना पोस्ट करना और लोगों द्वारा लाइक करना, कमेंट करना अच्छा लगने लगा था। मेरा ज्यादा समय अब सोशल मीडिया पर व्यतीत हो जाता था। पता ही नहीं चलता था समय का।परिवार,,सहेलियाँ ,रिश्तेदारों की खबर सब कुछ देख, पढ़कर अच्छा लगता था । किसी का जन्मदिन तो किसी की शादी की सालगिरह सबको आशीर्वाद, बधाई देकर असीम लगाव महसूस कर रही थी । जाने पहचाने के साथ-साथ कुछ अनजाने लोगों से भी जुड़ने लगी। बहुत कुछ नया पढ़ने, देखने लगी। एक दिन किसी की प्रोफाइल फोटो में बहुत ही खूबसूरत पेंटिंग लगी थी, मेरी पसंदीदा गुलाबी फूल।उन फूलों को देख कर मन वहीं ठहर सा गया। उस कलाकृति को बहुत देर तक निहारती रही । बहुत सुकून और असीम शांति महसूस कर रही थी उसे देखकर ।तत्पश्चात मैंने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया तथा उसने भी मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया ।मैंने उसकी पेटिंग के लिए दो पंक्तियाँ लिख दी । 
       मैंने जब उसकी प्रोफाइल देखी तो पता चला वह रिटायर्ड सर्जन हैं। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ सर्जन और इतनी खूबसूरत पेंटिंग ।मैंने उनके बारे में नेट पर सर्च किया तो पता चला कि वह अमेरिका से रिटायर्ड होने के पश्चात भारत आकर केरल के किसी चैरिटी अस्पताल में निःशुल्क सेवा दे रहे हैं ।मेरा मन उनके बारे में सोचने पर विवश हो गया। पेंटिंग देख कर ही समझ में आ रहा था कि इनमें मानवता कूट- कूट कर भरी है ।अब हर दो दिन में एक नई पेंटिंग देखने को मिलने लगी। एक दिन उन्होंने अपनी प्रोफाइल अपडेट की तो उस पेंटिंग के नीचे फोन नंबर भी लिखा था। मैंने नंबर मोबाइल में सेव किया तो डीपी में भी वही खूबसूरत गुलाबी फूलों वाली पेंटिंग लगी थी ।मैंने हाय लिख कर मैसेज भेज दिया ।उसने भी रिप्लाई किया --हू आर यू? 
मैंने अपना पूरा परिचय दिया तो उसने रिप्लाई किया आपको कैसे भूल सकता हूँ आप हमारी पेंटिंग के लिए कमेंट के रूप में अच्छी- अच्छी पंक्तियाँ लिखती हैं जिसे पढ़कर ऐसा लगता है कि मेरी पेंटिंग पूरी हो गई नहीं तो अधूरी थी ।
 जी धन्यवाद....।

 अब मुझे एक नया काम मिल गया था हर दो दिन में एक नई पेंटिंग आती और मैं उस पर चार पंक्तियाँ लिखकर मैसेज भी कर देती । एक दिन बहुत ही सुंदर पेंटिंग थी । खिला-खिला सा आसमा समुद्र का किनारा , किनारे पर समुद्र की लहरों को निहारता हुआ एक अकेला आदमी बैठा था । मैंने उस पेंटिंग के लिए लिखा--- 
अकेले बैठे देखकर 
लहरें यह कह रही हैं  
तू अकेला नहीं है
मैं भी तेरे साथ हूँ
 जरा हाथ तो दो
 मैं भी तुम्हें थाम लूँ।

        उस पेंटिंग को देखकर मुझे मेरी जिंदगी का अकेलापन याद आ गया था। पापा की अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु के के बाद माँ की बीमारी , छोटे भाई की जिम्मेदारी संभालते- संभालते शादी की उम्र कब निकल गई पता ही नहीं चला । जिम्मेदारियाँ भी इतनी थी कि शादी का कभी ख्याल भी नहीं आया। नौकरी और घर के बीच ऐसी उलझी की प्यार- मोहब्बत की तरफ ध्यान ही नहीं गया। माँ के जाने के बाद मैंने अपने बारे में सोचना शुरू किया तो कोई मन का मिला भी नहीं ।

       मैसेज पढ़कर उधर से रिप्लाई आया बहुत अच्छा लिखती हैं आप । पंक्तियाँ पढ़कर मैं तो बेहोश होते- होते बचा ।
मैंने ऐसा तो कुछ भी नहीं लिखा था....... मैंने तो ऐसे ही अपना अकेलापन याद कर लिख दिया था मन के भावों को ।
 अरे इस उम्र में तो कोई भी पढ़ कर बेहोश हो जाएगा ।
ऐसे डॉक्टर साहब..... आपकी उम्र क्या है?
 मैडम जी मुझे रिटायर्ड होकर दस वर्ष हो चुके हैं ।
वैसे आपकी उम्र क्या है?
क्या आपको पता है - औरत से उसकी उम्र और आदमी से उसकी आमदनी नहीं पूछनी चाहिए?
