शनिवार, 23 मार्च 2024

जीत आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर किसी को जल्दी है कब, कौन, किसे धकिया कर आगे बढ़ जाए पता ही नहीं चलता । इसमें भी सबसे ज्यादा जल्दी तो सड़क पर चलने वाले नौजवानों को होती है,जो हवा से बातें करते गाड़ी दौड़ाते हैं। ऐसे ही 28 मई 2021 के दिन बाजार से घर जाते समय एक नवयुवक तेज रफ्तार बाइक से मेरी स्कूटी को गलत साइड से टक्कर मारकर आगे निकल गया । मैं और मेरे पति सड़क के बीचो-बीच गिर गए। कुछ लोगों ने आकर हम दोनों को उठाया और मेरी गाड़ी को उठाने में मदद कर बगल के अस्पताल तक पहुँचा दिया। वहाँ प्राथमिक उपचार के बाद किसी तरह हम दोनो घर तो पहुँच गए, लेकिन हम दोनों को अंदरूनी चोट बहुत ज्यादा लगी थी, दर्द बहुत था। मेरे पति लगभग पंद्रह दिन में ठीक हो गए लेकिन मेरे बाएँ हाथ की पीड़ा बढ़ती जा रही थी । जून बीतते बीतते यह पीड़ा इतनी असहनीय हो गयी कि आर्थोपेडिक सर्जन को दिखाना पड़ा। डॉक्टर का कहना था कि मेरे कंधे के जोड़ का लिक्विड निकल गया है जिसके कारण हाथ हिलाने से भी भयंकर पीड़ा होती है। दवा लेने से शरीर सुस्त पड़ रहा था । बस जीतनी देर नींद आती उतनी ही देर आराम रहता था। फिर भी ऐसे हालात में भी मैं अपने पति के साथ विद्यालय जाती रही क्योंकि क्योंकि कोर्स पूरा नहीं हुआ था ।धीरे-धीरे दो महीना निकल गया मैं अपने स्वास्थ्य की परवाह किए बिना बच्चों के खातिर विद्यालय जा रही थी ।आज सुबह उठी तो हाथ में भयंकर पीड़ा थी ।विद्यालय जाने का मन नहीं था लेकिन दूसरे दिन कक्षा ग्यारहवीं के बच्चों का हिन्दी पेपर था तो रीविजन कराना आवश्यक था और बच्चों का डाउट भी क्लीयर करना था इसलिए मैं अपने पति के साथ विद्यालय पहुँच गयी । जब मैं चौथे कालांश में कक्षा में गयी तो पता चला प्राचार्य मैम ने छात्राओं को मिटिंग के लिए ऊपर हाल में बुलाया है । छात्राएं असमंजस की स्थिति में थी जिनको डाउट था वो जाना ही नहीं चाहती थी । मैं भी विवश थी क्या करती । मैने बच्चों से कहा- बेटा इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती , यदि आपलोग क्लास में हो तो मैं पढ़ा दूँगी । बिना मन के कुछ छात्राएं चली गयी परंतु जो पढ़ने के उद्देश्य से ही विद्यालय आई थी वो नहीं गयी । उनको जो भी डाउट था मैने बता दिया।पढ़ाकर कक्षा से बाहर निकली तो मेरा मन बहुत दुखी था कि मैं अस्वस्थ होते हुए भी जिन बच्चों को पढ़ाने के लिए विद्यालय आई थी उन्हें पढ़ा नहीं पायी ।यही सोचते हुए दूसरी कक्षा में जा रही थी कि तभी उप प्रधानाचार्य मैम मिल गयी तो मैने भी कह दिया कि मैम बच्चों का कल हिनदी पेपर है और आपलोग बच्चों की मीटिंग ले लिए, बच्चे फेल होंगे तो कौन जिम्मेदार होगा। चिंता मत करो हिन्दी में तो बच्चे ऐसे ही पास हो जाते हैं कहते हुए चली गयीं। जाने के बाद इस बात को किस ढ़ंग से उन्होंने प्राचार्य मैम के सामने कहा मैं नहीं जानती, लेकिन मेरी गलती ना होने पर भी प्राचार्य ने अपने केबिन में बुलाकर मुझे खूब उल्टा- सीधा सुनाया ऐसी -ऐसी बाते सुनाई जिसे मुझे लिखते हुए भी शर्म आ रही है । जितना वो अपने पद