सोमवार, 22 जनवरी 2018

हक

तुमने मुझे कोई हक तो नहीं दिया
फिर भी हक है मुझे
तेरी मुस्कराहट देख कर मुस्कराने का।

तुम देखकर भी अनदेखा करते हो मुझे
हक है मुझे
तुम्हें देखकर सिर झुकाने का।

गुजरते हो दिल की गली से
फिर क्यों कहते हो नफरत है मुझसे
हक है मुझे
तेरी नफरतों को दिल से लगाने का।

तुम्हारी गुनहगार हूँ मैं तो
दे लो सजा जितनी मुझे देनी है
हक है मुझे
तेरी सजा को आँचल में सजाने का।

तोड़कर सभी रिश्ते
परे कर दिया अपने से मुझे
हक है मुझे
इस खूबसूरत रिश्ते को निभाने का ।

खुदा से माँगा है मैने
तुझे बड़ी मिन्नतों से
हक है मुझे
तुमसे दिल लगाने का।

तुम मेरे हो मेरे ही रहेंगे
हर दुआ में यही माँगती हूँ
हक है मुझे
तेरे करीब आने का
और तुझे गले लगाने का।

डॉ. अनिता सिंह

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