रविवार, 17 जून 2018

वफादारी न होती

मैं अब भी सोचती हूँ
आज भी हम साथ होते
अगर तेरे - मेरे दरमियाँ
वफादारी न होती।
पल्लवित -पुष्पित होता रिश्ता
झूठ -फरेब की बागवानी होती ।
अगर ------------------
न फिर तेरी यादों में आँसू होते
न तड़प और दर्द की कहानी होती।
अगर ---------------------
न याद आती तेरे मिलन की जुदाई में
न तेरी तस्वीर की निशानी होती।
अगर ----------------------
छला होता अगर तुमने मुझे औरों की तरह
धोखेबाज़ समझ कर तेरी सूरत बिसारी होती।
अगर --------------------------
छूआ भी तो तुमने मुझे इतनी ईमानदारी से
कि आज तक उसी की खुमारी होती
अगर----------------------------
जानते हो हम दोनो अपनी जगह
वफादार थे
तभी तो आज भी अश्रुओं की राहदारी होती।
अगर -----------------------------
तुमने मेरा होने का भरोसा न दिलाया होता
तो आज तेरी याद में मैं जज्बाती न होती
अगर----------------------------

डॉ. अनिता सिंह
17/6/18

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