रविवार, 29 अप्रैल 2018

मेरी जिंदगी में

मैं चाहती हूँ कि तुम लौट आओ
फिर मेरी जिंदगी में।
तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी,
जिंदगी नहीं लगती है ।
जब तुम मेरे साथ थे तो
मेरे पास, खुशियों का खजाना था।

मैं चाहती हूँ कि
तुम कुछ पल बैठो मेरे पास
मेरा हाथ अपने हाथों में थाम।
तुम्हारे हाथों की गर्माहट को मैं
महसूस करूँ।
तुम्हारे साथ कुछ नया ख्वाब बुनूँ।

मैं चाहती हूँ कि तुम्हारे सामीप्य में
मैं आँखें बंद कर खो जाऊँ तुममे ,
और तुम फिर से कहो-----
मुझसे क्या चाहती हो?
मैं अश्रुपूर्ण नयनो से कहूँ-
तुम लौट आओ ,मेरी जिंदगी में ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 22 अप्रैल 2018

ख्वाब में

आज आया है कोई मेरे ख्वाब में।
छेड़ गया मीठी तान अनुराग में ।
उषा की लाली और सुरमयी विहान में।
ज्योति जगा गया जीवन के अंधकार में।
छू गया दिल को जैसे कुसमित उल्लास में।
जागृत होकर भी मैं हूँ निद्रा के उन्माद में।
आकर गुनगुनाया है मीठीआवाज़ में।
कुछ अनकही सुना गया मधुर अल्फाज़ में।
अपना बना गया आलोकित उजास में।
आज आया है कोई...................

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 15 अप्रैल 2018

तेरी खुशबू

फिजा़ से आती है तेरी खुशबू
जब तुम दिल की गली से गुजर जाते हो।

मेरा दिल तो तेरी यादों का घरौंदा है
तुम यादों की चौखट में प्रवेश कर जाते हो।

खिली हुई मुस्कान के साथ
जब दूर से आते दिख जाते हो।

मन प्रफुल्लित हो जाता है
जब धीरे से कुछ कह जाते हो।

जब तुम कहीं नज़र नहीं आते हो
तब एक पल भी बिसराये नहीं जाते हो ।

कभी जब बिन बोले आगे बढ़ जाते हो,
तब बंद पलकों से अश्रु बन ढुलक जाते हो।

डॉ. अनित सिंह

रविवार, 8 अप्रैल 2018

क्यों..............?

क्यों मेरा मन तुम्हें हर पल याद करता है?
क्यों मेरा दिल हर पल तेरे लिए धड़कता है?
क्यों मेरी नजरें हर पल तेरा ही रास्ता देखती है?
क्यों मेरी बाहें तुझे गले लगाने को आतुर रहती हैं?
क्यों मेरे हाथ तेरे स्पर्श को आकुल रहते हैं?
क्यों मेरे होठ तुझे देखते ही मौन हो जाते हैं?
क्यों मेरे करीब होकर भी दूर रहते हो?
क्यों तुम्हें याद कर अकारण ही आँसू आ जाते हैं?
क्यों मेरे सामने आकर भी तुम नजरें चुराते हो?
क्यों मुझे अपना कहने से कतराते हो?
क्यों ? क्यों ? क्यों ? ??
डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 1 अप्रैल 2018

लौट आए

नज़र भर के देखा न कुछ बात की
फिर भी लगा मुलाकात की।
न पलकें झुकीं न होंठ कंपकपाएं
फिर भी लगा हिय की बात की।

वक्त की दुरियाँ कहूँ या थी मजबुरियाँ
दूर जाकर मुझसे वो फिर पास आए।
देखकर उनको मेरे कदम लड़खड़ाए
ऐसा लगा वो चंद कदम साथ आए।

दिल में हलचल मची और होंठ मुस्काए
ऐसा लगा हम उन्हें छूकर आए।
आँखें थी नम और गीत गुनगुनाए
वो फिर मेरी जिंदगी में लौटआए।

डॉ. अनिता सिंह

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