का उपयोग कर सकती थी किया। मैं दर्द से तड़प रही थी और वह अपनी महानता साबित करने के लिए लेक्चर दे रही थी। मैं किसी तरह उससे छुटकारा चाहती थी इसलिए मैंने कहा- "मैडम यदि आपकी नजर में लगता है कि मैं गलत हूँ तो मैं आपसे और उपप्रचार्य मैम से माफी माँगती हूँ।" कहकर केबिन से बाहर निकल गयी। मन इतना दुखी था कि एक तो मैं ऐसे हालात में पति के साथ स्कूल आ रही थी, बच्चों के भविष्य का सोचकर, ऊपर से प्राचार्य का इतना बुरा व्यवहार, मेरी आत्मा ने स्कूल जाने की इजाजत नहीं दी और न ही मेरा स्वास्थ्य । मैंने प्राचार्य को 25 अगस्त 2022 विद्यालय न आने का मैसेज मोबाईल पर भेज दिया। सप्ताह भर बाद प्राचार्य का फोन आया अरे! आपका कुछ पता नहीं चल रहा है विद्यालय आएंगी कि नहीं? अपनी स्थिति से अवगत कराते हुए मैंने विनम्रता से कहा- मैडम मेरी तबीयत ठीक नहीं है, अभी मैं डॉक्टर के यहाँ से ही आई हूँ। अभी कुछ दिन विद्यालय नहीं आ पाऊँगी । मैं मेडिकल भिजवा देती हूँ। मैं दर्द से कराह रही थी और वह फोन पर भी मुझे लेक्चर दे रही थी। इसी बीच मेरे साथ एक हादसा हो गया मेरी सासू माँ जो कि बहुत दिनों से बीमार चल रही थी 12 सितंबर 2022 को इस दुनिया से विदा ले हरि चरणों में विश्रांति पा गई । मैंने प्राचार्य को सूचित कर दिया कि अभी मैं विद्यालय नहीं आ पाऊँगी ।अभी मैं उनके क्रियाकर्म में शामिल होने वाराणसी जा रही हूँ । उधर से लौट कर आऊँगी तो मैं आपको मेडिकल सर्टिफिकेट भिजवा दूँगी । आने के बाद मैने 29सितंबर को 31 अक्टूबर 2022 तक का मेडिकल सर्टिफिकेट बनवा कर अपने पति से विद्यालय भिजवा दिया । डॉक्टर के अनुसार अभी मुझे एक महीने आराम की जरूरत थी क्योंकि मेरे बाएं कंधे में असहनीय दर्द चौबीस घंटे बना रहता था । यदि गलती से भी हाथ हिल जाता तो लगता था जान निकरमल जाएगी ।मैं पूरी तरह से असहाय और अपाहिज हो गई थी। मुझे दैनिक क्रियाकलाप के लिए भी दूसरों की आवश्यकता पड़ती थी। बाल बनाना, कपड़े पहनना - निकालना एवरेस्ट फतह करने जैसा था। न मैं घर के कामकाज कर पाती थी, न ही कुछ पढ़-लिख पाती थी । इसी तरह दर्द और छटपटाहट के साथ सितंबर से लेकर अक्टूबर तक का समय निकल गया। अब पहले से थोड़ी स्वस्थ होने के बाद मैं 1नवंबर2022 को जब विद्यालय गयी तो प्राचार्य का कहना था कि फिटनेस सर्टिफिकेट लेकर आए फिर देखते हैं । मैं आपको मेल से सूचित कर दूँगी कि कब से विद्यालय आना है। तेरह दिन निकल गए परंतु विद्यालय से कोई मेल नहीं आया तो मैं फिटनेस सर्टिफिकेट के साथ 14 नवंबर2022 को पुनः ज्वाइन करने हेतु नियत समय प्रातः 6:55 पर विद्यालय गई तो हमारी सुपर स्मार्ट प्राचार्य मैडम कहने लगी कि अभी तो वैकेंसी नहीं है आप अभी तुरंत घर चले जाइए । आपको तो मेल कर दिया था ।मैने कहा-मैम आपका कोई मेल नहीं आया तो मैं आ गयी और साथ में फिटनेस सर्टिफिकेट भी लाई हूँ। लेकिन अभी वैकेनसी नही है आप घर चली जाइए और अति व्यस्तता का बहाना बनाकर चली गयी । तत्पश्चात आनन-फानन में मेल भिजवाया जिसमें फिटनेस सर्टिफिकेट लेकर आने की बात लिखी थी और मुझे बुलाकर आदेश दिया कि अपना मेल चेक किजिए।।