गुरुवार, 29 मार्च 2018

ऐ हवा

ऐ हवा, तू जाकर बता दे उन्हें
मेरे दिल के एहसास की बात।
मेरे मौन के पीछे छिपे शब्दों के
हलचल की आवाज़ की बात।
मेरी पलकों में बंद आँसुओं से
मुलाकात की बात।
तड़पते हुए इस दिल में
पलते हुए घाव की बात ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 25 मार्च 2018

तुम्हारी हँसी

तुम्हारी हँसी....
मेरे कानो से टकराकर
निर्मल निर्झर बनकर बहती है ।

तुम्हारी हँसी
वशीकरण मंत्र की तरह
अपने वश में कर लेती है ।

तुम्हारी हँसी
की इस गणित में
उलझती रहती हूँ कि
पहले तुमने मुझे
देखकर हँसा था
या पहले मैं हँसी थी।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 22 मार्च 2018

मीत

मीला था कोई मीत
मुझे जिंदगी की राह में।
कभी समझा नहीं मुझे
फिर भी बसा है मेरे ख्याल में ।
दिल की धड़कने शोर करती हैं
खामोशियाँ है जुबान में
निहारतें हैं एक दूजे को
बस नजरों से ही मुलाकात में ।
समझते हैं मन के भाव
बदले हुए वक्त और हालात में ।
मन की मन में ही लिए
उलझते हैं इधर -उधर की बात में।
काश! समझ पाता वो मुझे
जो रहता है मेरे ख्वाब में।
बाँट सकते सुख-दुख
एक दूजे के साथ में ।

डॉ. अनिता सिंह

सोमवार, 19 मार्च 2018

याद है तुम्हें

याद है तुम्हें
जब पहली बार तुमने
मेरे हाथों का स्पर्श किया था
मैं अन्दर तक सिहर गयी थी
तन-मन में खुशी की लहर दौड़ गयी थी
कितना मृदु था तुम्हारा वो स्पर्श
फिर तुमने मेरे मन को टटोला था
पूछा था तुमने बड़ी कोमलता से सवाल
मैने जवाब भी दिया था
फिर मेरे होने का आश्वासन देकर
क्यों दूर हो गए तुम
अब रह गए हो मेरी स्मृतियों में
मेरे आसुओं में, सिर्फ तुम..............।

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 15 मार्च 2018

अश्रु

ऐ अश्रु तू आँखों की देहरी पर न आना।
दुनिया के सारे गम को तू पलकों में छिपाना।

जख्म अपने ना तू किसी को दिखाना।
ढल जाओ आँखों से तो भी मुस्कुराना ।

हो जाए अपने पराए तो भी रिश्ता निभाना।
दिल की बात आए जुबाँ पर तो खुशी छलकाना।

जख्मों में डूबा दिल हो तो पलकों में छिप जाना।
बहुत बेदर्द है यह दुनिया, सब दर्द सह जाना ।

डॉ. अनिता सिंह

बुधवार, 14 मार्च 2018

जादू

जादू है तेरे आँखों में
दिखता है तेरा चेहरा
आँख बंद करने के बाद भी।
जादू है तेरे स्पर्श में
जिसे महसूस करती हूँ
तेरे जाने के बाद भी ।
जादू है तेरे शब्दों में
आवाज़ आती है
दूर होने के बाद भी।
जादू हो तुम मेरे लिए
दिखते नहीं हो मुझे
हर पल साथ रहने के बाद भी।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 6 मार्च 2018

ख्वाबों में

मेरे ख्वाबों में जब से तुम आने लगे,
दिल ही दिल में मुझे तुम भाने लगे।

मेरा सब कुछ सही और सलामत ही था,
फिर मुझे क्यों लगा कुछ चुराने लगे।

जब से तेरी नज़रों से है मेरी नजरें मिली,
तब से मौन ही मौन बतियाने लगे।

इक लहर -सी मेरे तन-वदन में उठी,
तेरी हल्की छुअन भी चौकाने लगे।

हँस पड़ी खिल-खिलाकर खामोशी मेरी,
मेरे दिल में जगह तुम बनाने लगे।

तुझसे मिलने का मुझ पर असर यूँ हुआ,
तुम हमीं-से-हमीं को चुराने लगे।

क्यों हो गये बेवफा इस तरह............
तेरी मुस्कराहट भी मुझे तड़पाने लगे।

जाने को तो, तुम चले ही गये,
मगर ख्वाबों में अपने डुबाने लगे।

जाने किस राह से आ जाओ तुम,
इसलिए हर ओर हम नजरे बिछाने लगे।

तुमने तो सदैव किया है मायूस हमको,
फिर भी हम रिश्ता निभाने लगे।

तुम्हारे दर्द की दौलत को संभाला इस कदर,
अपने साये से भी उसको बचाने लगे।

तेरे इंतजार में हम हो गये हैं ऐसे पागल,
कि हर मौसम को तेरी पहचान बताने लगे।

इस तरह बस गये हो ख्वाबों -ख्यालों में तुम,
हर तरफ तुम-ही-तुम नज़र आने लगे।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 4 मार्च 2018

आगमन की उम्मीद

तुम एक खूबसूरत अहसास हो
जिससे कुसमित होता है मेरा जीवन।

जब तुम आते हो मेरे करीब
मन ,प्राण सब तुममे हो जाता है विलीन।

तुम्हारा स्पर्श अलौकिक सा आनंद देता है।
स्वतः मिट जाता है अपना अस्तित्व।

तेरे ख्यालों, तेरे यादों के बगैर
नहीं होती है मेरी सुबह से शाम।

आज तुम जब मुझसे दूर हो ,तब
तेरी स्मृतियाँ कर जाती हैं मुझे उदास ।

बंजर जमीं पर एक फूल खिला जाती है
तेरे आगमन की उम्मीद ...............।

डॉ. अनिता सिंह

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