रविवार, 2 दिसंबर 2018

मौत के द्वार

जिंदगी से करते हुए खींच -तान
अब आ पहुँची हूँ मौत के द्वार।
कुछ ख्वाहिसें अधूरी
कुछ गुफ़्तगु अधूरी
कहना चाहती थी उनसे कुछ अल्फाज़ ।
अब आ ----------------।
जिसका न होना भी
कराता है होने का अहसास
ठहरना चाहती थी दो पल उनके साथ ।
अब आ -----------------।
सब कुछ पीछे छूट रहा है
गहरा रिश्ता भी टूट रहा है
जो जुड़ा नहीं था वो था बहुत आगाध।
अब ------------------।
क्या खोया क्या पाया मैने
जब करने लगी हिसाब
तब भी था प्रिय तेरा ही कोमल एहसास।
अब ------------------।
चुन -चुन कर सहेज लाई हूँ
समृतियों के वंदनवार
पुनः आना तुम लेकर वही उजास।
अब ------------------।
ना गिला, ना शिकवा कोई
ढह गयी नफरत की दीवार
मेरी गलतियों को कर दो प्रभु अब तो माफ।
अब आ------------------।

डॉ. अनिता सिंह

02/12/2018

रविवार, 18 नवंबर 2018

धोखा

मैने जिसे अनुभव किया
वो अनुभूति हो तुम।
जिस गंध का आघ्राण किया
वो खुशबू हो तुम।
जिसे स्नेह भाव से स्पर्श किया
वो प्रणय हो तुम।
जिसे देख दिल हर्षित हुआ
वो प्रेम हो तुम।
जिसे आत्मीय रूप से चाहा
वो अमृत हो तुम।
सकल विश्वास जिसे सौंप दिया
वो भरोसा हो तुम।
फिर क्यों ऐसा लगता है, जीवन का
सबसे बड़ा धोखा हो तुम।

डॉ. अनिता सिंह
18/11/2018

सोमवार, 5 नवंबर 2018

झूठों की बस्ती


झूठों की इस बस्ती में
सच को यहाँ पहचाने कौन?
अपने में ही उलझे लोग
नियत किसी की जाने कौन ?
एक चेहरे पर चेहरे अनेक
सच्चा चेहरा तलाशे कौन?
अंधेर नगरी चौपट राजा
प्रतिभा को यहाँ निखारे कौन.?
सच मौन है, झूठ मुखर है
मौन की भाषा बाचे कौन?
हिमालय सा झूठ, सच सूखी नदी
सूखी नदी की धार लहराए कौन?
जब झूठ हो गया पूजनीय
तब सच जहाँ में लाए कौन?

डॉ. अनिता सिंह
05/11/2018

रविवार, 28 अक्तूबर 2018

मुक्तक

है तेरे लिए मेरी आँखों में नमी।
खल रही है दिल को आज तेरी कमी।
ख्वाब पिघलें हैं पलकों से आँसू बनकर,
दिल में तेरी यादों की बरफ है जमीं।

डॉ. अनिता सिंह
28/10/18

रविवार, 14 अक्तूबर 2018

पंचतत्व

तुम क्षिति हो
तभी तो जड़ बनकर
समा गये हो
मेरी दिल की गहराइयों में।

तुम जल हो
तभी तो डूबा गए हो
अपने प्यार के
अथाह सागर में।

तुम आग हो
तभी तो जला गए हो
अपनी पीड़ा में।

तुम आकाश हो
तभी तो फैल गए हो
मेरी जिंदगी में
ठंडी छाँव बनकर।

तुम हवा हो
तभी तो मेरी हर श्वास में
समाहित हो गये हो
संगीत बनकर।

डॉ. अनिता सिंह
14/10/18

रविवार, 7 अक्तूबर 2018

कसूर

मैने कब कहा-तुमसे कि
तुम मेरे साथ चलो।
हाँ,चाहा जरुर ........
कुछ पल बैठो मेरे साथ
तेरी उलझने सुलझा दूँ
मैं लेकर हाथों में तेरा हाथ।
मैने कब कहा तुमसे कि
तुम मेरे रिश्ते को नाम दो।
हाँ, चाहा जरुर.........
तुम आत्मीयता का रिश्ता
रखते मेरे साथ,
पर मैने तुम्हें कभी
नहीं किया मजबुर।
मैं  नहीं  जानती
तुम क्यों चले गये मुझसे दूर।
मैं आज भी नहीं समझ पायी
मेरा क्या था कसूर............।
डॉ. अनिता सिंह
07/10/2018

