मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

प्रेम कविता

यह सच है कि प्रेम कविता
लिखने का कभी ख्याल नहीं आया।
लिखा है मैने बहुत कुछ
विविध विषयों पर ।

लिखा है मैने
ईश्वर की मुलाकात और
गुरूदेव के आशीर्वाद पर ।
देश -दुनिया और समाज पर ।

लिखा है मैने
बेईमानी और चापलूसी
की मुलाकात पर ।
सहमें सच और
झूठ की तेज आवाज पर ।

लिखा है मैने
साधु संत के रूप में छिपे
ढोंगियों के यौन अत्याचार पर।
बच्चों के स्वभाव और
बड़ो की बात पर ।

बहुत कुछ लिखा है मैने
आगे बढ़ती बेटियों के नाज पर और
बेटियों के साथ हो रहे बलात्कार पर।

लिखा है मैने
नारी मन में छिपे विचार पर।
पर पता नहीं क्यों आजकल सिर्फ
प्रेम कविताएँ ही लिख पाती हूँ ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

इंतजार

तेरी यादों में डूबकर आँसू बहाना
मेरे प्यार की हद थी।
बंद आँखों से भी तुम्हें देख पाना
तेरे दीदार की हद थी।
दिल में असीम चाहत है फिर भी
तुमसे न कुछ कह पाना।
मर गए हम मगर खुली रहीं आँखें
मेरे इंतजार की हद थी।

डॉ. अनिता सिंह

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

स्वार्थ

स्वार्थ से परे तुम्हें चाहा था
दिल की धड़कनो को तुम्हें सुनाया था
तुमने हाथों के स्पर्श से
इस रिश्ते को नाम दे दिया।
वह तो सुगंध जैसा था
उसे दिल में वास दे दिया।
रेशम जैसा था
उसे अहसास दे दिया।
शहद जैसा था
उसे मिठास दे दिया ।
मधुर निःशब्द था
उसे आवाज दे दिया ।
सब कुछ निःस्वार्थ था
उसे स्वार्थ का नाम दे दिया ।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

क्षणिकाएँ

( 1) "चाहत "
उनके आने से पहले
उनके कदमों की आहट
जान लेती हूँ।
उनकी नजरों से ही
अपने लिए उनकी चाहत
जान लेती हूँ ।
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( 2) “नाराजगी "
ये कैसी नाराजगी
जताते हो?
गलतियां बताए बगैर
मुझे हर पल क्यों
सताते हो।
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(3) “ख्याल "
ख्याल तेरे तरफ क्यों
बार-बार जाता है ।
मेरी जिंदगी को तू
तनहा बना जाता है ।
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( 4) “ जिगर"
गुजरा नहीं कोई
तेरे बाद इधर से।
अब भी तेरी याद
नहीं गयी जिगर से।
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(5)"सलामत”
तेरे सलामत की दुआ में
हर लमहा गुजर जाता है।
कब ये वक्त तेरी याद में
तनहा गुजर जाता है।
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डाॅ. अनिता सिंह

रविवार, 18 फ़रवरी 2018

अल्फाज़

मेरे हर अल्फाज़ तेरे लिए रोते हैं।
तू नहीं है अजनबी तभी तो तेरे लिए रोते हैं।

जागती हूँ हर रात तेरी याद में
और आप हैं कि सुकून की नींद सोते हैं।

आज भी तेरी एक झलक पाकर
हम दिल का चैन खोते हैं।

जिंदगी की हर बाजी जीती है हमने
तुमसे हारकर अब सिर्फ रोते हैं।

तेरी स्मृतियाँ ऐसी कि हर पल
'अन्नु' के दिल में नश्तर चुभोते हैं ।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

सौगात

तुम्हारे हाथों में
मैने सौप दी हैं चाबियाँ
तुम जाकर देख सकते हो
मेरे दिल के तहखाने में।