 मुझे पूछना तो नहीं चाहिए फिर भी ....।
अरे! ऐसी कोई बात नहीं है। हम चाहे कितना भी छुपा लें, पर उम्र अपनी उपस्थिति तो दर्ज करा ही देती है। वैसे अभी मैं इसी महीने 14 मार्च को 2021 को कॉलेज से प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुई हूँ।
 अच्छा, तो आप भी डॉक्टर हैं....... ।
जी ,पर सर्जन नहीं हूँ....।
                 मैसेज से कब फोन पर घंटों बात करने लगे पता ही नहीं चला कि एक दूसरे के पेंटिंग और लेखन की प्रशंसा करते- करते महीनों निकल गए ।अब मुझे लॉकडाउन और अकेलापन नहीं बल्कि उनसे बात करने की बेचैनी सताने लगी ।
कभी-कभी मुझे हिचकिचाहट भी होती थी रोज क्या बात करना है और अपने आप से संकल्प भी करती कि आज बात नहीं करूँगी तभी कोई बहुत सुंदर पेंटिंग भेज देते तो मैं फोन करने से अपने आप को रोक नहीं पाती और उनसे कहती कि आप इतनी खूबसूरत पेंटिंग बनाते हैं कि मैं प्रशंसा किए बिना रह नहीं पाती हूँ।
कोई बात नहीं ...., इसमें इतनी सोचने वाली बात क्या है ?मैं ठहरा रिटायर व्यक्ति मेरे पास समय ही समय है आप जब चाहे फोन कर सकती हैं। जी मैं भी रिटायर्ड हूँ तभी तो समय दे पाती हूँ अपने लेखन और आपको भी।
 उन्होंने हंसते हुए कहा जब दोनों रिटायर्ड हैं तो तो सोचने की कोई बात नहीं है समय ही समय है हमारे पास जब मन करे तब बात कर लेंगे क्यों कैसी लगी मेरी बात .. . ?
जी बात तो ठीक कह रहे हैं आप ....फिर भी हर दिन बात करना आवश्यक तो नहीं है न ?क्या है न अब जिस दिन बात नहीं होती बड़ा खालीपन महसूस होता है ।वैसे भी हम एक दूसरे के कला के प्रशंसक है इसलिए बात करते हैं आपको मेरी कला पसंद आती है और मुझे आपकी । इसी बहाने मुझे कुछ अच्छा पढ़ने को भी मिल जाता है ।
फिर भी डॉक्टर साहब हर दिन बात करना क्यों आवश्यक हो गया है ?
क्यों आपको मुझसे बात करना अच्छा नहीं लगता .....?
अच्छा लगता है तभी तो इतना सोचती हूँ।
 देखिए हमारा प्रेमी - प्रेमिका वाला रिश्ता तो है नहीं ,हम अच्छे दोस्त हैं इसलिए बातें करते हैं। मुझे नहीं लगता कि बात करने में कोई बुराई है । यदि आप बात नहीं करना चाहती हैं तो कोई बात नहीं परंतु मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं है ।
अरे ! नहीं-- नहीं... ऐसी कोई बात नहीं है ।मुझे भी अच्छा लगता है आपसे बात करना ।
तब फिर इतना क्यों सोचती हैं...?
 जब मन करे बात कर सकती हैं ।मुझे भी अच्छा लगता है आपसे बात करना ,मैं भी आपके फोन का इंतजार करता हूँ ।
          उनकी बातों से मुझे तसल्ली तो मिलती लेकिन मैं संतुष्ट नहीं थी। मैं खुद नहीं समझ पा रही थी कि मुझे क्या करना चाहिए । मुझे किस चीज की तलाश है ? कभी-कभी सोचती आज बात नहीं करूँगी लेकिन अपने आप को रोक नहीं पाती । दिन भर तो किसी तरह व्यतीत कर लेती लेकिन रात होते-होते मैं फोन कर ही लेती और यदि मैं एक दिन फोन ना करूँ तो दूसरे दिन शाम तक उनका फोन आ जाता ।
नमस्ते जी...। क्या बात है दो दिन से न फोन न मैसेज न कोई बात.....?
वैसी कोई बात नहीं है डॉक्टर साहब.... बस तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए ....
अब कैसी है तबीयत .....।
जी पहले से ठीक हूँ । उनका इतनी आत्मीयता और मासूमियत से पूछना मुझे अंदर तक आह्लादित कर देता ।डॉक्टर तो वो थे ही ,क्या हुआ ?क्या प्रॉब्लम है ? मैं दवा का नाम मैसेज कर देता हूँ ले लीजिएगा ।फिर दूसरे दिन भी फोन करके तबीयत के बारे में पूछ लेते।
 उम्मीद करता हूँ आप पहले से ठीक होंगी ।
जी अब पहले से ठीक हूँ।
 बस आप को फोन करके परेशान करती रहती हूँ ।
इसमें परेशानी की क्या बात है बल्कि मुझे खुशी है कि मुझे ऑनलाइन भी एक पेसेंट मिल गई है एक डॉक्टर को और क्या चाहिए । बात करते रहिए , दवा लेते रहिए जल्द ही ठीक हो जाएंगी ।
 अब तो आप से बात करने की आदत हो गई है जिस दिन बात नहीं करती हूँ बहुत अधूरा- अधूरा सा लगता है ।
मुझे भी ऐसा ही लगता है । सेम हीयर.....।
 आप मुझसे बात क्यों करते हैं ?
