बुधवार, 31 दिसंबर 2025

संस्कार

संस्कार

            पढ़ना और पढ़ाना मेरा शौक ही नहीं बल्कि मेरा जुनून है इसीलिए मैंने शिक्षकीय  पेशे का चुनाव किया। बच्चे सिर्फ मुझसे ही नहीं सीखते बल्कि मैं भी उनसे बहुत कुछ सीखती हूँ ।एक कक्षा में चालीस बच्चे जिसमें मुख्य रूप से चालीस अलग-अलग स्वभाव के बच्चों को अलग-अलग तरीके से संभालना- समझना, सही राह दिखाना यही मेरा उद्देश्य था ।  हर वर्ष कुछ ऐसे बच्चों से सामना होता था जो बहुत उद्दंड और अशिष्ट होते थे। जिनका पढ़ाई - लिखाई से दूर-दूर तक संबंध नहीं होता था। वह तो स्कूल माता - पिता के कहने पर आ जाते थे। स्कूल तो माध्यम होता था उनके  शरारतों को अंजाम देने का।
    कक्षा अध्यापक के रूप में कुछ उदंड बच्चों से सामना मेरा दसवीं सी की कक्षा में हुआ। न उनमें शिष्टाचार था ,न बात करने की तमीज। कक्षा काङङङङङङङङङङ माहौल बदलता जा रहा था और समय रेत की तरह फिसलता जा रहा था। मैं हर दिन उन्हे नैतिक  मूल्यों की कहानियाँ  सुनाकर,डाट -फटकार कर समझाने -सिखाने का प्रयास करती परंतु बहुत समझाने पर भी जब बच्चों में बदलाव नहीं आ रहा था तब मैंने कुछ बच्चों के अभिभावकों को बुलाकर बात किया । इसका असर कुछ बच्चों पर तो हुआ , परंतु एक बच्चे पर  कोई असर नहीं हुआ । वह मुझसे भी बहुत ही  उदंडता से बात करता था। शिक्षकों का सम्मान तो उसके अंदर था ही नहीं । मैंने धीरे-धीरे उसकी और ध्यान देना छोड़ दिया था , तत्पश्चात  पीटीएम में उसके पिताजी आए साथ में बच्चा भी था। मुझसे पूछने लगे मैम अभी संस्कार कैसा है पढ़ाई में?
मैंने कहा सर रिजल्ट आपके सामने है आप देख सकते हैं आपको पता चल ही जाएगा कि कितना पढ़ता है ।
मैम कक्षा में व्यवहार कैसा है?
सर मुझे यहाँ पढ़ाने के पैसे मिलते हैं अपनी बेइज्जती कराने के नहीं। मैने अब इसे बोलना छोड़ दिया है।
उसके पिता की आंखें नम थी ।
मैम आप ऐसा बोलेंगी तो कैसे पढ़ेगा ?
यह घर में अपनी माँ से भी इसी तरह बात करता है। करता होगा सर , परंतु मैं इसकी माँ नहीं हूँ जो हर दिन अपमान सहन करूँ।
मेरी बातों का जवाब नहीं था उनके पास...।
कुछ देर  चुपचाप  बैठे बाप - बेटे उत्तर पुस्तिका के पन्ने पलटते रहे और मैं  दूसरे अभिभावकों से बात करने लगी। कुछ देर बाद उसके पिताजी ने कहा ठीक है मैम, मैं चलता हूँ ,परंतु आप थोड़ा ध्यान दीजिएगा संस्कार पर।
कहते हुए उनकी आंखें नम थी और दोनों हाथ जुड गए थे ।
यह कहने की जरूरत नहीं है हमारे लिए सभी बच्चे समान हैं । बच्चों की शरारत बर्दाश्त कर लेते हैं लेकिन किसी भी शिक्षक का एवं अपना अपमान नहीं सहन कर सकती सर, हमारा भी आत्मसम्मान है। इसका तो सिर्फ नाम ही संस्कार है, संस्कार तो इसके अंदर है  ही नहीं। वह अपने बच्चे के साथ  नम आंखों से विदा हो गए, परंतु मैं परेशान हो गई ।
मुझे उनसे इस तरह बात नहीं करना चाहिए था ।मैं शिक्षक हूँ, हर बच्चे को सही राह दिखाना मेरी जिम्मेदारी है और शायद मैंने जो भी कहा था वह बच्चे को सुधारने के उद्देश्य से ही कहा था।
उस मुलाकात के बाद से संस्कार की जिंदगी का नया अध्याय आरंभ हुआ।  पहले तो उसने अपने व्यवहार में बदलाव किया तत्पश्चात कक्षा में पढ़ाई में ध्यान देना लगा तो शरारत से ध्यान खुद-ब-खुद हट गया। शिक्षकों के प्रति भी उसका रवैया बदल गया था।अब  सभी शिक्षकों से शिष्टता से बात करने लगा था। मैं कहीं भी रहूँ चाहे उसे कितना भी अनदेखा कर आगे बढ़ जाऊँ वह सामने से आकर अभिवादन अवश्य करता । मैंने नोटिस किया कि मेरे अनदेखा करने से वह सुधर रहा है तो मैंने उसे अनदेखा करना जारी रखा।दो महिने पश्चात प्री बोर्ड की परीक्षा में उम्मीद से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया, तब मैंने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा- तुम्हारी उत्तर पुस्तिका देखकर मुझे लग रहा है कि तुम आजकल पढ़ाई में ध्यान देने लगे हो ,सिर्फ मेरे विषय में ही नहीं बल्कि सभी शिक्षक बोल रहे थे।  कुछ देर तक तो संस्कार मुझे ऐसे देख रहा था जैसे उसे मेरी बात पर यकीन ही नहीं था । फिर मुस्कुराहट के साथ मुझसे कहा - थैंक यू मैम।
प्री बोर्ड के पश्चात परीक्षा अवकाश शुरू हो गया था। इस बीच उसने मुझे एक दिन मैसेज किया- मैम मैं आपको पास होकर दिखाऊँगा , सिर्फ पास  ही नहीं बल्कि अच्छे नंबर से पास होकर दिखाऊँगा ।मैं उसे रिप्लाई देने के बारे में सोचती रही लेकिन रिप्लाई नहीं दे पायी । जिस दिन बोर्ड  की परीक्षा थी उस  दिन आकर  मेरा चरण स्पर्श किया और बोला-  मैम मुझे आपके आशीर्वाद की सबसे ज्यादा जरूरत है । मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ था , है और रहेगा बेटा ।