तुम्हारी दी हुई सभी सौगातों को
मैने अब तक सहेज रखा है -
तुम्हारी प्यार भरी नज़र ,
तुम्हारी शरारती अदा,
तुम्हारी मासूम मुस्कान ,
तुम्हारा प्यार भरा स्पर्श ,
तुम्हारा गुस्से से लाल चेहरा,
तुम्हारा अपनापन से डाँटना और
तुम्हारा मुझे प्रोत्साहित करना
सब कुछ सहेज रखा है।

तुम्हारी पहुँच से जरा दूर
कुछ तेरी तस्वीरें भी सहेज रखी है
उन्हें ध्यान से छूना
क्योंकि वो मेरी धरोहर हैं।

तुम्हारे दी हुई अनमोल सौगातें
यादें, दर्द और अपमान
दिल के आखिरी
तहखाने में सुरक्षित है
जो तुम्हें याद भी नहीं होगा कि
तुमने कब दिया था।
लेकिन मैने सहेज रखा है
जिसे तुम आकर देख सकते हो
दिल के तहखाने में रखी सारी सौगातें
क्योंकि तुम्हारा हक है।

डॉ. अनिता सिंह


रविवार, 11 फ़रवरी 2018

अश्रु अनमोल

काश! तुम मेरे अश्रुओं को देख पाते।
जो मन में छिपी मेरी पीड़ा को
कैसे चक्षु द्वार से हैं बाहर लाते।

मेरे मन का सागर
कुछ पल के लिए रिक्त हो जाता है।
मन में चुभा हुआ काँटा
जब तरल रूप में बह जाता है।

ना जाने ये क्या करते
जब मूल्य इनका तुम समझ पाते।
देख नयनों के इस सागर को
शायद तुम विचलित हो जाते ।

तेरे लिए भले इनका है नहीं कोई मोल।
तेरी यादों में निकले ये मेरे हैं अश्रु अनमोल।

डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

स्पर्श

तेरे स्पर्श की स्मृतियाँ
दिल में हलचल मचा देती हैं।
सुने जीवन में मुस्कान खिला देती हैं।
मुझे तुम्हारे स्पर्श की आवाजें
अभी भी सुनाई देती हैं।
तुम्हारी अनुपस्थिति में
मैं तुम्हारे स्पर्श को
कागज पर उतारती हूँ।
मन ही मन पढ़ती हूँ।
दिल से महसूस करती हूँ
तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति को।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

पत्थर बन जाऊँ

काश! तुम्हारी तरह मैं भी
पत्थर बन जाऊँ।
तुम हो मेरी तरह बेचैन
और मैं तुमको तड़पाऊँ।

समाकर तेरी साँसों में
तेरे दिल को भी धड़काऊँ।
बेचैन हो तुम खोजो मुझको
मैं खुशबू सी उड़ जाऊँ।

हर पथ में तुम तलाशो मुझे
पर मैं ना तुझे नज़र आऊँ।
हो जाए गर तुमसे सामना
बिन बोले ही मैं भी आगे बढ़ जाऊँ।

बंद आँखों से जब महसूस करो तुम
मैं आँखों से अश्रु बन ढुलक जाऊँ।
ख्वाबों जब तुम मुझे प्यार करो
तेरे बाहों से परे मैं भी हो जाऊँ।

काश! तुम्हारी तरह मैं भी
पत्थर बन जाऊँ।
फिर कभी ना तुझे याद करूँ
ना फिर तेरी याद में
नयन नीर छलकाऊँ।
काश!.....................।

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

बेपनाह.......

दर्द से तपते बंजर में
शीतल ठंडक सी है तेरी याद।
मैं ओढ़ा देना चाहती हूँ
तुम्हें अपनी चाहत की चादर।
चुपके से थाम लेती हूँ
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में।
तुम जानते नहीं हो
मेरे दिल में छिपा एक राज
जो तुम्हें चाहता है बेपनाह..........।

डॉ. अनिता सिंह

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