क्योंकि आप दिल की बहुत साफ हैं, बहुत नेक दिल हैं और ऐसे लोग मेरे दिल के बहुत करीब होते हैं उनमें से एक आप भी हैं ।
थैंक यू .....।
आप मेरे दिल के बहुत करीब है, इंग्लिश में एक शब्द है न... डार्लिंग.... बस इससे ज्यादा मैं नहीं बता सकता हूँ। ओके .. टाटा.. बाय -बाय ..कहकर फोन रख दिए ।
             मैं खुशी से झूम उठी। कोई इस उम्र में भी ऐसी बातें करता है क्या ?वह भी एक ऐसी औरत से जिससे कभी किसी ने इस तरह की बात नहीं की थी । उनकी बात सुनकर मैं अंदर तक सिहर गई ।अब उनके मैसेज और फोन का हर वक्त इंतजार रहता तथा उनके लिए बेचैन रहने लगी पता नहीं कैसे भूख, -प्यास ,नींद सब गायब ।जो कुछ भी मेरे साथ हो रहा था वह सब मेरी समझ से परे था ।ऐसी बातें में किताबों में पढ़ी थी और कहानियों में लिखती भी थी लेकिन इस तरह की बेचैनी किसी के लिए मैं पहली बार महसूस कर रही थी । मैं सोचती क्या सच में मुझे उनसे प्यार हो गया है .......? तत्पश्चात मन खुद से ही तर्क- वितर्क करता नहीं, नहीं, इस उम्र में ऐसा नहीं हो सकता। हम दोनों उम्र के इस पड़ाव पर हैं जहाँ न कुछ पाने की चाहत है न कुछ खोने की। एक दिन बेचैनी में मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी-----
 ना तुझे खोना चाहती हूँ
न तुझे पाने की ख्वाहिश है।
 बस तेरी खूबसूरत यादों को 
दिल में सजोने की ख्वाहिश है।
 हूँ मैं बेचैन जितना तेरे लिए 
तुझे भी बेचैन करने की ख्वाहिश है ।
दिल का हर राज तुझे बताकर
तेरे दिल में ठौर पाने की ख्वाहिश है ।
तेरे रंग में रंगकर, झूमू ,नाचूँ,गाऊँ
तुझे अपने रंग में डूबोने की ख्वाहिश है ।
अपनी सारी हसरतों को तेरे रस में घोलकर
जाम तेरे नाम पी जाने की ख्वाहिश है।
जी सकूँ जिंदगी के रंग कुछ पल तेरे साथ 
आज बेखूदी में डूब जाने की ख्वाहिश है ।
तुझ पर कोई नयी नज्म लिखकर 
तेरे साथ गुनगुनाने की ख्वाहिश है ।
                 तत्पश्चात उनको पोस्ट कर दिया ।
उनका रिप्लाई आया बहुत अच्छा लिखती हैं आप । मैंने फोन किया तो कहने लगे -- मुझे लगता है अब आप आई लव यू बोल सकती हैं इसे बोलने में कोई बुराई नहीं है सुन रही है न........।
मैं निरूत्तर, नि:स्पंद,नि:शब्द होकर सुन रही थी।
 यह खामोशी कैसी ?
जी......।
 कुछ तो बोलिए .......।
आपको और समय चाहिए ,ले लीजिए ,लेकिन खुश रहिए। मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ। ओके; आप ठीक है ना ......?
जी .....।
ओके, टाटा.... बाय.....।
            उन्होंने दूसरे दिन एक मैसेज भेजा जिसमें लिखा था "शब्दों की ताकत को कम मत आकिएँ साहब क्योंकि छोटी सी हाँ और छोटी सी ना पूरी जिंदगी बदल देता है"। मैसेज पढ़ कर रिप्लाई कर दिया "हाँ" ।फिर भी पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा था। मन बहुत उदास था। अजीब सी बेचैनी में गुमसुम रहने लगी । ऐसा लगता कि मैं भीतर से टूटती बिखरती जा रही हूँ। अपने आप को बहुत समेटने की कोशिश करती लेकिन समझ नहीं पा रही थी ।अब हर दिन हम फोन कर घंटों बातें करते; मुझे बहुत समझाते बात करने में कोई बुराई नहीं है और यदि आप बिना बात किए खुश रह सकती हैं तो बात मत करिए और यदि बात करके खुश रहती हो तो खुश रहिए ।
न तो उन्होंने कभी खुलकर कहा तुमसे प्यार करते हैं न मैंने ही कभी अपना प्यार जाहिर किया, लेकिन दोनों एक दूसरे के मन के भाव को पढ़ते ,समझते , महसूसते ,अनकहे, अंजाने से स्नेह की डोर में मजबूती से बंधते जा रहे थे । कभी-कभी मैं अपनी बेचैनियाँ उनसे कहती तो यही कहते कि जितना आप बेचैन होती है उतना तो मैं नहीं होता । शायद उम्र का असर है लेकिन मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ और उसे स्वीकार भी करता हूँ।
 उनका इस तरह से बातें करना मुझे और भी बेचैन कर देता ।जो कुछ भी मेरे साथ हो रहा था और जिन अनुभूतियों से मैं गुजर रही थी सब कुछ मेरी समझ से परे थे ।अब मैं यह महसूस करने लगी थी कि मैं उन्हें बहुत चाहने लगी हूँ । हर समय उनका ख्याल, उनकी बातें मुझे रोमांचित और आह्लादित करती और मैं मन ही मन गुनगुनाती--
                       दर्पण मुझे अब भाने लगा है ।
                     मेरी रूह में तु मुस्कुराने लगा है ।
                                      दर्शन ,अध्यात्म,राम ,कृष्ण,गुरुनानक ,बुद्ध, साहित्य ,इतिहास जाने कहाँ -कहाँ की कितनी बातें करते रहते और मैं उन्हें खामोशी से सुनते हुए वह जो नहीं कहते उसे भी सुनने की कोशिश करती । मेरी खामोशी को तोड़ने के लिए बीच-बीच में मजेदार चुटकुले सुनाते फिर हम खिलाकर हंस देते ।हमलोगों को बात करते हुए लगभग सात महीने हो गए थे। एक दिन उन्होने हमसे कहा - यू लव मी 
मैंने कहा हाँ...
