रविवार, 2 दिसंबर 2018

मौत के द्वार

जिंदगी से करते हुए खींच -तान
अब आ पहुँची हूँ मौत के द्वार।
कुछ ख्वाहिसें अधूरी
कुछ गुफ़्तगु अधूरी
कहना चाहती थी उनसे कुछ अल्फाज़ ।
अब आ ----------------।
जिसका न होना भी
कराता है होने का अहसास
ठहरना चाहती थी दो पल उनके साथ ।
अब आ -----------------।
सब कुछ पीछे छूट रहा है
गहरा रिश्ता भी टूट रहा है
जो जुड़ा नहीं था वो था बहुत आगाध।
अब ------------------।
क्या खोया क्या पाया मैने
जब करने लगी हिसाब
तब भी था प्रिय तेरा ही कोमल एहसास।
अब ------------------।
चुन -चुन कर सहेज लाई हूँ
समृतियों के वंदनवार
पुनः आना तुम लेकर वही उजास।
अब ------------------।
ना गिला, ना शिकवा कोई
ढह गयी नफरत की दीवार
मेरी गलतियों को कर दो प्रभु अब तो माफ।
अब आ------------------।

डॉ. अनिता सिंह

02/12/2018

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