               जब परीक्षा परिणाम आया तो मैं उसका परिणाम देखकर खुश थी क्योंकि शुरू में उसके जो हालात थे उस हिसाब से बहुत अच्छे नंबर आए थे। अब मैं उसे नंबर से नहीं बल्कि उसे व्यक्तित्व से आंकना प्रारंभ कर दी थी । नंबर तो वैसे भी एक गिनती है ।जब रिजल्ट निकलता है तभी लोग नंबर पूछेते हैं ।बाद में वह नंबर नहीं बल्कि बच्चों का व्यक्तित्व ही काम आता है । मेरी नजर में अब वह एक शिष्ट और संस्कारी छात्र था । मैं हमेशा अपने बच्चों को यही सिखाती हूँ कि परीक्षा के नंबर जब परिणाम आता है तभी आपको पहचान दिलाते हैं लेकिन आपका व्यक्तित्व आपको सभी जगह पूरी जिंदगी सम्मान दिलाता है, इसलिए पहले अच्छे इंसान बनो यदि इंसान बन गए तो पढ़ाई तो अपने आप कर ही लोगे।
विद्यालय खुलने पर मैंने उससे पूछा रिजल्ट कैसा आया, तुमने मुझे बताया नहीं?
मैम वह नंबर थोड़े कम थे इसलिए नहीं बताया आपको ।
नंबर कम नहीं आया है बेटा; जितना आया है बहुत अच्छा आया है।
लेकिन मैं शुरू से पढ़ा होता तो और अच्छे नंबर आते।
हाँ यह तुम्हें महसूस हो रहा होगा लेकिन मैं तो खुश हूँ कि अब तुम पढ़ने लगे हो।
थैंक यू मैम , अब मन लगाकर पढ़ूँगा ।
11वीं में भी मैं उसे पढ़ा रही थी । अब वह पहले जैसा  उदंड नहीं था ।उसमें वह सारे गुण थे जो एक शिष्ट छात्र में होते हैं ।सभी शिक्षकों से  सम्मान के साथ बात करने लगा था ।
    बिगड़े हुए बच्चे को सुधरते देखकर मुझे महसूस होता है कि मेरा शिक्षक होना सार्थक हो गया, परंतु मुझे सबसे अधिक आश्चर्य तो उस दिन हुआ जब मैने गृहकार्य में 11वीं के बच्चों को अपने प्रिय शिक्षक पर अपने विचार लिखने को कहा था और उसने मेरे लिए लिखा था -"मेरे विचार से आप एक अच्छी शिक्षिका हैं, क्योंकि आप दंड उसी को देती हैं जिसकी गलती होती है ।आप सभी बच्चों को समान प्यार करती हैं तथा पढ़ाई के साथ-साथ जीवन जीने की भी सीख देती हैं । जब मैं आपकी कक्षा में था तब मैं आपकी बात नहीं मानता था तब मुझे ऐसा लगता था कि आप मुझे समझ नहीं पाती हैं, लेकिन अब मैं एक अच्छा छात्र हूँ और मुझे अच्छा छात्र बनाने में आपका ही हाथ है। आप एक शानदार शिक्षक हैं; जो अपने कार्य के प्रति सदैव जागरूक और अनुशासित रहती हैं ।" उपर्युक्त कथन पढ़कर मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही लड़का है जो बात- बात पर मुझसे उलझ जाता था । कभी मेरी बात मानने को तैयार नहीं होता था ।हमेशा दस बहाने बनाकर बहस करता था । आज वह इतनी अच्छी बातें  मेरे बारे मे लिखा है ।
खैर  जो भी हो मेरा उद्देश्य तो पूरा हुआ जिसका परिणाम हमारे सामने था।
          एक वर्ष  के बाद पीटीएम में अपनी मम्मी को मिलवाने मेरे पास लेकर आया। मैम ये  मेरी मम्मी हैं। उनके दोनों हाथ जुड गए। मैम संस्कार कैसा है ?
अब इसके बारे में कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं है अब यह संस्कार सचमुच में संस्कारी बन गया है।
क्यों संस्कार यह बात तुम भी मानते हो न?
जी मैम; वह आपके कारण ।
फिर उसकी मम्मी ने कहा - मैम पढ़ाई में भी ध्यान देने लगा है ।यह सब आपके कारण ही संभव हो सका ।
मैंने संस्कार से कहा - "जानते हो बेटा, मुझे अनेक सम्मान मिला है, लेकिन तुमने जो आज सम्मान दिया है वह उन सबसे बढ़कर है । तुम अच्छे से पढ़ो - लिखो, आगे बढ़ो और मुझे क्या चाहिए।"
माँ- बेटे मुझसे विदा होकर चले गए और मैं मन ही मन खुशी से आप्लावित हो रही थी और एक वर्ष पूर्व उसके पापा की नम आंखों को याद कर रही थी कि उस समय अपने बच्चे के व्यवहार के कारण वह मेरे समक्ष कितने निरीह और विवश थे और आज उसी बच्चे के कारण माँ का सिर गर्व से ऊँचा हो गया था।

