गुरुवार, 15 मार्च 2018

अश्रु

ऐ अश्रु तू आँखों की देहरी पर न आना।
दुनिया के सारे गम को तू पलकों में छिपाना।

जख्म अपने ना तू किसी को दिखाना।
ढल जाओ आँखों से तो भी मुस्कुराना ।

हो जाए अपने पराए तो भी रिश्ता निभाना।
दिल की बात आए जुबाँ पर तो खुशी छलकाना।

जख्मों में डूबा दिल हो तो पलकों में छिप जाना।
बहुत बेदर्द है यह दुनिया, सब दर्द सह जाना ।

डॉ. अनिता सिंह

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