रविवार, 30 सितंबर 2018

वफा

कहाँ -कहाँ से अलग
कर सकोगे मुझे
हर रिश्ते में मै,
तेरा रिश्ता तलाशती हूँ।

वह तुम ही तो हो
जिसे देखने की आदी थी
मैं आज तक वही
एक चेहरा तलाशती हूँ।

जिस राह पर चले थे
चंद कदम हम साथ
मैं आज भी वही
खुशनुमा रास्ता तलाशती हूँ।

तुम्हारे शहर में रहकर
जीती हूँ मौत की तरह
चारो तरफ हैं तेरी वेवफाइयाँ
इनके बीच में भी
तेरी वफा तलाशती हूँ।

डॉ. अनिता सिंह
3o/09/2018

सोमवार, 24 सितंबर 2018

घरौंदा

तेरी यादों का घरौदा
भी क्या खूब होता है।
तुम्हें भूलना चाहूँ तो
तू हर पल करीब होता है ।
तुम्हें देख खामोशियाँ
खिलखिलाती थी मेरी ।
अब तेरी याद में
मेरी आँखों में सिर्फ.....
नीर होता है ।

डॉ. अनिता सिंह
24/9/2018

रविवार, 2 सितंबर 2018

तेरी यादों का सपना

अब तेरी यादों का सपना
मन की आँखों में हरपल तिरता है ।
अब गीत -गजल और कविता में
मन तुझको ही ढूँढता फिरता है ।

मैं तेरे बिन तनहा अकेली हूँ
अब अपनी छाया से भी डरती हूँ।
तनहा रातों में सिसक-सिसक कर
तेरी तस्वीर से बातें करती हूँ।

झूठे सपने बुन-बुन कर
अब आँखें है हार गयी।
कैसे दिल की बात कहूँ
तुम तक न दिल की आवाज गयी।

भटक रही हूँ अहसासों के
उबड़ -खाबड़ राहों में ।
अब तनहा रस्ता तकती हूँ
आकर लेलो 'प्रभु 'अपनी बाहों में ।

डॉ. अनिता सिंह
2/9/2018

सोमवार, 27 अगस्त 2018

तस्वीर

तेरी तस्वीर से नज़र
हटाने का जी नहीं करता।
आँखें थक जाती है
पर दिल नहीं भरता ।
पलकें पथ निहारती है
वक्त नहीं गुजरता ।
मैं कहती दिल की बात
पर तू नहीं सुनता।
पूँछती हूँ तेरा हाल
पर ये तस्वीर नहीं बोलता।
डॉ. अनिता सिंह
27/8/2018

रविवार, 19 अगस्त 2018

मेरे मीत

ओ मेरे मीत
अब तो मेरी आहें सुन लो।
शब्द हो गये खंजर
हृदय हो गये बंजर
अब तो उन पर उग आने दो।
करुणा बह रही आँखों में
बस टीस बची है हृदय में
अब तो राह दिखा दो ।
हुई प्रार्थना व्यर्थ
यह जीवन लगता निरर्थक
पतझण के इस मौसम में
नये कोपल खिल जाने दो।
पल -पल बीत रहा जैसे
युग -युग प्रतिपल प्रतिक्षण
मत रोको मुझे अब
अपने शरण में आने दो।
भूल भूलैया है मोह -माया
राग -विराग, आमोद -प्रमोद
अब सब कुछ तज मुझे
इस जहाँ से जाने दो।

डॉ. अनिता सिंह
19/8/2018

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

जब याद आते हो तुम......

जब याद आते हो तुम...............
दिल की धड़कने शोर करने लगती हैं।
आँखों से निर्मल सरिता बहती है।

उदासीनता के बादल घेर लेते हैं।
स्मृतियों के काँटे नश्तर से चुभने लगते हैं।

याद करती हूँ वो हर लम्हा...........
कैसे तुम मेरे इतने करीब आकर
आज मुझसे दूर चले गए।
कैसे एक खूबसूरत रिश्ते को
तुम नफरत में बदल गए ।

मेरा मन अभी भी तेरे ही प्रेम में डूबा है।
यह तो वर्फीली घाटी का वह रास्ता था
जहाँ से यदि कोई गुजरे तो
उन्हें लौटने का कोई रास्ता न था
फिर तुम क्यों और कैसे नये रास्ते खोज लिए।

डॉ. अनिता सिंह
1o/8/2018

रविवार, 5 अगस्त 2018

तलाश.....