आप मुझसे प्यार करती हैं?
 हाँ ....
बट 'आई लाइक यू' और यही सच है। मैं आपको पसंद करता हूँ ,पसंद नहीं खूब पसंद करता हूँ। उसके आगे स्टार और फाइव स्टार भी लगा दीजिए और कुछ नहीं कहना यही सच है । जितनी जल्दी आप इस बात को समझ जाएंगी उतना ही हम दोनों के लिए अच्छा रहेगा ।
 मैंने भी नम आंखों और रूधे गले से 'आई लाइक यू' कह दिया लेकिन मेरे सब्र का बांध टूट गया ।मैं फूट-फूटकर खूब रोई जब तक कि मेरी आँखों के आँसू सूख नहीं गए ।
   दूसरे दिन मैंने उनसे कहा व्यक्ति जिसे पसंद करता है उसे ही तो प्रेम करता है । जवाब में उन्होंने प्रेम और पसंद पर बुध्द का लंबा-चौड़ा उपदेश दे दिया।
 लेकिन मैं आपकी बातों से सहमत नहीं हो पा रही हूँ।
 कहने लगे आप मुझे कंफ्यूज कर रही हैं अपनी बातों से ।
मैं भी तो आपकी बातों से उलझन में पड़ जाती हूँ।
 मैंने ऐसा क्या कर दिया ?
आप स्वयं सोच कर देखिए।
 कभी कहते हैं कि मुझे 'आई लव यू, बोल देना चाहिए और खुद कहते हैं आई लाइक यू।
 आप इन सब बातों को इतना सोचती हैं इसलिए उलझती जाती हैं , इतना सोचने की जरूरत नहीं है खुश रहने की कोशिश कीजिए ।
मैं आपको बहुत खुश देखना चाहता हूँ।
 कोशिश तो करती हूँ खुश रहने की लेकिन इस उम्र में इन सब बातों के साथ मन बहुत बेचैन रहता है।
 अपने आप को संभालिए सीमा जी आप अकेले रहती हैं। आप की देखभाल करने वाला वहाँ कोई नहीं है ।
 जी मैं ठीक हूँ आप अपना ख्याल रखिएगा ।
मैं बिल्कुल ठीक हूँ। 
   मैं तो बेटे बहू के साथ रहता हूँ दोनों खूब अच्छे हैं , खूब मेरा ख्याल रखते हैं। मेरे तो साठ के बाद वाले ठाठ हैं.....। आप भी अपने भाई के पास चली जाइए , बच्चों के साथ आपको भी अच्छा लगेगा ।
हाँ ..... सोच तो रही हूँ क्योंकि अब कोरोना भी थोड़ा कम हो गया है । जाना तो पड़ेगा क्योंकि भाई के सिवा तो मेरा कोई है भी नहीं।
" ऐसा मत कहिए ; सीमा जी.. "मैं हूँ ना" ......मैं आपको अपनों में गिनता हूँ। आप को स्वीकार नहीं तो कोई बात नहीं।
 स्वीकार तो है, लेकिन आप तो दूर देश बैठे हैं। आप तक तो पहुँचना भी मुश्किल है।
 लेकिन मैं तो आपको हमेशा अपने पास महसूस करता हूँ ....।
 वह तो मुझे मुझे भी हमेशा महसूस होता है कि आप यहीं आस-पास हैं मेरे ।
फिर क्यों इतना परेशान रहती हैं....?
