मैं तुम्हें सौंप देना चाहती हूँ
अपने हिस्से का भी सुख।
परन्तु बचा लेती हूँ
चुपके से संताप और दुख।
तुम्हारे सभी दुखों को
उड़ा देना चाहती हूँ बनाकर पतंग।
चुरा लेना चाहती हूँ
खामोशी से सभी दुःस्वप्न।
देखना चाहती हूँ
तुम्हारे चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान ।
कराना चाहती हूँ
तुम्हारा सुखों से साक्षात्कार।
आज बिना हिचक तुमसे कह देना
चाहती हूँ दिल की बात।
जब घुटने लगती हैं मेरी साँस
तब मैं सदैव पाती हूँ तुम्हें अपने पास।
डॉ. अनिता सिंह