मैम मेल में तो फिटनेस सर्टिफिकेट के जमा करने के लिए लिखा है जो मैं डॉक्टर से बनवा कर लाई हूँऔर आपके पास जमा भी है।लेकिन अभी यहाँ तो कोई वैकेन्सी नही है देखती हूँ दूसरे ब्रांच में । मैम मैं मेडिकल सर्टिफिकेट देकर छुट्टी पर थी ,मै आपसे नौकरी माँगने तो नही आई हूँ जो आप बार बार वैकेन्सी नही है कह रही हैं। ठीक है मैम मैं चली जाऊंगी लेकिन मैं यह जानना चाहता चाहती हूँ कि मेरी अगस्त महीने की सैलरी क्यों रोक दी गई हैं जबकि मैं 24 अगस्त तक विद्यालय आई हूँ और आपको तो पता है कि मेरी तबीयत खराब है तथा इलाज के लिए मुझे बाहर जाना पड़ता है तो पैसे भी बहुत खर्च हो रहे हैं, कम से कम इंसानियत के नाते तो आप मेरी सैलरी दे दी होतीं, बहुत पैसे मेरे दवाई में खर्च हो गए हैं । एक जिम्मेदार कुर्सी पर बैठने वाली मैडम का उत्तर था- "विद्यालय इंसानियत से नहीं प्रोफेशन से चलता है।" अब थोड़ा इन महोदया के बारे में आप लोगों को अवगत करना आवश्यक इसलिए है कि जिसके अंदर इंसानियत ही नहीं है वह बच्चों को मोरल वैल्यू यानि नैतिक शिक्षा पढ़ाती हैं। अब इन्हें कौन बताए की मोरल वैल्यू पढ़ाया नहीं जाता है बल्कि बच्चे वही देखकर सीखते हैं जो बड़े करते हैं । यह लिखते हुए मुझे रहीम जी का एक दोहा याद आ रहा है- "रहिमन ओछे नरन सो बैर भली न प्रीत।काटे-चाटे स्वान के दोऊ भाँति विपरीत।" मैने अपने बात को जारी रखते हुआ कहा- मैम मैने नौकरी तो छोड़ी नहीं थी मैं तो मेडिकल अवकाश पर थी तो फिर वैकेंसी नही है का क्या मतलब है ?उसका जवाब था-मैं आपके खतिर बच्चों की पढ़ाई तो बरबाद नहीं कर सकती थी इसलिए मुझे बच्चों के लिए दूसरा टीचर रखना पड़ा ।तो मैम, मै यह समझूँ कि आप मुझे नौकरी से निकाल रही हैं ।और यदि निकाल रहीं हैं तो मुझे नोटिस तो देंगी न....?मै तो यह कह रही हूँ कि अभी बैकेसी नही हैं बाद में देखते है कहीं दूसरे ब्रांच में जगह होगी तो ...?अभी आप घर जाइएठीक है मैम लेकिन घर जाने से पहले मैं एम. डी. सर से मिलना चाहूँगी। ठीक है आएंगे तो मिल लीजिएगा ।संयोग ऐसा था एम. डी. सर भी उसी समय आ गए,लेकिन मुझे एम. डी. सर से मिलने के पहले ही प्राचार्य महोदया ने जाकर मेरी झूठी शिकायत कर दी कि मैं बिना सूचना के और बिना मेडिकल सर्टिफिकेट जमा किए तीन महीने तक अनुपस्थित थी जबकि मुझे दो महीना बारह दिन ही हुए थे ।इस बात का पता मुझे एम.डी. सर से मिलने के बाद चला क्योंकि उन्होंने मुझसे दो ही सवाल किए। पहला- आप बिना सूचना दिए अनुपस्थित थीं और दूसरा- अपको तीन महीने हो गया आपने मेडिकल सर्टिफिकेट जमा नहीं किया है ?जब मैंने उन्हें सच्चाई से अवगत कराया तो कहने लगे मैडम आप अभी नवंबर भर आराम कजिए मैं दिसंबर में आता हूँ तो बुलाता हूँ । आप हमारी इतनी पुरानी टीचर है कहाँ जाएँगी ? अभी थोड़ा व्यस्त हूँ अगली बार आकर आपकी पूरी बात भी सुनुँगा । "बड़े लोग बड़ी बातें" दिसंबर निकल गया ।फोन करने पर फोन का कोई रिप्लाई नहीं धीरे-धीरे मैं अपने अपाहिज़पन से मुक्त हो रही थी और नौकरी के लिए प्रयासरत भी थी जहाँ जाती लोग मेरी प्रतिभा देखकर रखना तो चाहते लेकिन पैसा देने के नाम पर पीछे हट जाते । 