ठीक है बाबा..... अब नहीं परेशान होंऊँगी। खुश.......।
हाँ ;ये हुई न बात ।गुड...।
ओके, टाटा... बाय ....बाय...।
उनसे बात करते - करते समय का कुछ पता ही नहीं चला। अक्टूबर 2020 में मैं भी भाई के पास चली आई। बच्चों के साथ इनके प्यार के खूबसूरत एहसास से मेरी जिंदगी खुशियों से भर गई थी ।मैं सोच रही थी कि मेरी जिंदगी का इतना अच्छा पल अभी तक कहाँ था ?जीवन के अंतिम पड़ाव में एक ऐसा साथी मिला है जो मुझे चाहता है ,मेरी परवाह करता है,मेरी खुशियों में खुश होता है ।अब मैं इन खुशियों के पल को जी भर कर जीना चाहती थी , एक बार उनसे मिलना चाहती थी, उन्हें जी भर कर देखना चाहती थी ,उनके स्पर्श को महसूस करना चाहती थी, परंतु अपने चाहने से तो कुछ नहीं होता , होता तो वही है जो ईश्वर को मंजूर होता है ।
    कोरोना की दूसरी लहर ने मुझे भी अपनी चपेट में ले लिया ।सिर्फ दो दिन के बुखार ने मुझे आईसीयू तक पहुँचा दिया । अस्पताल जाने से पहले बस इनको इतना ही बता पायी थी कि मेरी कोरोना की रिपोर्ट पाॅजटिव आई है, अस्पताल जा रही हूँ शायद कुछ दिन बात न कर पाऊँ ...।
ओके .. टेक केयर .....।मौका लगेगा तो फोन करिएगा....।आपके फोन का इंतजार करूँगा....।
जी जरूर.....।
 चार दिन तक बेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत से जूझती रही और प्रार्थना करती रही कि प्रभु मुझे उनके लिए ठीक कर दो, मैं कुछ पल उनके साथ जीना चाहती हूँ, लेकिन मेरी प्रार्थना बेअसर हो गई 29 अप्रैल 2021 की सुबह मेरी आत्मा इस शरीर के खोल से मुक्त हो गई । परंतु मेरी आत्मा इनके लिए छटपटाते रही, कैसे होंगे....? क्या कर रहे होंगे....? मोबाइल में मेरा हाल जानने लगातार मैसेज भेज रहें हैं, लेकिन मैं मैसेज पढ़ने में अपने आप को असमर्थ पा रही हूँ। मेरी मृत्यु को दो दिन हो गये। मेरी आत्मा मोबाइल के आस-पास ही बेचैन घूम रही है। तीसरे दिन उनका फोन आता है ,भाई ने हैलो .....कहा ,तब तक फोन कट गया । पुनः मोबाइल की घंटी बजती है ।हैलो.... सीमा जी से बात हो सकती है क्या...?
आप कौन....?
भाई फफक पड़ा... शायद आपको पता नहीं होगा दो दिन पूर्व ही उनका देहांत हो गया है।
ओह....! यह क्या कह रहे हैं आप.......!
 जी मैं सच कह रहा हूँ। कोरोना ने दीदी को भी नहीं बख्शा ......। हमेशा के लिए हम लोग को छोड़ कर चली गयीं ।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें.......। कह कर उन्होंने फोन रख दिया ।
मेरी आत्मा उनके पास पहुँच गई ।मैंने देखा वह फूट-फूट कर रो रहे थे । सीमा तुमने अच्छा नहीं किया, मुझे अकेला छोड़ दिया ।मैं तुम्हें बहुत चाहने लगा था, प्यार भी करता था तुम्हें, लेकिन इस उम्र में इस जिम्मेदारी का बोझ उठा पाऊँगा कि नहीं यही सोच कर कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया ।पर मेरा यकीन मानो मैं कभी तुम्हें खोना नहीं चाहता था ।
काश .....! डॉक्टर साहब! यह बात पहले ही कह दिये होते तो शायद मैं सुकून से मर पाती। क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं....? मैं बहुत खुश हूँ कि मुझे इस उम्र में भी कोई इतना प्यार करता है । मत रोइए डॉक्टर साहब मैं यहीं आपके आस-पास ।

डॉ.अनिता सिंह 
समीक्षक/उपन्यासकार 
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
























मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

बाँके बिहारी

       मुझे कुछ पता नहीं था कहाँ,कैसे, कब जाना है । रात में अचानक नींद खुली तो मैं छटपटा कर उठ बैठी । ठीक ही तो कह रहे थे मैंने इतने वर्ष सांसारिक मोह- माया में गवाँ दिया। बगल में पतिदेव सोए थे उनको देखकर अनायास ही मुस्कुरा दी। आपने तो बहुत पहले ही मुझे सतर्क कर दिया था फिर मैं कैसे नहीं समझ सकी आपकी बात को। घड़ी देखी तो रात के तीन बज रहे थे। नींद आँखों से कोसों दूर थी। सपने में देखा दृश्य बार-बार याद आ रहा था। कोई भिखारन कह रही थी- "चलो प्रसाद लेने, यहाँ बाँके बिहारी स्वयं अपने हाथों से प्रसाद बाँटते हैं।" मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई अदृश्य शक्ति मुझे अपनी ओर खींच रही है। सांसारिक मोह-माया का बंधन टूट रहा था। घर की सारी वस्तुएँ,सारे लोग मुझे बेगाने से लग रहे थे। पूरे घर में घूमकर घर की वस्तुओं पर नजर डालते हुए नहाने चली गयी। आज नहाने के बाद मंदिर में जाने का भी मन नहीं हुआ। ऐसा महसूस हो रहा था वह परमपिता परमेश्वर तो मेरे साथ है। 
