तुम अपरिचित से
कब परिचित बन गए
पता ही नहीं चला
इससे अच्छा होता कि
तुम अपरिचित ही रहते
न परिचित होते
न मेरे दिल में बसते
न तुम्हें पाने की तड़प होती
न आसुओं की छलक होती।
डॉ. अनिता सिंह
अगर मेरी चाहत में तेरी चाहत
नहीं मिली तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तेरी नजरों ने मेरी नजरें
नहीं पढ़ी तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तेरी धड़कनो ने मेरी धड़कनो का
एहसास नहीं किया तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तेरे दिल ने मेरे दिल की आवाज़
नहीं सुनी तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
जिंदगी की सफर में एक राह पर
साथ नहीं चले तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तुम प्यार के बदले मुझे नफरत
करते हो तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
मैं करती रहूँगी यूँ ही तुमसे मुहब्बत दिल से
नहीं समझते तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
डॉ .अनिता सिंह
बिलासपुर छत्तीसगढ़
सम्भाल रखी है तेरी तस्वीर
दिल के तहखाने में।
धुँधली नहीं होने दी है
तेरी यादों को
वक्त के पैमाने में।
जाने कितने नाम
जेहन में आकर चले गये
पर तेरे नाम की रोशनाई
मिटने नहीं दी है
तेरी यादों ने।
अधूरे ख्वाबों को
छिपा रखा है
दिल के बंद दरवाजे में।
तेरी पुरानी यादें
अभी भी कैद हैं
दिल के तहखाने में।
बनाना चाहती तुम्हें कृष्ण
पता नहीं तुम बने कि नहीं
पर मुझे राधा बना दिया
तेरे प्रेम के प्याले ने।
डॉ .अनिता सिंह
बिलासपुर छत्तीसगढ़