रविवार, 28 अक्तूबर 2018

मुक्तक

है तेरे लिए मेरी आँखों में नमी।
खल रही है दिल को आज तेरी कमी।
ख्वाब पिघलें हैं पलकों से आँसू बनकर,
दिल में तेरी यादों की बरफ है जमीं।

डॉ. अनिता सिंह
28/10/18

रविवार, 14 अक्तूबर 2018

पंचतत्व

तुम क्षिति हो
तभी तो जड़ बनकर
समा गये हो
मेरी दिल की गहराइयों में।

तुम जल हो
तभी तो डूबा गए हो
अपने प्यार के
अथाह सागर में।

तुम आग हो
तभी तो जला गए हो
अपनी पीड़ा में।

तुम आकाश हो
तभी तो फैल गए हो
मेरी जिंदगी में
ठंडी छाँव बनकर।

तुम हवा हो
तभी तो मेरी हर श्वास में
समाहित हो गये हो
संगीत बनकर।

डॉ. अनिता सिंह
14/10/18

रविवार, 7 अक्तूबर 2018

कसूर

मैने कब कहा-तुमसे कि
तुम मेरे साथ चलो।
हाँ,चाहा जरुर ........
कुछ पल बैठो मेरे साथ
तेरी उलझने सुलझा दूँ
मैं लेकर हाथों में तेरा हाथ।
मैने कब कहा तुमसे कि
तुम मेरे रिश्ते को नाम दो।
हाँ, चाहा जरुर.........
तुम आत्मीयता का रिश्ता
रखते मेरे साथ,
पर मैने तुम्हें कभी
नहीं किया मजबुर।
मैं  नहीं  जानती
तुम क्यों चले गये मुझसे दूर।
मैं आज भी नहीं समझ पायी
मेरा क्या था कसूर............।
डॉ. अनिता सिंह
07/10/2018

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