     मैंने एक बैग में अपने दो जोड़ी कपड़े, दो चादर और कुछ जरूरत का सामान रख घर से निकलने लगी तो मेरी दृष्टि मेरी लिखी किताबों पर अटक गयी। अनायास से मुँह से निकल गया बाँके बिहारी यह तो माँ सरस्वती का वरदान था फिर भी किसी ने मुझे नहीं समझा। घर के लोगों को लगता है कि मेरा काम गवाने का काम है । अब मुझे इन किताबों से मोह हो रहा था इसलिए चलते-चलते मैंने अपनी पाँच किताबें एक पेन डायरी और मेज पर रखी स्वामी रामसुखदास के गीता प्रबोधनी भी उठाकर अपने बैग में रख लिया । मोबाइल में स्टेटस लगा दिया आध्यात्मिक यात्रा का शुभारंभ । मोबाइल टेबल पर छोड़ चंद रुपए ले घर से निकल गयी। सुबह के चार बजे थे ।बहुत दूर पैदल चलने के बाद मुझे एक ऑटो वाला मिला ।भैया- रेलवे स्टेशन चलोगे? हाँ बैठ जाइए।
जब रेलवे स्टेशन पहुँची तब देखा कि एक ट्रेन प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़ी है। लोग ट्रेन से उतर रहे हैं ।स्टेशन पर काफी भीड़-भाड़ है। मैं भी रिजर्वेशन वाले डिब्बे में जाकर बैठ गयी। मुझे नहीं पता था कि मैं कहाँ जा रही हूँ । हरे कृष्णा का सुमिरन करते -करते कुछ देर में ही मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया । मेरी नींद खुली तो सुबह के दस बज रहे थे। गाड़ी बिल्कुल निर्जन, कोई व्यक्ति नहीं है । हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, आपकी माया अपरंपार है कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है ।
गाड़ी आउटर में खड़ी थी तो समझ नहीं पा रही थी कि यह कौन सा स्टेशन है। कुछ समझ नहीं पा रही थी इसलिए उसी गाड़ी में बैठी रही और गीता निकाल कर पढ़ने लगी । पढ़ते-पढ़ते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला । नींद में फिर वही स्वप्न छटपटा कर उठ बैठी । मेरे सामने की सीट पर लोग बैठे थे मैं उन्हें पहचानने की कोशिश कर रही थी तभी टीटी आ गया । 'मैडम टिकट' । टीटी का संबोधन सुनकर चेहरे पर मुस्कान फैल गई यह सोचकर कि मैंने यह सांसारिक संबोधन का चोला उतार दिया है। उसने फिर कहा मैडम कहाँ जाना है?
 मथुरा की दो टिकट दे दीजिए। 
आपके साथ और कौन है ? बाँके बिहारी है न...। कहाँ बैठे हैं? यहीं मेरे साथ। तत्पश्चात टीटी इधर -उधर देखते हुए बिना कुछ पूछे ही टिकट बना दिया। टिकट लेकर मैं सोचने लगी प्रभु यह कौन सा खेल कर रहे हैं मेरे साथ ? मुझे कुछ पता नहीं है। किसी से भी कुछ बात करने की इच्छा भी नहीं हो रही है, न भूख है, न प्यास,बस हरे कृष्णा, हरे कृष्णा के अनवरत सुमिरन में ही आनंद है । सुमिरन करते-करते पता नहीं कब पलकें बोझिल होते -होते बंद हो गयी। 
   सुबह-सुबह नींद खुली तो देखा गाड़ी मथुरा स्टेशन पर खड़ी है। मैं आह्लादित हो गयी , मेरी खुशी का पारावार नहीं था ,अचानक दोनो हाथ जुड़ गए वाह रे! बाँके बिहारी ! आखिर अपनी शरण में बुला ही लिया आपने । गाड़ी से उतर कर पैदल ही चल पड़ी, ऐसा लग रहा था जैसे पैरों में पंख लगे हैं ।बहुत दूर तक चलने के बाद में बाँके बिहारी के मंदिर पहुँच गयी ।