          समय का पहिया घूम रहा था। मैं स्कूल छोड़कर कॉलेज में आ गयी। व्यस्तताओं के बीच भी स्मृतियों में कहीं न कहीं संस्कार  था ।तीन साल बाद उसी संस्कार का मेरे पास फोन आया और कहने लगा मैम आप कहाँ हैं ? मैं आपसे मिलना चाहता हूँ ।
मैंने उससे कहा - मिलना चाहते हो तो  घर  में या फिर कॉलेज में  आ जाओ।
वह मिलने के लिए मेरे कॉलेज आया । चरण स्पर्श  किया और बहुत  उत्साहित होकर बताया मैम मेरा एमबीबीएस में सिलेक्शन हो गया है  । मैं फर्स्ट ईयर का छात्र हूँ ।उसे अपने सामने देखकर मैं जिस खुशी को महसूस कर रही थी उसे मैं शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर सकती हूँ । इतना ही नहीं वह अपने साथ अपना अप्रेन लेकर आया था और मुझे दिखाते हुआ बोला -मैम,मैं इसे पहनकर आप के साथ फोटो लूँगा ।  वो मेरे साथ फोटे लेने के बाद बहुत  खुश था ।मैं सोच रही थी कि10th क्लास में उसकी जो स्थिति थी कभी कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह बच्चा कभी एमबीबीएस की पढ़ाई करेगा ,लेकिन आज जो बच्चा एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है वह एक संस्कारी छात्र  संस्कार  मेरे सामने था ,जिसे देखकर मैं गौरवान्वित थी और वह मेरे समक्ष नतमस्तक था कि मैं आपके कारण आज यहॉं तक पहुँचा हूँ । मैंने कहा - मैं नहीं ,  वो ऊपर वाला किसी को माध्यम  जरूर बनाता है , बस मैं माध्यम हूँ । वह मेरे चरणों में झुक गया ।संस्कार सच में तुम अब संस्कारी बन गए हो।
मैम; आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे ।
मैने कहा- मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है बेटा।

डॉ.अनिता सिंह
समीक्षक/उपन्यासकार
बिलासपुर (छ.ग. )

12/02/2025

1 टिप्पणी:

  1. एक शिक्षक की वास्तविक कमाई उसका छात्र होता है ,अगर छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है तो शिक्षक का शिक्षक बनना सिद्ध हो जाता है अन्यथा आजकल तो सभी अध्यापक अपने छात्रों को अपने-अपने तरीके से पढ़ा ही रहे हैं। किंतु आपके जैसा पढ़ाना ही सही ढंग से पढ़ाना है। बहुत-बहुत धन्यवाद आपको और आपके छात्र को जो अपनी मंजिल प्राप्त करके आपको गुरु दक्षिणा प्रदान किया है।धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

Popular posts