रविवार, 2 सितंबर 2018

तेरी यादों का सपना

अब तेरी यादों का सपना
मन की आँखों में हरपल तिरता है ।
अब गीत -गजल और कविता में
मन तुझको ही ढूँढता फिरता है ।

मैं तेरे बिन तनहा अकेली हूँ
अब अपनी छाया से भी डरती हूँ।
तनहा रातों में सिसक-सिसक कर
तेरी तस्वीर से बातें करती हूँ।

झूठे सपने बुन-बुन कर
अब आँखें है हार गयी।
कैसे दिल की बात कहूँ
तुम तक न दिल की आवाज गयी।

भटक रही हूँ अहसासों के
उबड़ -खाबड़ राहों में ।
अब तनहा रस्ता तकती हूँ
आकर लेलो 'प्रभु 'अपनी बाहों में ।

डॉ. अनिता सिंह
2/9/2018

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