नयी पहल
कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे परिवार को पूरी तरह से बिखेर दिया था। माँ - बाबू जी दोनों को कोरोना ने अपने चपेट में ले लिया था। कोरोना से संघर्ष करते-करते पहले बाबूजी फिर सासू माँ ।पंद्रह दिन के अंतराल में दोनों की मौत से हम पति-पत्नी पूरी तरह टूट गए थे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? हम छह लोगों का हंसता - खेलता परिवार था, जिसमें से दो लोगों का अचानक यूँ छोड़ कर चले जाना पाँच साल की श्रिया और तीन साल के श्रेयांश के लिए उदासी का कारण बन गया था । जिसका सारा समय अपने दादा- दादी के साथ व्यतीत होता था।
कोरोना कम होने के बाद ऑफिस- स्कूल जब सब खुलने लगे तब मेरे सामने एक नयी समस्या आ गई थी कि मैं श्रिया और श्रेयांश को किसके सहारे छोड़ कर ऑफिस जाऊँ। बच्चे अलग परेशान करते मम्मा दादा- दादी के बिना घर अच्छा नहीं लगता है। मम्मा बताओ न दादा- दादी कहाँ चले गये हैं और कब आएंगे । मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ? नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। श्रेयाँश की तोतली आवाज बार-बार मेरे कानों में गूंज रही थी मम्मा दादा- दादी तहां तले दए ?
शाम को रोहन के ऑफिस से आते ही मैंने कहा- आज हम लोग वृद्धाश्रम चलेंगे ।
रोहन ने कहा - पर आज तो कोई त्यौहार नहीं है।
लेकिन मुझे जाना है।
पर क्यों ?
जब हम अनाथ आश्रम से बच्चा गोद ले सकते हैं तो क्या वृद्धाश्रम से दादा- दादी को नहीं ला सकते हैं। फिर हमारा परिवार पूरा हो जाएगा रोहन ।
अरे वाह! यह तो बहुत ही अच्छा सुझाव है ।
मेरे दिमाग में क्यों नहीं आया ? तभी श्रिया और श्रेयांश रोते हुए दादा- दादी आप कहाँ चले गए? आपके बिना घर अच्छा नहीं लगता है। मम्मी दादा - दादी को बोलो ना कि हमारे साथ ही रहें, अब हम कभी तंग नहीं करेंगे।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- पक्का न.... कभी तंग नहीं करोगे ।
उसने कहा मम्मा कभी तंग नहीं करूँगा ।तो चलो हम चलते हैं दादा -दादी को लेने ।बच्चे आज नयी दादी को पाकर बहुत खुश हैं और दादी एक परिवार पाकर खुश हैं । आज बच्चों के चेहरे पर खुशियाँ देखकर हम सब खुश थे । अब मेरा परिवार पूरा हो गया और मैं खुश थी कि अब कल से ऑफिस ज्वाइन करूँगी ।
डॉ.अनिता सिंह
समीक्षक/ उपन्यासकार
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
मो.न. 9907901875
गुरुवार, 5 अक्तूबर 2023
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