शनिवार, 23 मार्च 2024

पाती प्रेम की प्रिय माधव तुम बहुत झूठे हो हर बार कहते हो कि होली में आऊँगा , लेकिन आते नहीं हो। तुम्हे याद है न हमारे विवाह को पाँच वर्ष हो गए हैं,लेकिन मैंने कभी तुम्हारे साथ होली नहीं खेली है । इस बार मेरी ख्वाहिश है कि मैं तुम्हारे गालों पर गुलाल लगाऊँ इसलिए जरूर आना ।पता है तुम्हें मेरा मन होता है कि हर दिन तुम्हें पत्र लिखूँ परंतु जब लिखने बैठती हूँ तो ऐसा लगता है कि किसी दूसरी कक्षा का प्रश्न पत्र थमा दिया गया है जिसका उत्तर मुझे नहीं पता है और घंटों उलझन में रहती हूँ कि क्या लिखूँ ? पता है जब मैं लोगों से पूछती हूँ कि अपने आखिरी पत्र कब लिखा था , तब लोगों का जवाब होता है आजकल के जमाने में पत्र कौन लिखता है..? पत्र तो पुराने जमाने में लोग लिखते थे। शायद तुम्हें भी पढ़कर ऐसा ही लगे, लेकिन मैं पुराने जमाने की ही हूँ। मुझे पुरानी चीजें अच्छी लगती है। शायद तुम भी मुझे इसीलिए अच्छे लगते हो, क्योंकि पुराने जमाने के लोग दुनिया के तमाम बुराइयों से दूर रहते हैं और तुम भी उनमें से एक हो । तुम्हारे और मेरे बीच बहुत दूरियाँ है लेकिन मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं होता है और मैं सदैव तुम्हे अपने करीब पाती हूँ। तुमसे मिली तो पहली बार ऐसा महसूस हुआ है कि किसी ने मुझे जीतने की कोशिश नहीं की फिर भी मैं अपना आप हार गई हूँ। अब हार कर भी प्रसन्न हूँ। यह प्रसन्नता मेरे अभिमान की है ,एक स्त्री होने के अभिमान की। कहते हैं स्त्रीत्व को छूना भी एक कला है.. स्त्री सिर्फ काया नहीं, हृदय है और तुमने मेरी काया नहीं, हृदय को छू लिया है ।मैं तुम्हारी भावनाओं की सरिता में डूब चुकी हूँ । तुम्हें दिल की गहराई से महसूस करना, प्यार करना, तुम्हारे लिए बेचैन रहना मेरी जरूरत बन गयी है ।मुझे यह सोचकर बहुत अच्छा लगता है कि तुम मुझे इतना चाहते हो, मुझसे मिलने और बात करने को बेचैन रहते हो। तुमसे घंटों बात करके भी ऐसा लगता है कि कुछ भी तो नहीं कहा मैंने। मैं तो बस तुम्हारे शब्दों के पीछे उसे मौन को सुनने की कोशिश करती हूँ ,वह सब समझने की कोशिश करती हूँ जो तुमने कहा ही नहीं। तुम्हारी मखमली आवाज़ तुम्हारी हंसी अक्सर मेरे कानों में गुँजती रहती है और वह प्यार भरे अल्फाज भी गुँजते हैं जिसे तुम कभी-कभी कहते हो । तुम्हारे फोन और मैसेज मुझे याद दिलाते हैं कि कोई बहुत दूर बैठा है जो मुझे बहुत चाहता है और हर वक्त यह भी यकीन दिलाते हैं कि यह सच है। आजकल तुम्हारा ख्याल मुझे बहुत अह्लादित करता है तथा तुम्हारे रूबरू आने की कल्पना से ही मैं रोमांचित हो जाती हूँ ।तुम्हें लेकर इतनी आश्वश्त हूँ कि इस बार तुम होली में अवश्य आओगे। पता नहीं मैंने जो कुछ भी खत में लिखा है शायद तुमसे कभी कह नहीं पाती। पता है तुम्हें मुझे ऐसा महसूस होता है कि जब मैं फोन में बात करती हूँ तो बाहर रहती हूँ परंतु जब तुम्हारे लिए कुछ लिखती हूँ तो भीतर उतर जाती हूँ, जैसे इस वक्त उतर गई हूँ। इस बार मैं तुम्हारा कोई भी बहाना सुनने के लिए तैयार नहीं हूँ । इस बार फिर वही बहाना मत बनाना कि मेरी छुट्टी कैंसिल हो गई ,फौज वालों को छुट्टी मिलती ही कहाँ है , मुझे तुम्हारी जिम्मेदारी के साथ देश की रक्षा की भी जिम्मेदारी है । इस बार मैं तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनुँगी । तुम सुन रहे हो न तुम्हें आना ही पड़ेगा इस बार होली में ।तुम्हारी चीर प्रतीक्षा में सस्नेह मुग्धा डॉ.अनिता सिंह उपन्यासकार/समीक्षक

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