हे प्रभु! तुम्हारी तलाश में
मैने जिंदगी गुजार दिया ।
तुम्हारे होने के अहसास ने
मुझे रोमांचित कर दिया।
तेरी ही अनुभूति में मैने
हर लमहां बिता दिया।
लेकिन तुम वैसे नहीं हो
जैसा मैने सोचा था।
तुमने मुझे अपने होने का
अहसास दिलाकर क्यों
अपने से दूर कर दिया ।

डॉ. अनिता सिंह
29/07/2018

दर्द की कहानी....

तेरे दिए जख्मों ने मेरी खुशियों को
दर्द में परिवर्तित कर दिया।
तेरे इंतजार में मेरा सुकून खो गया।
असीम दर्द देकर तू क्यों दूर हो गया।
गलत तो मैं भी नहीं थी
ये मेरे भाग्य का तकाजा था
जो तू मुझे गलत ठहरा गया ।
बना कर मित अपना
क्यों बेगाना कर गया।
कितना अच्छा होता न तुम मिलते
न दर्द की कहानी शुरू होती।

डॉ. अनिता सिंह
5/8/2018

रविवार, 22 जुलाई 2018

मेरा आनंद

मेरा आनंद तुझ पर ही निर्भर है
इसलिए विकल होती हूँ हर बार।
प्रभु अगर तुम नहीं होते तो
मेरा प्रेम था निष्फल बेकार।
तुमको ही लेकर रहती हूँ
तुम बसते हो हृदय के पार।
कितना मुग्धकारी रूप है तुम्हारा
तभी तो देखने आती हूँ तेरे द्वार।
प्रेम तुम्हारा है सब पर
फिर मुझसे ही क्यों दूर हो जाते हो हर बार।
यह तुम्हारी झिलमिल मूरत
दिखाती है कितने रूप अपार।
मेरे जीवन में प्रेम को लाने वाले
मेरे कृष्णा एक बार हो जाओ साकार।
आँखों से ओझल मत होना
रखूँ तुझको पलको में बाँध।

डॉ. अनिता सिंह
22/7/2018

रविवार, 8 जुलाई 2018

दर्शनाभिलाषी

दर्शनाभिलाषी हूँ तेरी
दर्शन तो दिया करो।
नहीं माँगती हूँ कुछ तुमसे
बस उर में अपने जगह दिया करो।
मेरी स्मृतियों में तुम रहते हो
मुझे स्मृता में रखा करो।
कभी - कभी तुम मेरे अंतर्मन की
पीड़ा को भी पढ़ लिया करो।

डॉ. अनिता सिंह
7/7/2018

रविवार, 1 जुलाई 2018

हाल न जाने..........

इस पार तो मेरी तड़प प्रभु
उस पार न जाने क्या होगा?
जब तुम आओगे मेरे सामने
उस पल का हाल न
जाने क्या होगा?
मैं भी हूँ तुम भी हो
फिर मिलन का अंजाम
न जाने क्या होगा ?
मेरी आँखों तो में आँसू होंगे
तेरी आँखों का सवाल
न जाने क्या होगा ?
मैं गले लगाने को आतुर
तेरी बाहों का व्यवहार
न जाने क्या होगा ?
इन अधरों को तेरी प्यास है
तेरी अधरों का हाल
न जाने क्या होगा ?