 अब मुझे सपने वाला दृश्य याद आने लगा तब तक वह वृद्ध भिखारिन भी दिखाई दे रही थी , जिसके चेहरे पर सौम्य निश्छलता , चाँदी से चमकते सफेद केश ही उनके उम्र को बयाँ कर रहे थे , वो मुझसे कह रही थी -"चलो प्रसाद लेने बाँके बिहारी यहॉं स्वयं देने आते हैं ।" मैंने उनसे पूछा- 'प्रसाद मिल गया अम्मा।' मेरी प्रेम और करुणा से परिपूर्ण वाणी सुनकर उनकी आँखें नम हो गयीं।कहने लगी - मैंने रखा है तुम्हारे लिए बचा कर बेटा, आओ बैठो । बहुत दूर से आ रही हो न? देखो उस गली में आगे एक नल है, जाओ हाथ- मुँह धो लो । मैं अपना बैग लेकर अम्मा के बताए नल पर पहुँच गयी। चारों तरफ गंदगी पसरी थी फिर भी मुझे गुस्सा नहीं बल्कि आनंद आ रहा था। हमेशा टाइल्स वाले बाथरूम में नहाने वाली आज मैं खुशी-खुशी नल के पानी से नहा रही थी ।नहा -धोकर आई तो अम्मा ने इशारा किया -कपड़े वहाँ सुखा दो। आओ बैठो मेरे पास कहते हुए मेरा हाथ पकड़कर अपने पास बैठाकर असीम स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहने लगी मैं कब से तेरा इंतजार कर रही थी बहुत देर कर दी आने में । हाँ अम्मा देर तो कर दी मैंने ।
अम्मा मैं बाँके बिहारी के दर्शन करके आती हूँ ।मंदिर में प्रभु की मूरत देख आँखों से अनायास ही बहुत देर तक अविरव अश्रु बहते रहे । बस मन में यही भाव आ रहे थे कि बहुत देर कर दी बाँके बिहारी यहॉं बुलाने में ।जब सारे गिले -शिकवे समाप्त हो गए तो मन शांत हो गया तब अम्मा के पास आकर बैठ गयी। उन्होंने बड़े प्रेम से मुझे अपना लिया कहने लगी कुछ चिंता मत करना परिवार और जीवन का, सब मोह- माया है ।बाँके बिहारी यहॉं तक बुलाए हैं तो वह आगे का भी रास्ता निकालेंगे, यह लो प्रसाद खा लो बिटिया और यह माला लो "ऊँ क्लीं कृष्णाय नमः " का जाप करो ,सब ठीक हो जाएगा । प्रसाद का आधा लड्डू खाते ही मन तृप्त हो गया । पूरा दिन अम्मा के साथ व्यतीत हो गया । रात मंदिर के बाहर चबुतरे पर ही सुखमय नींद आ गयी।
    प्रातः चार बजे उठकर, नहा-धोकर प्रसाद लेने के लिए लाइन में लग गयी । अरे ! यह क्या ...? यह तो टीवी सीरियल वाले श्री कृष्णा हैं, इनके हाथों से प्रसाद मिल रहा है मैं तो धन्य हो गई प्रभु । अम्मा बोली क्या कह रही हो यह मंदिर का पुजारी है। मैं अम्मा की तरफ देखकर मुस्कुरा कर देखती रही। प्रसाद रखकर जब मंदिर में दर्शन करने गयी तब मैंने पुजारी से कहा - 'बाबा मैं बाँके बिहारी की सेवा में कुछ करना चाहती हूँ ,कुछ काम हो तो बता दीजीएगा। वह मेरी तरफ आश्चर्यचकित भाव से देखकर कहने लगे- अच्छा बाँके बिहारी ने तुमको बुला ही लिया, अभी बैठो फिर बताता हूँ ।जब पूजा पाठ से निवृत हुए तब कहने लगे जहाँ प्रभु का प्रसाद बनता है वहाँ काम मिल जाएगा करना चाहोगी बिटिया ? हाँ बाबा , आपने बिटिया कहा है तो जो भी काम देंगे कर लूँगी ।तो चलो फिर मेरे साथ ।मैं उनके पीछे-पीछे चल पड़ी । वह एक छोटे से घर में ले गए जहाँ मेरा परिचय अपनी धर्म पत्नी से करवाया, जो बहुत ही कृषकाय और उम्रदराज थी। बाबा ने कहा- आज से बिटिया यही रहेगी, बाँके बिहारी ने तुम्हारी मदद के लिए भेजा है । अब अपने साथ रसोई घर में प्रसाद बनाने बिटिया को भी लेकर जाना।
     यहाँ रहते हुए तीन साल व्यतीत हो गए। मुझे कभी घर की याद नहीं आयी। मैं बाँके बिहारी में पूरी तरह से डूब चुकी थी। बाँके बिहारी का दिया काम लोगों की सेवा और साहित्य सृजन दोनों कर रही थी। हर दिन सुबह चार बजे नहा - धोकर लाइन में लग जाती प्रसाद लेने । बाबा कहते भी बिटिया तुम्हारा बनाया प्रसाद ही तो मंदिर में भोग लगाकर फिर बटता है तो क्यों वहाँ जाती हो लेने ,यहॉं प्रसाद की कोई कमी है क्या ? मैंने कहा- बाबा आप नहीं समझेंगे वहाँ बाँके बिहारी आते हैं प्रसाद बांटने ।
क्या...! तू सच कह रही है? हाँ बाबा, तभी तो रोज जाती हूँ।  
