कैसे हो तुम? मै भी क्या सवाल पूछ रही हूँ ,हमेशा की तरह तुम्हारा वही जवाब होगा ठीक हूँ ।बहुत दिनों से तुम्हारी खबर नहीं मिली तो पत्र लिख रही हूँ ।मैं हर वक्त तुम्हारी खामोशियों को पढ़ने की कोशिश करती हूँ ,लेकिन पढ़ नहीं पाती हूँ । मुझे इस बात का दुख है कि तुमने मुझे बिना कारण बताए मुझसे सुरक्षित दूरी बना ली। मुझे अब यह दूरी असहनीय लग रही है। मैं यह तो नहीं जानती कि तुमने ऐसा क्यों किया लेकिन यह सोचती जरूर हूँ कि मनुष्य जिससे प्रेम करता है कई बार उसे खोने के डर से एक सुरक्षित दूरी बना लेता है। कई बार जिसे हम आदर देते हैं, उसके समक्ष अपने को सही साबित करने की कोशिश करते हैं । इस तरह के तर्कों से इन दिनों में खुद को समझाने की कोशिश कर रही हूँ।
कुछ ऐसी बातें हैं जो तुमसे नहीं कर पाती हूँ तो स्वतः ही करती हूँ तब मुझे उस पर बहुत खीज होती है । जब मैं किसी काम के लिए अनुमान लगाती हूँ मगर मेरा अनुमान गलत हो जाता है तब मुझे एहसास होता है कि तुम्हारे बारे में मैं कैसे सही सिद्ध हो सकती हूँ ।
मैं अपनी गलतियों के लिए कोई सफाई नहीं देना चाहती हूँ ,न हीं इस रिश्ते के लिए तुम्हें कोई दोष देती हूँ ।हमारा रिश्ता किसी जरूरत या स्वार्थ की बुनियाद पर नहीं खड़ा है । हम तो संयोग से मिल गए थे। यह सब कुछ ऐसे विस्मय और सम्मोहन में हुआ कि हम एक दूसरे की आँखों में देखते हुए कब दिल में उतर गए पता ही नहीं चला। हम एक ऐसी बस में सवार हो गए थे जिसकी मंजिल अलग - अलग थी,लेकिन इस यात्रा का कड़वा सच यह है कि तुम जिसे सिर्फ दोस्त समझते रहे वह तुम्हें दिल से चाहने लगी थी, तुमसे बेइंतहा मोहब्बत करने लगी थी । तमाम बुद्धिवादी तर्कों के बीच आज भी मेरे हृदय में तुम्हारी स्मृतियाँ कुछ इस तरह से सुरक्षित है जैसे किताबों में रखा शुष्क गुलाब का फूल।
हर रिश्ते की एक उम्र होती है लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि मेरा रिश्ता अल्पायु है जो चंद महीने में ही खत्म हो जाएगा। हाँ, मैंने कुछ गलतियाँ जरूर की थी लेकिन इतनी बड़ी नहीं थी कि तुम मुझसे इतनी दूरी बना लो। मैं जब अकेले में अपनी त्रुटियों के बारे में सोचती हूँ तो उसमें हर जगह तुम्हें खोने का डर बना रहता है । मुझे पता है कि मेरी गलतियाँ इतनी बड़ी भी नहीं है जिसे तुम माफ न कर सको ,मेरी गलतियों को लेकर तुम्हारे मन में भी कोई मलीनता नहीं होगी, ऐसा मैं सोचती हूँ ।
तुम मेरे सच्चे दोस्त थे, एक ऐसे दोस्त जिसके सामने किसी भी विषय पर बात करने में मुझे कोई संकोच नहीं था । दिन भर के कठिन परिश्रम के बीच में भी तुम्हारी एक मुस्कान से मैं एक नयी जिजीविषा से भर उठती थी। तुम्हारा मेरे जीवन में होना एक शांत निर्झर का होना था जो शोर नहीं करता बल्कि अपने शीतलता से मेरे जीवन के मार्ग को आह्लादित रखता है । जीवन की यात्रा में तुम्हारे साथ मेरे वही शांत निर्मल और निस्वार्थ क्षण जुड़े थे। तुम्हारी स्नेहिल छाया में मैं निश्चिंत हो सुस्ता सकती थी। मेरे और तुम्हारे बीच कोई अनुबंध नहीं था इसलिए मैं तुम्हारी किसी बात से असहज नहीं होती थी। कई बार ऐसा हुआ कि तुम बातचीत करते समय हमेशा यह एहसास करा जाते थे कि तुम्हें परेशान देखकर मैं भी परेशान हो जाता हूँ, फिर तुम्हें मुझसे पहले ही इस बात का कैसे आभास हो चुका था कि यह मेल- मिलाप जल्द ही गहरी विश्रांति को प्राप्त होने वाला है । तब भी न जाने कैसे तुम्हारे चेहरे पर अंकित अपने भविष्य को नहीं पढ़ पायी। आज भी जब मैं अपनी इस अक्षमता पर सोचती हूँ तब मेरा दिल बहुत उदास हो जाता है ।
