गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

अनंत इच्छाएँ

अनंत इच्छाएँ....

अनंत इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं
हर पल मन में चलती रहती हैं।

सुबह उठते ही अखबार पढ़ती हूँ तो 
खोजी पत्रकार होने की इच्छा होती है ।

रसोई में खाना बनाती हूँ तो 
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पाकशास्त्री
बनने की इच्छा होती है।

जब बच्चों को पढ़ाती हूँ तो
 राधाकृष्णन बन शिक्षा की लौ से
बच्चों को जगमगाना चाहती हूँ।

यात्रा पर होती हूँ तो 
वास्कोडिगामा बन पूरी दुनिया
की सैर करना चाहती हूँ ।

उपवन में होती हूँ तो 
रंग -बिरंगी तितली बन 
फूलों पर मंडराना चाहती हूँ ।

समंदर किनारे होती हूँ तो
शीप की मोती बन 
चमकना चाहती हूँ ।

अस्तगामी सूर्य को देखती हूँ तो 
अशांत मन में शांति की 
ठौर खोजती हूँ ।

रात्रि विश्राम में होती हूँ तो 
चाँद की चाँदनी बन सबके 
जीवन में चमकना चाहती हूँ।


दोस्तों के साथ होती हूँ तो
उनकी हंसी में घूलकर 
जी भरकर खिलखिलाना चाहती हूँ ।

जब प्यार में होती हूँ तो 
हीर की रांझा बन उसके प्यार में
डूब जाना चाहती हूँ।

जब मंदिर मैं होती हूँ तो 
ध्वनित घंटियों में अनहद की
 गूंज को सुनना चाहती हूँ।

 जब माता-पिता के साथ होती हूँ तो 
उनकी वही नन्ही बिटिया बन 
बचपन में लौट जाना चाहती हूँ।

अनंत इच्छाओं का कोई छोर नहीं
इसलिए जो प्रभु ने दिया है
उसी में खुश रहकर जीना चाहती हूँ।

डॉ. अनिता सिंह 
समीक्षक/उपन्यासकार 

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