डॉ. अनिता सिंह
01/07/2018

रविवार, 24 जून 2018

नहीं दोष सिर्फ मेरी नज़रो

नहीं. ..दोष सिर्फ मेरी नज़रों का था
तुम्हारा भी था कुछ हमारा भी था।

न समझो हमें सिर्फ तुम यूँ गलत
तेरा मुस्कुराना इशारा भी था ।

मिला हमको जन्नत तेरी पहलू में
तेरे साथ खूबसूरत नज़ारा भी था।

क्यों करके किनारा हमसे चल दिए
ये टूटा हुआ दिल तुम्हारा भी था।

टूटकर सम्भली हूँ मुश्किलों से मैं
यह रहमत खुदा का तेरा दिल हमारा भी था।

डॉ. अनिता सिंह
24/6/ 2018

रविवार, 17 जून 2018

वफादारी न होती

मैं अब भी सोचती हूँ
आज भी हम साथ होते
अगर तेरे - मेरे दरमियाँ
वफादारी न होती।
पल्लवित -पुष्पित होता रिश्ता
झूठ -फरेब की बागवानी होती ।
अगर ------------------
न फिर तेरी यादों में आँसू होते
न तड़प और दर्द की कहानी होती।
अगर ---------------------
न याद आती तेरे मिलन की जुदाई में
न तेरी तस्वीर की निशानी होती।
अगर ----------------------
छला होता अगर तुमने मुझे औरों की तरह
धोखेबाज़ समझ कर तेरी सूरत बिसारी होती।
अगर --------------------------
छूआ भी तो तुमने मुझे इतनी ईमानदारी से
कि आज तक उसी की खुमारी होती
अगर----------------------------
जानते हो हम दोनो अपनी जगह
वफादार थे
तभी तो आज भी अश्रुओं की राहदारी होती।
अगर -----------------------------
तुमने मेरा होने का भरोसा न दिलाया होता
तो आज तेरी याद में मैं जज्बाती न होती
अगर----------------------------

डॉ. अनिता सिंह
17/6/18

रविवार, 10 जून 2018

राहत है तू

कैसे भूला दूँ तुम्हें
मेरी वर्षों की चाहत है तू।
नींद आती नहीं है मुझे
मेरी वर्षों की आदत है तू।
तेरी कमी महसूस होती है मुझे
मेरी जिंदगी में राहत है तू।

डॉ. अनिता सिंह
10/6/2018

मंगलवार, 5 जून 2018

आह!...... में


देखकर उसे यूँ तड़प गयी
एक हूक सी उठी मेरे हीय में।
ये नजरे उठी की उठी रह गयी
जब उनको देखा किसी और के आगोश में।
ये दिल जो उनका दिवाना हुआ था
टूटकर बिखर गया उसी राह में।
कर दिये विरान मेरी जिंदगी को
वो रहतें हैं सिर्फ मेरी आह! में ।

डॉ. अनिता सिंह
5/6/2018

रविवार, 27 मई 2018

अपने पास

मैं तुम्हें सौंप देना चाहती हूँ
अपने हिस्से का भी सुख।
परन्तु बचा लेती हूँ
चुपके से संताप और दुख।

तुम्हारे सभी दुखों को
उड़ा देना चाहती हूँ बनाकर पतंग।
चुरा लेना चाहती हूँ
खामोशी से सभी दुःस्वप्न।

देखना चाहती हूँ
तुम्हारे चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान ।
कराना चाहती हूँ
तुम्हारा सुखों से साक्षात्कार।

आज बिना हिचक तुमसे कह देना
चाहती हूँ दिल की बात।
जब घुटने लगती हैं मेरी साँस
तब मैं सदैव पाती हूँ तुम्हें अपने पास।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 20 मई 2018

संवाद

तुम हमसे कुछ संवाद करो
दो पल ही सही कुछ तो मीठी बात करो।

बीत रहा है युग जैसे
जीवन में कुछ राग भरो।

त्याग मौन को तुम
हमसे कुछ तकरार करो।

बहुत तड़पाया है मुझको
अब मिलनेच्छा की शुरुआत करो।

नहीं जीवन भर तो
चंद कदम तो साथ चलो।

कब तक दूर रहोगे मुझसे
अब तो मुझे अपना लो।

नहीं करूँगी कोई शिकायत
अब तो गले लगा लो।

भूल हुई है जो मुझसे
उन भूलों को अब माफ करो।

मर-मर कर जी रही हूँ हर पल
सूने जीवन में कुछ आस भरो।

पल-पल तड़प रही हूँ मैं
प्रभु! आकर मेरा उद्धार करो।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 13 मई 2018

मुलाकात

कैसे कहूँ कि तुमसे मुलाकात नहीं होती ।
हर पल मिलते हैं तुमसे
पर दिल की बात नहीं होती।
कोई रात ऐसी नहीं
जब आँखों से बरसात नहीं होती।
कोई पल रिक्त नही
जब तेरी याद नहीं होती।
छिप कर रोती हूँ तेरी याद में
पर कोई आवाज़ नहीं होती।
हाले दिल भी पूछते हो अजनबी सा
कभी अपनेपन से बात नहीं होती।
कैसे भूल जाऊँ मैं तुझे तेरे सिवाय
दिल में किसी और की याद नहीं होती ।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 10 मई 2018