       तीन साल बाद मेरे घर वाले मुझे खोजते- खोजते यहाँ पहुँच ही गए। मैं हर दिन की तरह लाइन में खड़ी थी प्रसाद लेने के लिए, उस दिन थोड़ी देर हो गई थी इसलिए भीड़ कम थी। हर दिन प्रसाद लेकर मैं मंदिर में बाँके बिहारी के दर्शन करने जाती थी। दर्शन कर निकल ही रही थी तभी सामने खड़े बेटे ने मुझे पहचान लिया जोर से चिल्लाया मम्मी...मम्मी... और दौड़कर मेरे पास आकर बेटा- बेटी दोनों गले लग गए सब की आँखों में अविरल आँसू बह रहे थे। बेटी ने अपने आप को सम्भालते हुए कहा - 'मम्मी तुम हम लोग को छोड़कर क्यों आ गयी, कभी हमारी याद नहीं आयी?' बेटा जिसे मन बाँके बिहारी में लग जाता है उसका सांसारिक मोह- माया छूट जाता है और तुम्हारे पापा ने तो बहुत पहले ही कह दिया था मम्मी गँवाने का काम करती है मैं कमाने का। गँवाने शब्द जो है न, चुभ गया था हृदय में, मुझे लगा कि मैंने ऐसा क्या गवाँ दिया। सोचते- सोचते यही निष्कर्ष निकाल पायी कि मैं अपना जीवन व्यर्थ काम में गवाँ रही हूँ ।इस सांसारिक मोह-माया में फँसकर जहाँ मेरे कार्यों का कोई मूल्य नहीं है ।लिखना तो मेरे लिए सरस्वती का वरदान था हर कोई तो नहीं लिखता है न...; बस, मैं आ गई बाँके बिहारी की शरण में। मुझे माफ कर दीजिए, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था ; अगले महीने बिटिया की शादी है आशीर्वाद देने नहीं चलेंगी? नहीं...। मम्मी, ऐसे कैसे तुम्हारे बिना मेरी शादी हो जाएगी, तुमको चलना पड़ेगा । वह रास्ता तो मैंने बहुत पीछे छोड़ दिया है बेटा,शादी के बाद तुम दोनों यहाँ आशीर्वाद लेने आ जाना बाँके बिहारी का। तभी बेटा बोल पड़ा मम्मी तुम रहती कहाँ हो? देखना चाहोगे । तीनों ने हाँ में सिर हिलाया। पहले बाँके बिहारी का दर्शन कर लो फिर चलते हैं। मेरे रहने की जगह देखकर तीनों की आँखों में आँसू आ गए। मेरे पति कहने लगे इतने बड़े घर की मालकिन इस छोटे से कमरे में रहती है । मैंने कहा -'कल प्राण निकल जाएगा तो यह भी यही छूट जाएगा।' अरे यह देखो, तुम लोग, मैंने यहाँ रहते हुए बहुत कुछ लिखा है,अब यह मैं तुम दोनों को सौंपती हूँ ,इसे छपवा देना। यह बाँके बिहारी का काम है और माँ सरस्वती का आशीर्वाद है, मेरा नहीं है कुछ भी नहीं । उन लोगों के बहुत मिन्नतों के बाद भी मेरा मन घर लौटने को नहीं हुआ । बेटी को इतना आश्वासन ही दे पायी कि बेटा इंतजार मत करना यदि बाँके बिहारी की मर्जी रही तो आशीर्वाद देने आऊँगी । हरे कृष्णा..हरे कृष्णा...।
डॉ.अनिता सिंह 
समीक्षक/उपन्यासकार 
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)



बुधवार, 28 अगस्त 2024

कांवड़ यात्रा

    श्रावण मास आरंभ होते हैं कांवड़ियों की कांवड़ यात्रा का भी शुभारंभ हो जाता है। कांवड़ियों की शिव के प्रति अटूट भक्ति देखकर ही मन में उनके प्रति श्रद्धा का भाव आना स्वाभाविक है। शिव भक्त अपने कंधों पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए प्रसिद्ध शिवलिंग तक पहुँचते हैं। एक दिन कांवड़ियों का समूह यात्रा के दौरान विश्रांति के लिए एक वृक्ष के नीचे ठहर गए। कावड़ यात्रा के दौरान न तो कलश को नीचे रख सकते हैं और न हीं जल कलश से गिरने पाए,इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। एक कांवड़िया अपने कलश को संभालते हुए बड़ी सतर्कता और सावधानी से सबसे दूरी बनाकर बैठा ही था कि एक बूढ़ा व्यक्ति उसके पास आकर पानी पिलाने की याचना करने लगा। कांवड़िया ने जब उसे बताया कि यह जल हम शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए लेकर जा रहे हैं बाबा ,इसलिए इसमें से नहीं पिला सकते। तब बूढ़ा व्यक्ति कहने लगा कि मैं बहुत दूर से आ रहा हूँ ;मुझे बहुत प्यास लगी है और अब तो मुझसे पानी पीए बिना चला भी नहीं जा रहा है और यहाँ आस-पास कहीं पानी भी नहीं दिखायी दे रहा है; कृपा करके मुझे थोड़ा पानी पिला दीजिए, भोले बाबा आप पर कृपा करेंगे । कांवड़िया कुछ देर तक असमंजस की स्थिति में सोचता रहा फिर उसने कहा लो बाबा थोड़ा जल पी लो । वृद्ध व्यक्ति ने जल पीना आरंभ किया तो कावड़िये के कलश का पूरा जल पी गया और उसके चेहरे की तृप्ति का भाव देखकर कांवड़िया वहीं से भोले बाबा के प्रति नतमस्तक हो प्रणाम करने के लिए आँख बंद किया तब देखा है कि वह बूढ़ा व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि साक्षात भोले बाबा हैं और उसकी कावड़ यात्रा वहीं पूरी हो जाती है ।

डॉ.अनिता सिंह 
उपन्यासकार/समीक्षक 
बिलासपुर (छ.ग.)

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