1 जनवरी 2023 को मैंने एक विश्वविद्यालय में ज्वाइन कर लिया तत्पश्चात विद्यालय गई तो प्राचार्य का कहना था कि हमारे यहाँ वैकेंसी तो नहीं लेकिन आप हमारी अच्छी टीचर है तो हम आपको न्यू ज्वाइनिंग करवाएंगे आप अपना बायो डाटा जमा कर दीजिए । अब आपको ऐजे न्यू टीचर ट्रीट किया जाएगा ।एम डी डील करेंगी तो क्या होगा ?आपतो एम.डी. से मिलने गयी थी न.. क्या हुआ? मैं इस चेयर पर बैठी हूँ तो मैं ही डील करूँगी एम.डी. नहीं।मैंने कहा - मैं बारह वर्ष से यहाँ पढ़ा रही हूँ ऐसा क्यों?हाँ ऐसा ही है, हम आपका इंटरव्यू तो नहीं लेंगे लेकिन आपको ऐजे न्यू टीचर ट्रीट किया जाएगा। ठीक है मैम ,मैं सोच कर बताती हूँ ।मुझे जल्दी बता दीजिएगा हो सके तो शाम तक ।ऐजे नयू टीचर ट्रीट किया जाएगा यह बात मेरे कानों में गुंज रही थी , यह बात मेरी समझ से परे थी। मैं केविन से बाहर निकली और रिजाइन लेटर लिखी और जाकर दे दिया। यह क्या है? मैम यह मेरा त्यागपत्र है , कहकर केबिन से बाहर निकाल गयी। बहुत सुकून, बहुत तसल्ली ऐसा लगा जैसे किसी कैद से मुक्त हो गयी हूँ। बस एक ही दुख था कि जिस स्कूल को मैंने बारह साल दिए, जिस बच्चे को अपना बच्चा समझ कर पढ़ाती रही , बच्चों के भविष्य का ख्याल कर बीमारी की अवस्था में भी स्कूल जाकर बच्चों को पढ़ाती रही ,जिस स्कूल के लिए मैं इतनी ईमानदारी और परिश्रम से कार्य करती रही ,वहाँ के लोग मेरे साथ इतना बुरा व्यवहार करेंगे और मैं इस तरह से स्कूल छोडूंगी कभी सोचा भी नहीं था। खैर कहते हैं न जब मुसीबत आती है तो चारों तरफ से आती है। जिस विश्वविद्यालय में मैने सहायक प्राध्यापक के पद पर ज्वाइन किया था वहाँ के लोग अपनी बात से मुकर गए । उनका कहना था अभी आप एढाक में पढ़ाइए फिर बाद में सोचेंगे। एढाक में एक पीरियड पढ़ाने के लिए घर से 10 किलोमीटर दूर जाना मेरी आत्मा ने स्वीकार नहीं किया इसलिए मैंने वहाँ जाना छोड़ दिया । बाएँ हाथ की तरह मेरा दायाँ हाथ भी होने लगा इसमें भी लगातार दर्द बना रहता था अभी बाएँ हाथ के दर्द से ऊबर नहीं पायी थी कि फिर वही असहनीय पीड़ा ,सोना ,खाना सब हराम ,अपाहिज़पन का दर्द ,शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक पीड़ा भी झेल रही थी । अपनी पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए कुछ कोचिंग में भी पढ़ाना आरंभ किया लेकिन वहाँ का भी माहौल मुझे अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए वहाँ भी जाना छोड़ दिया । मेरे जितने भी परिचित थे अथवा जिनसे भी मेरे बहुत अच्छे संबंध थे मैंने सबको अपनी स्थिति से अवगत करा दिया तथा अपनी नौकरी के लिए भी बोल दिया था ।उसमें से कुछ लोग तो बहुत बड़ा-बड़ा ख्वाब भी दिखाए , झूठी तसल्ली भी देते रहे ,लेकिन वह सिर्फ और सिर्फ झूठी तसल्ली ही थी जिसे मैं सच मान लेती थी, लेकिन होता कुछ नहीं।