सच -झूठ

सच -झूठ
झूठ ने एक दिन सच से पूछा
क्यों होती है दुनिया में
सच-झूठ की लड़ाई?
सच ने मासूमियत से जवाब दिया --
जो बोलते हैं ,सच का साथ दो
वही होते हैं झूठ के सगे भाई।
तभी तो सच आज वहशी पंजो में
जकड़ा छटपटा रहा है।
और झूठ!
झूठ बगल में खड़े हो
ठहाके लगा रहा है।
सच, सच है इसलिए
पंक्ति में पीछे खड़ा हो
आँसू बहा रहा है।
झूठ, झूठी चापलूसी कर
आगे बढ़ता जा रहा है।
सच के सामने
भले लोग शीश झुकाते हैं ।
पर झूठ के इशारों पर ही तो
कदम बढ़ाते हैं।
सच-झूठ का खेल अनोखा है।
सच के साथ हरदम होता धोखा है।
झूठ आज बेखौफ हो सोता है।
क्योंकि झूठ के साथ
चाटुकारों का आशीर्वाद है।
सच की जीत होती है, यह कहावत
आज सच को करती बेनकाब है।
बड़े -बड़े लोग
झूठ और मक्कारी के साथ हैं।
तभी तो सच आज झूठ के सामने
विवश और लाचार है।

डॉ. अनिता सिंह



रविवार, 6 मई 2018

दुनिया के पार

मैं श्रद्धा के फूल तुझे अर्पण करती हूँ।
आशा के दीप तेरे दर पर जलाती हूँ।
मैं तुम्हें देवता मानकर पूजती हूँ।
तुम्हारे चरणों में प्रणाम करती हूँ।
तुमसे खुशियों का वरदान माँगती हूँ।
तेरे दर्शन के लिए तुमसे ही फरियाद करती हूँ।
तुम आओगे मेरे पास विश्वास करती हूँ।
मीत मानकर स्नेह से तुम्हें स्पर्श करती हूँ।
मेरे स्नेह को पाकर
तुम चल पड़ते हो मेरे साथ।
तब खुशी से तुमको अपनाती हूँ।
साथी कहकर तुम्हें गले लगाती हूँ।
तुम्हारे अलौकिक रुप को
निहारती हूँ बार बार।
फिर यह प्राण सौपकर तुझे
चली जाऊँ इस दुनिया से पार।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 3 मई 2018

स्वाति

तू स्वाति का बूंद 💧 है मेरा
मैं हूँ चातक तेरी ।
तू चाँद 🌙 की शीतल चाँदनी
मैं हूँ तेरी चकोरी ।
कब आओगे मीत मेरे
देख रही 'अन्नु' पथ तेरी।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 29 अप्रैल 2018

मेरी जिंदगी में

मैं चाहती हूँ कि तुम लौट आओ
फिर मेरी जिंदगी में।
तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी,
जिंदगी नहीं लगती है ।
जब तुम मेरे साथ थे तो
मेरे पास, खुशियों का खजाना था।

मैं चाहती हूँ कि
तुम कुछ पल बैठो मेरे पास
मेरा हाथ अपने हाथों में थाम।
तुम्हारे हाथों की गर्माहट को मैं
महसूस करूँ।
तुम्हारे साथ कुछ नया ख्वाब बुनूँ।

मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे सामीप्य में
मैं आँखें बंद कर खो जाऊँ तुममे ,
और तुम फिर से कहो-----
मुझसे क्या चाहती हो?
मैं अश्रुपूर्ण नयनो से कहूँ-
तुम लौट आओ ,मेरी जिंदगी में ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 22 अप्रैल 2018

ख्वाब में

आज आया है कोई मेरे ख्वाब में।
छेड़ गया मीठी तान अनुराग में ।
उषा की लाली और सुरमयी विहान में।
ज्योति जगा गया जीवन के अंधकार में।
छू गया दिल को जैसे कुसमित उल्लास में।
जागृत होकर भी मैं हूँ निद्रा के उन्माद में।
आकर गुनगुनाया है मीठीआवाज़ में।
कुछ अनकही सुना गया मधुर अल्फाज़ में।
अपना बना गया आलोकित उजास में।
आज आया है कोई...................

