रविवार, 27 मई 2018

अपने पास

मैं तुम्हें सौंप देना चाहती हूँ
अपने हिस्से का भी सुख।
परन्तु बचा लेती हूँ
चुपके से संताप और दुख।

तुम्हारे सभी दुखों को
उड़ा देना चाहती हूँ बनाकर पतंग।
चुरा लेना चाहती हूँ
खामोशी से सभी दुःस्वप्न।

देखना चाहती हूँ
तुम्हारे चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान ।
कराना चाहती हूँ
तुम्हारा सुखों से साक्षात्कार।

आज बिना हिचक तुमसे कह देना
चाहती हूँ दिल की बात।
जब घुटने लगती हैं मेरी साँस
तब मैं सदैव पाती हूँ तुम्हें अपने पास।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 20 मई 2018

संवाद

तुम हमसे कुछ संवाद करो
दो पल ही सही कुछ तो मीठी बात करो।

बीत रहा है युग जैसे
जीवन में कुछ राग भरो।

त्याग मौन को तुम
हमसे कुछ तकरार करो।

बहुत तड़पाया है मुझको
अब मिलनेच्छा की शुरुआत करो।

नहीं जीवन भर तो
चंद कदम तो साथ चलो।

कब तक दूर रहोगे मुझसे
अब तो मुझे अपना लो।

नहीं करूँगी कोई शिकायत
अब तो गले लगा लो।

भूल हुई है जो मुझसे
उन भूलों को अब माफ करो।

मर-मर कर जी रही हूँ हर पल
सूने जीवन में कुछ आस भरो।

पल-पल तड़प रही हूँ मैं
प्रभु! आकर मेरा उद्धार करो।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 13 मई 2018

मुलाकात

कैसे कहूँ कि तुमसे मुलाकात नहीं होती ।
हर पल मिलते हैं तुमसे
पर दिल की बात नहीं होती।
कोई रात ऐसी नहीं
जब आँखों से बरसात नहीं होती।
कोई पल रिक्त नही
जब तेरी याद नहीं होती।
छिप कर रोती हूँ तेरी याद में
पर कोई आवाज़ नहीं होती।
हाले दिल भी पूछते हो अजनबी सा
कभी अपनेपन से बात नहीं होती।
कैसे भूल जाऊँ मैं तुझे तेरे सिवाय
दिल में किसी और की याद नहीं होती ।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 10 मई 2018

सच -झूठ

सच -झूठ
झूठ ने एक दिन सच से पूछा
क्यों होती है दुनिया में
सच-झूठ की लड़ाई?
सच ने मासूमियत से जवाब दिया --
जो बोलते हैं ,सच का साथ दो
वही होते हैं झूठ के सगे भाई।
तभी तो सच आज वहशी पंजो में
जकड़ा छटपटा रहा है।
और झूठ!
झूठ बगल में खड़े हो
ठहाके लगा रहा है।
सच, सच है इसलिए
पंक्ति में पीछे खड़ा हो
आँसू बहा रहा है।
झूठ, झूठी चापलूसी कर
आगे बढ़ता जा रहा है।
सच के सामने
भले लोग शीश झुकाते हैं ।
पर झूठ के इशारों पर ही तो
कदम बढ़ाते हैं।
सच-झूठ का खेल अनोखा है।
सच के साथ हरदम होता धोखा है।
झूठ आज बेखौफ हो सोता है।
क्योंकि झूठ के साथ
चाटुकारों का आशीर्वाद है।
सच की जीत होती है, यह कहावत
आज सच को करती बेनकाब है।
बड़े -बड़े लोग
झूठ और मक्कारी के साथ हैं।
तभी तो सच आज झूठ के सामने
विवश और लाचार है।

डॉ. अनिता सिंह



रविवार, 6 मई 2018

दुनिया के पार

मैं श्रद्धा के फूल तुझे अर्पण करती हूँ।
आशा के दीप तेरे दर पर जलाती हूँ।
मैं तुम्हें देवता मानकर पूजती हूँ।
तुम्हारे चरणों में प्रणाम करती हूँ।
तुमसे खुशियों का वरदान माँगती हूँ।
तेरे दर्शन के लिए तुमसे ही फरियाद करती हूँ।
तुम आओगे मेरे पास विश्वास करती हूँ।
मीत मानकर स्नेह से तुम्हें स्पर्श करती हूँ।
मेरे स्नेह को पाकर
तुम चल पड़ते हो मेरे साथ।
तब खुशी से तुमको अपनाती हूँ।
साथी कहकर तुम्हें गले लगाती हूँ।
तुम्हारे अलौकिक रुप को
निहारती हूँ बार बार।
फिर यह प्राण सौपकर तुझे
चली जाऊँ इस दुनिया से पार।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 3 मई 2018

स्वाति

तू स्वाति का बूंद 💧 है मेरा
मैं हूँ चातक तेरी ।
तू चाँद 🌙 की शीतल चाँदनी
मैं हूँ तेरी चकोरी ।
कब आओगे मीत मेरे
देख रही 'अन्नु' पथ तेरी।

डॉ. अनिता सिंह

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