अब परिस्थित मुझे भी समझ में आने लगी थी और मैं अपने दम पर नौकरी तलाशना शुरू कर दी थी तथा साक्षात्कार भी दे रही थी, लेकिन कोई बड़ा जरिया नहीं था , न हीं कोई राजनीतिक पहुँच ही थी मेरे पास इसलिए हर जगह निराशा ही मिल रही थी । जिनसे मैने बहुत उम्मीद लगा रखी थी वहाँ से भी मुझे कोई उम्मीदी नजर नहीं आ रही थी, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी, मैंने भी ठान लिया था कि किसी से कुछ नहीं कहना, है जो करना है अपने दम पर करना है। स्कूल के लिए तो बहुत जगह से ऑफर मिल रहा था लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि अब स्कूल में नौकरी नहीं करनी है पढ़ाऊंगी तो कॉलेज में ही । एक जगह सफल भी हो गई। जुलाई 2023 में पुनः ज्वाइन भी कर लिया। उन लोग मेरी प्रतिभा के कायल थे। मेरी प्रतिभा देखकर बहुत खुश भी थे ।अच्छे लोग भी लगे , लेकिन ज्वाइन करने के बाद पता चला कि नया-नया कॉलेज है इसलिए बच्चे कम है यदि आप सौ एडमिशन लाती हैं तो आपका इस आधार पर अटेंडेंस और सैलरी बनेगी। शायद कुछ दिन में वे लोग भी मेरी मानसिक अवस्था एवं अपाहिज़पन की मजबूरी को समझ चुके थे । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था क्या करूं ? एक तो घर से 13 किलोमीटर दूर अपाहिज़पन के कारण दोनों हाथ सुन और शिथिल। गाड़ी नहीं चला सकती थी। पति के साथ आना-जाना कर रही थी। बहुत सोच विचार के बाद मैंने नौकरी छोड़ दी ।यह अवस्था मेरे लिए ऐसी अवस्था थी जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी ।हमेशा से स्वस्थ एवं मस्त जीवन व्यस्तताओं से भरा था ,लेकिन यह समय ऐसा था कि हर जगह से निराशा ही मिल रही थी । किसी दूसरे के लापरवाही की सजा से मैं अपाहिज बनकर भुगत रही थी या फिर मेरे कर्मों का फल ही था जो बाया हाथ थोड़ा ठीक होते-होते दाएं हाथ में भी वही समस्या हो गई थी। फिर वही पीड़ा न नीद, न चैन, सिर्फ गोली खाते रहो ऐसा लग रहा था कि बस जी रही हूँ। पढ़ना- पढ़ाना मेरा पैशन था जुनून था लेकिन सब कुछ बिखर रहा था। सितम्बर 2023 में मेरे स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार होने लगा बायाँ हाथ तो 90% तक ठीक हो चुका था, लेकिन दाहिना हाथ अभी भी तकलीफ दायक था। फिर भी धीरे-धीरे मैंने कुछ लिखना आरंभ किया। जहाँ भी वैकेंसी निकलती उसे भर देती ।पूरा ध्यान नौकरी एवं लेखन पर ही केंद्रित था। जिसका परिणाम यह था कि नवंबर 2023 में मुझे महाविद्यालय में प्राचार्य का पद मिल गया। इसके बाद तो मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।मेरे सपनों को स्वर्णिम पंख मिल गए ।हाथों का दर्द भी धीरे-धीरे गायब हो गया और अपाहिज़पन से जीत कर एक प्राचार्य के पद की गरिमा बढ़ा रही हूँ। जिस प्राचार्य ने मेरे साथ बुरा बर्ताव किया था उनका मेरे साथ ही नहीं बल्कि सभी शिक्षकों के साथ बहुत बुरा व्यवहार था। जिसके पास कोई दूसरी नौकरी नहीं थी वहीं शिक्षक वहाँ कार्य करने को विवश थे,अन्यथा एक-एक कर सभी शिक्षक विद्यालय छोड़ रहे थे । इतना सब कुछ होने के बाद भी प्राचार्य मैम को हार्दिक धन्यवाद देती हूँ कि उनके बुरे व्यवहार के कारण आज मैं स्कूल शिक्षिका से महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर कार्यरत हूँ और यह मेरी जीत का पहला पड़ाव है। डॉ.अनिता सिंह प्राचार्य-महाराणा प्रताप महाविद्यालय उसलापुर बिलासपुर