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 15 अप्रैल 2018

तेरी खुशबू

फिजा़ से आती है तेरी खुशबू
जब तुम दिल की गली से गुजर जाते हो।

मेरा दिल तो तेरी यादों का घरौंदा है
तुम यादों की चौखट में प्रवेश कर जाते हो।

खिली हुई मुस्कान के साथ
जब दूर से आते दिख जाते हो।

मन प्रफुल्लित हो जाता है
जब धीरे से कुछ कह जाते हो।

जब तुम कहीं नज़र नहीं आते हो
तब एक पल भी बिसराये नहीं जाते हो ।

कभी जब बिन बोले आगे बढ़ जाते हो,
तब बंद पलकों से अश्रु बन ढुलक जाते हो।

डॉ. अनित सिंह

रविवार, 8 अप्रैल 2018

क्यों..............?

क्यों मेरा मन तुम्हें हर पल याद करता है?
क्यों मेरा दिल हर पल तेरे लिए धड़कता है?
क्यों मेरी नजरें हर पल तेरा ही रास्ता देखती है?
क्यों मेरी बाहें तुझे गले लगाने को आतुर रहती हैं?
क्यों मेरे हाथ तेरे स्पर्श को आकुल रहते हैं?
क्यों मेरे होठ तुझे देखते ही मौन हो जाते हैं?
क्यों मेरे करीब होकर भी दूर रहते हो?
क्यों तुम्हें याद कर अकारण ही आँसू आ जाते हैं?
क्यों मेरे सामने आकर भी तुम नजरें चुराते हो?
क्यों मुझे अपना कहने से कतराते हो?
क्यों ? क्यों ? क्यों ? ??
डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 1 अप्रैल 2018

लौट आए

नज़र भर के देखा न कुछ बात की
फिर भी लगा मुलाकात की।
न पलकें झुकीं न होंठ कंपकपाएं
फिर भी लगा हिय की बात की।

वक्त की दुरियाँ कहूँ या थी मजबुरियाँ
दूर जाकर मुझसे वो फिर पास आए।
देखकर उनको मेरे कदम लड़खड़ाए
ऐसा लगा वो चंद कदम साथ आए।

दिल में हलचल मची और होंठ मुस्काए
ऐसा लगा हम उन्हें छूकर आए।
आँखें थी नम और गीत गुनगुनाए
वो फिर मेरी जिंदगी में लौटआए।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 29 मार्च 2018

ऐ हवा

ऐ हवा, तू जाकर बता दे उन्हें
मेरे दिल के एहसास की बात।
मेरे मौन के पीछे छिपे शब्दों के
हलचल की आवाज़ की बात।
मेरी पलकों में बंद आँसुओं से
मुलाकात की बात।
तड़पते हुए इस दिल में
पलते हुए घाव की बात ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 25 मार्च 2018

तुम्हारी हँसी

तुम्हारी हँसी....
मेरे कानो से टकराकर
निर्मल निर्झर बनकर बहती है ।

तुम्हारी हँसी
वशीकरण मंत्र की तरह
अपने वश में कर लेती है ।

तुम्हारी हँसी
की इस गणित में
उलझती रहती हूँ कि
पहले तुमने मुझे
देखकर हँसा था
या पहले मैं हँसी थी।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 22 मार्च 2018

मीत

मीला था कोई मीत
मुझे जिंदगी की राह में।
कभी समझा नहीं मुझे
फिर भी बसा है मेरे ख्याल में ।
दिल की धड़कने शोर करती हैं
खामोशियाँ है जुबान में
निहारतें हैं एक दूजे को
बस नजरों से ही मुलाकात में ।
समझते हैं मन के भाव
बदले हुए वक्त और हालात में ।
मन की मन में ही लिए
उलझते हैं इधर -उधर की बात में।
काश! समझ पाता वो मुझे
जो रहता है मेरे ख्वाब में।
बाँट सकते सुख-दुख
एक दूजे के साथ में ।

डॉ. अनिता सिंह

सोमवार, 19 मार्च 2018

याद है तुम्हें

याद है तुम्हें
जब पहली बार तुमने
मेरे हाथों का स्पर्श किया था
मैं अन्दर तक सिहर गयी थी
तन-मन में खुशी की लहर दौड़ गयी थी
कितना मृदु था तुम्हारा वो स्पर्श
फिर तुमने मेरे मन को टटोला था
पूछा था तुमने बड़ी कोमलता से सवाल
मैने जवाब भी दिया था
फिर मेरे होने का आश्वासन देकर
क्यों दूर हो गए तुम
अब रह गए हो मेरी स्मृतियों में
मेरे आसुओं में, सिर्फ तुम..............।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 15 मार्च 2018

