मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

राम -रावण

 राम -रावण

राम हो मन में तो
तन अयोध्या सा
स्वयं हो जाएगा
मन में है रावण तो
सोने की लंका भी
ढह जाएगा।

राम हो मन में तो
मर्यादा का परचम
अवश्य लहराएगा ।

मन में हो रावण तो
मर्यादा के सारे परत
को उधाड़ जाएगा।

राम हो मन में तो
अंधेरे में भी पथ
आलोकित हो जाएगा।

रावण है मन में तो
प्रकाश पुंज में भी
पथ नजर न आएगा ।

राम अटकन है तो
रावण भटकन है
हे मनुष्य!
तुझे चुनना है कि
कौन से पथ पर
कदम बढ़ाएगा....?      
डॉ.अनिता सिंह 

बुधवार, 11 अक्तूबर 2023

बड़ा बेटा

बड़ा बेटा 

पिता के जाते हैं 
बेटे ने ओढ़ ली जिम्मेदारियाँ ।
किसी ने कुछ नहीं कहा फिर भी बेटे ने
ओढ़ ली पिता की सारी जिम्मेदारियाँ 
क्योंकि वह बड़ा बेटा है।
उनका मुकदमा, खेती-बाड़ी
रिश्तों की खातिरदारी, जिम्मेदारी
सब कुछ अबोला -अनकहा 
ओढ़ता चला गया।
पिता के जाने के बाद 
माँ की देखभाल
भाई -बहनों का ख्याल
घर- बाहर की जिम्मेदारी ।
सब कुछ पिता की तरह 
चिताओं में डूबा लिया अपने को 
टांग देता है उसी खूटी पर 
अपना जिरह बख्तर
जहाँ कभी पिता टाँगते थे ।
रख देता है चिंताओं की गठरी
उसी लोहे की संदूक में 
जिसमें पिता रखा करते थे।
बैठ जाता है उसी तख्त पर 
लेकर पुलिंदा जहाँ पिता बैठते थे।
घंटों डूब कर पढ़ता है 
जैसे पिता पढ़ा करते थे।
उतर आई है पिता की
आत्मा उसके भीतर 
खाकर सब की गलियाँ 
सहकर सभी का अपमान 
करता है पिता के हिस्से का काम।
नहीं करता इधर-उधर की बात
पिता की तरह बैठा रहता है उदास ।
सोचता है परिवार के हित की बात 
परंतु कोई साझा नहीं करता 
उससे अपने दिल की बात।
 कैसे सबको समझाए कि 
पिता होना बहुत कठिन है 
और पिता के बिना जिंदगी 
का अस्तित्व भी नहीं है।
जन्म से मृत्यु प्रमाण पत्र तक
जाने जाते हैं पिता के नाम से 
फिर कैसे मुहँ मोड़ ले पिता के काम से 
इसलिए पिता के जाते ही 
उसने ओढ़ ली सारी जिम्मेदारियाँ 
कोई उसे गलत कहे या सही 
उसे फर्क नहीं पड़ता 
उसे अपने पिता से बहुत है प्यार
पिता नाम की जरूरत तो 
हर कदम पर पड़ती है 
पिता के नाम से ही हम जाने जाते हैं 
इसलिए पिता के नाम से 
ओढ़ ली उनकी जिम्मेदारियाँ ।

डॉ.अनिता सिंह 
उपन्यासकार /समीक्षक 

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023

नयी पहल

नयी पहल
कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे परिवार को पूरी तरह से बिखेर दिया था। माँ - बाबू जी  दोनों को कोरोना ने अपने चपेट में ले लिया था। कोरोना से संघर्ष करते-करते पहले बाबूजी फिर सासू माँ ।पंद्रह दिन के अंतराल में दोनों की मौत से हम पति-पत्नी पूरी तरह टूट गए थे  कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? हम छह लोगों का हंसता - खेलता परिवार था, जिसमें से दो लोगों का अचानक यूँ छोड़ कर चले जाना पाँच साल की श्रिया और तीन  साल के श्रेयांश के लिए उदासी का कारण  बन गया था । जिसका सारा समय अपने दादा- दादी के साथ व्यतीत होता था।
          कोरोना कम होने  के बाद ऑफिस- स्कूल जब सब खुलने लगे तब मेरे सामने एक नयी समस्या आ गई थी कि  मैं श्रिया और श्रेयांश को किसके सहारे छोड़ कर  ऑफिस जाऊँ। बच्चे अलग परेशान करते मम्मा दादा- दादी के बिना घर अच्छा नहीं लगता है। मम्मा बताओ न दादा- दादी कहाँ चले गये हैं और कब आएंगे । मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ? नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। श्रेयाँश की तोतली आवाज बार-बार मेरे कानों में गूंज रही थी मम्मा दादा- दादी तहां  तले दए ?
शाम को रोहन के ऑफिस से आते ही मैंने कहा- आज हम लोग वृद्धाश्रम चलेंगे ।
रोहन ने कहा - पर आज तो कोई  त्यौहार  नहीं है।
लेकिन मुझे जाना है।
पर क्यों ?
जब हम अनाथ आश्रम से बच्चा गोद ले सकते हैं तो क्या वृद्धाश्रम  से दादा- दादी को  नहीं ला सकते हैं। फिर हमारा परिवार पूरा हो जाएगा रोहन ।
अरे वाह! यह तो बहुत ही अच्छा सुझाव है ।
मेरे दिमाग में क्यों नहीं आया ? तभी श्रिया और श्रेयांश  रोते हुए  दादा- दादी आप कहाँ चले गए? आपके बिना घर अच्छा नहीं लगता है। मम्मी दादा - दादी को बोलो ना कि हमारे साथ ही  रहें, अब हम कभी तंग नहीं करेंगे।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- पक्का न.... कभी तंग नहीं करोगे ।
उसने कहा मम्मा कभी तंग नहीं करूँगा ।तो चलो हम चलते हैं दादा -दादी को लेने ।बच्चे आज  नयी दादी को पाकर बहुत खुश हैं  और दादी एक परिवार पाकर खुश हैं । आज बच्चों के चेहरे पर खुशियाँ देखकर हम सब खुश थे ।  अब मेरा परिवार  पूरा हो  गया और मैं खुश थी कि अब कल से ऑफिस ज्वाइन करूँगी ।
डॉ.अनिता सिंह
समीक्षक/ उपन्यासकार
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
मो.न. 9907901875

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