तब और अब
सब बात तब बात इतनी सी थी कि
तुम अच्छे लगते थे
अब बात इतनी बढ़ गई कि
तुम बिन कुछ अच्छा ही नहीं लगता है
तब तुम दिल में धड़कते थे
अब हालात ऐसे हैं कि
मेरी जिंदगी ही तुमसे धड़कती है
तब तुम्हें जी भर कर देखने की चाहत थी
अब नजरों में इस कदर समाए हो कि
तेरे सिवा कुछ नजर ही नहीं आता है।
तब तुम्हें अपना बनाने की चाहत थी
अब इस कदर मेरे हो गए हो कि
तुम बिन मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है।
डॉ.अनिता सिंह
समीक्षक/उपन्यासकार
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