अश्रु

ऐ अश्रु तू आँखों की देहरी पर न आना।
दुनिया के सारे गम को तू पलकों में छिपाना।

जख्म अपने ना तू किसी को दिखाना।
ढल जाओ आँखों से तो भी मुस्कुराना ।

हो जाए अपने पराए तो भी रिश्ता निभाना।
दिल की बात आए जुबाँ पर तो खुशी छलकाना।

जख्मों में डूबा दिल हो तो पलकों में छिप जाना।
बहुत बेदर्द है यह दुनिया, सब दर्द सह जाना ।

डॉ. अनिता सिंह

बुधवार, 14 मार्च 2018

जादू

जादू है तेरे आँखों में
दिखता है तेरा चेहरा
आँख बंद करने के बाद भी।
जादू है तेरे स्पर्श में
जिसे महसूस करती हूँ
तेरे जाने के बाद भी ।
जादू है तेरे शब्दों में
आवाज़ आती है
दूर होने के बाद भी।
जादू हो तुम मेरे लिए
दिखते नहीं हो मुझे
हर पल साथ रहने के बाद भी।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 6 मार्च 2018

ख्वाबों में

मेरे ख्वाबों में जब से तुम आने लगे,
दिल ही दिल में मुझे तुम भाने लगे।

मेरा सब कुछ सही और सलामत ही था,
फिर मुझे क्यों लगा कुछ चुराने लगे।

जब से तेरी नज़रों से है मेरी नजरें मिली,
तब से मौन ही मौन बतियाने लगे।

इक लहर -सी मेरे तन-वदन में उठी,
तेरी हल्की छुअन भी चौकाने लगे।

हँस पड़ी खिल-खिलाकर खामोशी मेरी,
मेरे दिल में जगह तुम बनाने लगे।

तुझसे मिलने का मुझ पर असर यूँ हुआ,
तुम हमीं-से-हमीं को चुराने लगे।

क्यों हो गये बेवफा इस तरह............
तेरी मुस्कराहट भी मुझे तड़पाने लगे।

जाने को तो, तुम चले ही गये,
मगर ख्वाबों में अपने डुबाने लगे।

जाने किस राह से आ जाओ तुम,
इसलिए हर ओर हम नजरे बिछाने लगे।

तुमने तो सदैव किया है मायूस हमको,
फिर भी हम रिश्ता निभाने लगे।

तुम्हारे दर्द की दौलत को संभाला इस कदर,
अपने साये से भी उसको बचाने लगे।

तेरे इंतजार में हम हो गये हैं ऐसे पागल,
कि हर मौसम को तेरी पहचान बताने लगे।

इस तरह बस गये हो ख्वाबों -ख्यालों में तुम,
हर तरफ तुम-ही-तुम नज़र आने लगे।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 4 मार्च 2018

आगमन की उम्मीद

तुम एक खूबसूरत अहसास हो
जिससे कुसमित होता है मेरा जीवन।

जब तुम आते हो मेरे करीब
मन ,प्राण सब तुममे हो जाता है विलीन।

तुम्हारा स्पर्श अलौकिक सा आनंद देता है।
स्वतः मिट जाता है अपना अस्तित्व।

तेरे ख्यालों, तेरे यादों के बगैर
नहीं होती है मेरी सुबह से शाम।

आज तुम जब मुझसे दूर हो ,तब
तेरी स्मृतियाँ कर जाती हैं मुझे उदास ।

बंजर जमीं पर एक फूल खिला जाती है
तेरे आगमन की उम्मीद ...............।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

प्रेम कविता

यह सच है कि प्रेम कविता
लिखने का कभी ख्याल नहीं आया।
लिखा है मैने बहुत कुछ
विविध विषयों पर ।

लिखा है मैने
ईश्वर की मुलाकात और
गुरूदेव के आशीर्वाद पर ।
देश -दुनिया और समाज पर ।

लिखा है मैने
बेईमानी और चापलूसी
की मुलाकात पर ।
सहमें सच और
झूठ की तेज आवाज पर ।

लिखा है मैने
साधु संत के रूप में छिपे
ढोंगियों के यौन अत्याचार पर।
बच्चों के स्वभाव और
बड़ो की बात पर ।