पाती प्रेम की प्रिय माधव तुम बहुत झूठे हो हर बार कहते हो कि होली में आऊँगा , लेकिन आते नहीं हो। तुम्हे याद है न हमारे विवाह को पाँच वर्ष हो गए हैं,लेकिन मैंने कभी तुम्हारे साथ होली नहीं खेली है । इस बार मेरी ख्वाहिश है कि मैं तुम्हारे गालों पर गुलाल लगाऊँ इसलिए जरूर आना ।पता है तुम्हें मेरा मन होता है कि हर दिन तुम्हें पत्र लिखूँ परंतु जब लिखने बैठती हूँ तो ऐसा लगता है कि किसी दूसरी कक्षा का प्रश्न पत्र थमा दिया गया है जिसका उत्तर मुझे नहीं पता है और घंटों उलझन में रहती हूँ कि क्या लिखूँ ? पता है जब मैं लोगों से पूछती हूँ कि अपने आखिरी पत्र कब लिखा था , तब लोगों का जवाब होता है आजकल के जमाने में पत्र कौन लिखता है..? पत्र तो पुराने जमाने में लोग लिखते थे। शायद तुम्हें भी पढ़कर ऐसा ही लगे, लेकिन मैं पुराने जमाने की ही हूँ। मुझे पुरानी चीजें अच्छी लगती है। शायद तुम भी मुझे इसीलिए अच्छे लगते हो, क्योंकि पुराने जमाने के लोग दुनिया के तमाम बुराइयों से दूर रहते हैं और तुम भी उनमें से एक हो । तुम्हारे और मेरे बीच बहुत दूरियाँ है लेकिन मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं होता है और मैं सदैव तुम्हे अपने करीब पाती हूँ। तुमसे मिली तो पहली बार ऐसा महसूस हुआ है कि किसी ने मुझे जीतने की कोशिश नहीं की फिर भी मैं अपना आप हार गई हूँ। अब हार कर भी प्रसन्न हूँ। यह प्रसन्नता मेरे अभिमान की है ,एक स्त्री होने के अभिमान की। कहते हैं स्त्रीत्व को छूना भी एक कला है.. स्त्री सिर्फ काया नहीं, हृदय है और तुमने मेरी काया नहीं, हृदय को छू लिया है ।मैं तुम्हारी भावनाओं की सरिता में डूब चुकी हूँ । तुम्हें दिल की गहराई से महसूस करना, प्यार करना, तुम्हारे लिए बेचैन रहना मेरी जरूरत बन गयी है ।मुझे यह सोचकर बहुत अच्छा लगता है कि तुम मुझे इतना चाहते हो, मुझसे मिलने और बात करने को बेचैन रहते हो। तुमसे घंटों बात करके भी ऐसा लगता है कि कुछ भी तो नहीं कहा मैंने। मैं तो बस तुम्हारे शब्दों के पीछे उसे मौन को सुनने की कोशिश करती हूँ ,वह सब समझने की कोशिश करती हूँ जो तुमने कहा ही नहीं। तुम्हारी मखमली आवाज़ तुम्हारी हंसी अक्सर मेरे कानों में गुँजती रहती है और वह प्यार भरे अल्फाज भी गुँजते हैं जिसे तुम कभी-कभी कहते हो । तुम्हारे फोन और मैसेज मुझे याद दिलाते हैं कि कोई बहुत दूर बैठा है जो मुझे बहुत चाहता है और हर वक्त यह भी यकीन दिलाते हैं कि यह सच है। आजकल तुम्हारा ख्याल मुझे बहुत अह्लादित करता है तथा तुम्हारे रूबरू आने की कल्पना से ही मैं रोमांचित हो जाती हूँ ।तुम्हें लेकर इतनी आश्वश्त हूँ कि इस बार तुम होली में अवश्य आओगे। पता नहीं मैंने जो कुछ भी खत में लिखा है शायद तुमसे कभी कह नहीं पाती। पता है तुम्हें मुझे ऐसा महसूस होता है कि जब मैं फोन में बात करती हूँ तो बाहर रहती हूँ परंतु जब तुम्हारे लिए कुछ लिखती हूँ तो भीतर उतर जाती हूँ, जैसे इस वक्त उतर गई हूँ। इस बार मैं तुम्हारा कोई भी बहाना सुनने के लिए तैयार नहीं हूँ । इस बार फिर वही बहाना मत बनाना कि मेरी छुट्टी कैंसिल हो गई ,फौज वालों को छुट्टी मिलती ही कहाँ है , मुझे तुम्हारी जिम्मेदारी के साथ देश की रक्षा की भी जिम्मेदारी है । इस बार मैं तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनुँगी । तुम सुन रहे हो न तुम्हें आना ही पड़ेगा इस बार होली में ।तुम्हारी चीर प्रतीक्षा में सस्नेह मुग्धा डॉ.अनिता सिंह उपन्यासकार/समीक्षक