मेरा पागलपन आज भी तुम्हारा बेसब्री से इंतजार करता है। मैं यह बात अच्छी तरह से समझती हूँ कि तुम मुझसे नाराज नहीं हो,बस मैं तुम्हारी स्मृतियों का हिस्सा कभी नहीं बन पायी, मेरे लिए यह दुखद बात है। यदि तुम मुझसे नाराज होते तो मैं तुम्हें एक कविता लिखकर थमा देती फिर मैं पूरी तरह आश्वस्त हो जाती कि कविता पढ़कर तुम मान जाते। मगर परिस्थितियाँ विपरीत हो गई और तुम मुझसे दूर हो गए ।अब मैं चाह कर भी तुमसे बात नहीं कर पा रही हूँ।भले हम दोनों के बीच में मिलों दुरियाँ हैं फिर भी हम एक दूसरे से मन के भाव पढ़ते रहेंगे। फिलहाल मेरे पास जो तुम्हारी तस्वीर है उससे ही संवाद करती हूँ परंतु जब कोई जवाब नहीं मिलता है तब मैं रो पड़ती हूँ।
जानते हो जब तुम्हारी यादें मुझे बहुत बेचैन करती थी तब मैं बहुत उदास हो जाती हूँ और उन लम्हों में मैने कुछ कविताएँ लिखी हैं । मैं चाहती हूँ कि उन कविताओं को तुम पढ़ो । तुम्हारी याद में लिखी हुई कविताएँ सच्चे प्रेम को ही प्रदर्शित करती हैं ।दरअसल इन कविताओं के जरिए अपनी भावनाओं को तुम्हारे प्रति व्यक्त किया है तथा मेरे दिल में तुम्हारे लिए कितना प्यार है वह तुम्हें दिखाना चाहती हूँ ।मैं चाहती हूँ कि उन कविताओं को पढ़ने के बाद तुम अपना प्रिय गीत गुनगुना मेरी उदासी दूर कर दो । यह सच है कि मैं अब भी तुमसे भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई हूँ इसलिए दिल से भाषा में खत लिख रही हूँ। यदि तुम इसे समझने में सफल रहे तो मैं इसे अपना सौभाग्य समझूँगी ।तुम्हारा और मेरा रिश्ता तो उस नीम की पेड़ की तरह था जो सीख भले कड़वी दे पर तकलीफ में ठंडी छाँव देता है ।जीवन- पथ पर चलते - चलते थक चुकी हूँ, पल भर को ही तुम्हारे शीतल छाँव की जरूरत है मुझे । सुनो.., तुम सुन रहे हो न... । मैं चाहती हूँ कि एक बार हम मिलकर थोड़ी देर मौन बैठे रहें, शायद मैं अपने पुराने दोस्त को तुममे खोजने में सफल हो जाऊँ ।इस वक्त मुझे तुम्हारी आवश्कता है। मुझे इतना तो तुम पर यकीन है कि मुझे जरूरत में देखकर तुम बगैर कोई सवाल किए मेरे साथ दो पल अवश्य साझा करोगे।
तुम्हारे साथ के भरोसे में जीवन की हर कठिनाई को पार कर सकती हूँ ,इसलिए तुम्हारा आना मेरे लिए अनिवार्य हो गया है।
तुम्हारी अनुपस्थिति ने मेरे मन में एक भय पैदा कर दिया है । मैं बहुत थक चुकी हूँ, मैं तुमसे मिलकर अपने अंदर बैठे शंका का निवारण चाहती हूँ और मुझे विश्वास है कि तुम मुझे भयभीत, निराशा और हारा हुआ देखना कभी पसंद नहीं करोगे ।इसी विश्वास के सहारे मैंने अपने उसी मित्र को पुनः आवाज दी है जिसने कभी मुझसे कहा था- "ऐज ए बेस्ट फ्रेंड मैं आपके साथ हूँ।" मुझे आज भी तुम्हारे साथ की जरूरत है ।मुझे उम्मीद है कि मेरी भावनाओं को समझते हुए एक बार मुझसे जरूर मिलोगे तथा यह भी उम्मीद करती हूँ कि हम दोनों के बीच जो गलतफहमी की दीवार खड़ी है वह भी ढह जाएगी।
शेष मिलने पर ......
तुम्हारी चिर प्रतीक्षा में ......
सस्नेही राधा