बहुत कुछ लिखा है मैने
आगे बढ़ती बेटियों के नाज पर और
बेटियों के साथ हो रहे बलात्कार पर।

लिखा है मैने
नारी मन में छिपे विचार पर।
पर पता नहीं क्यों आजकल सिर्फ
प्रेम कविताएँ ही लिख पाती हूँ ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

इंतजार

तेरी यादों में डूबकर आँसू बहाना
मेरे प्यार की हद थी।
बंद आँखों से भी तुम्हें देख पाना
तेरे दीदार की हद थी।
दिल में असीम चाहत है फिर भी
तुमसे न कुछ कह पाना।
मर गए हम मगर खुली रहीं आँखें
मेरे इंतजार की हद थी।

डॉ. अनिता सिंह

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

स्वार्थ

स्वार्थ से परे तुम्हें चाहा था
दिल की धड़कनो को तुम्हें सुनाया था
तुमने हाथों के स्पर्श से
इस रिश्ते को नाम दे दिया।
वह तो सुगंध जैसा था
उसे दिल में वास दे दिया।
रेशम जैसा था
उसे अहसास दे दिया।
शहद जैसा था
उसे मिठास दे दिया ।
मधुर निःशब्द था
उसे आवाज दे दिया ।
सब कुछ निःस्वार्थ था
उसे स्वार्थ का नाम दे दिया ।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

क्षणिकाएँ

( 1) "चाहत "
उनके आने से पहले
उनके कदमों की आहट
जान लेती हूँ।
उनकी नजरों से ही
अपने लिए उनकी चाहत
जान लेती हूँ ।
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( 2) “नाराजगी "
ये कैसी नाराजगी
जताते हो?
गलतियां बताए बगैर
मुझे हर पल क्यों
सताते हो।
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(3) “ख्याल "
ख्याल तेरे तरफ क्यों
बार-बार जाता है ।
मेरी जिंदगी को तू
तनहा बना जाता है ।
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( 4) “ जिगर"
गुजरा नहीं कोई
तेरे बाद इधर से।
अब भी तेरी याद
नहीं गयी जिगर से।
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(5)"सलामत”
तेरे सलामत की दुआ में
हर लमहा गुजर जाता है।
कब ये वक्त तेरी याद में
तनहा गुजर जाता है।
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डाॅ. अनिता सिंह

रविवार, 18 फ़रवरी 2018

अल्फाज़

मेरे हर अल्फाज़ तेरे लिए रोते हैं।
तू नहीं है अजनबी तभी तो तेरे लिए रोते हैं।

जागती हूँ हर रात तेरी याद में
और आप हैं कि सुकून की नींद सोते हैं।

आज भी तेरी एक झलक पाकर
हम दिल का चैन खोते हैं।

जिंदगी की हर बाजी जीती है हमने
तुमसे हारकर अब सिर्फ रोते हैं।

तेरी स्मृतियाँ ऐसी कि हर पल
'अन्नु' के दिल में नश्तर चुभोते हैं ।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

सौगात

तुम्हारे हाथों में
मैने सौप दी हैं चाबियाँ
तुम जाकर देख सकते हो
मेरे दिल के तहखाने में।

तुम्हारी दी हुई सभी सौगातों को
मैने अब तक सहेज रखा है -
तुम्हारी प्यार भरी नज़र ,
तुम्हारी शरारती अदा,
तुम्हारी मासूम मुस्कान ,
तुम्हारा प्यार भरा स्पर्श ,
तुम्हारा गुस्से से लाल चेहरा,
तुम्हारा अपनापन से डाँटना और
तुम्हारा मुझे प्रोत्साहित करना
सब कुछ सहेज रखा है।

तुम्हारी पहुँच से जरा दूर
कुछ तेरी तस्वीरें भी सहेज रखी है
उन्हें ध्यान से छूना
क्योंकि वो मेरी धरोहर हैं।

तुम्हारे दी हुई अनमोल सौगातें
यादें, दर्द और अपमान
दिल के आखिरी
तहखाने में सुरक्षित है
जो तुम्हें याद भी नहीं होगा कि
तुमने कब दिया था।
लेकिन मैने सहेज रखा है
जिसे तुम आकर देख सकते हो
दिल के तहखाने में रखी सारी सौगातें
क्योंकि तुम्हारा हक है।

डॉ. अनिता सिंह


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