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

अनंत इच्छाएँ

अनंत इच्छाएँ....

अनंत इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं
हर पल मन में चलती रहती हैं।

सुबह उठते ही अखबार पढ़ती हूँ तो 
खोजी पत्रकार होने की इच्छा होती है ।

रसोई में खाना बनाती हूँ तो 
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पाकशास्त्री
बनने की इच्छा होती है।

जब बच्चों को पढ़ाती हूँ तो
 राधाकृष्णन बन शिक्षा की लौ से
बच्चों को जगमगाना चाहती हूँ।

यात्रा पर होती हूँ तो 
वास्कोडिगामा बन पूरी दुनिया
की सैर करना चाहती हूँ ।

उपवन में होती हूँ तो 
रंग -बिरंगी तितली बन 
फूलों पर मंडराना चाहती हूँ ।

समंदर किनारे होती हूँ तो
शीप की मोती बन 
चमकना चाहती हूँ ।

अस्तगामी सूर्य को देखती हूँ तो 
अशांत मन में शांति की 
ठौर खोजती हूँ ।

रात्रि विश्राम में होती हूँ तो 
चाँद की चाँदनी बन सबके 
जीवन में चमकना चाहती हूँ।


दोस्तों के साथ होती हूँ तो
उनकी हंसी में घूलकर 
जी भरकर खिलखिलाना चाहती हूँ ।

जब प्यार में होती हूँ तो 
हीर की रांझा बन उसके प्यार में
डूब जाना चाहती हूँ।

जब मंदिर मैं होती हूँ तो 
ध्वनित घंटियों में अनहद की
 गूंज को सुनना चाहती हूँ।

 जब माता-पिता के साथ होती हूँ तो 
उनकी वही नन्ही बिटिया बन 
बचपन में लौट जाना चाहती हूँ।

अनंत इच्छाओं का कोई छोर नहीं
इसलिए जो प्रभु ने दिया है
उसी में खुश रहकर जीना चाहती हूँ।

डॉ. अनिता सिंह 
समीक्षक/उपन्यासकार 

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