मायका माँ के साथ ही,
खत्म हो जाता है !
सच कहूँ तो ,ससुराल भी
सास के साथ ही
खत्म हो जाता है !
रह जाती हैं बस उनकी
अमिट यादें..,उनकी बातें ।
त्योहारों पर कब क्या बनाना,
क्या तैयारी करना,
एक दिन पहले से ही
सभी को बताना
अच्छा लगता था ।
सब कुछ पता रहता था
सासू माँ को
मौसमी चीजे खाना चाहिए
यह स्वास्थ के लिए अच्छा है
उनका बताना उनका
अच्छा लगता था।
घर से आते वक्त
मना करने पर भी
न जाने कितनी चीजों में
स्नेह समेट कर बैग में भर देना
अच्छा लगता था ।
व्रत उपवास मैं क्या खाना
और क्या नहीं खाना चाहिए
उनका यह बताना
अच्छा लगता था।
उनकी उस *ख़ुश रहो*
वाले आशीष की
जो उनके चरण स्पर्श
करते ही मिलती थी
तो बहुतअच्छा लगता था।
उनकी उस दूरदृष्टि की जो,
मेरी अपूर्ण ख्वाहिशों के
मलाल को सांत्वना देते दिखतीं कि
'ग़म खाने से देर-सबेर सब
मिलता ही है जो किस्मत में है ।
अच्छा लगता था।
उनकी उस घबराहट की,
जो डिलीवरी के लिए अस्पताल
जाने के नाम से शुरू हो जाती
पता नहीं क्यों जी घबड़ा रहा है
कहना.अच्छा लगता था।
उनके उस उलाहने की,
जो बच्चों संग मस्ती के
दौरान सुनाया जाता,
हमने भी तो बच्चो को पाला है।
कहना अच्छा लगता था।
पहले तो कोई न कोई
उनसे मिलने घर आते ही थे ,
घर भरा रहता था ।
उनका यूँ ही बरामदे
या दरवाजे पर बैठना
अच्छा लगता था।
अब तो मैं त्योंहारो पर
अक्सर कुछ न कुछ भूल जाती हूँ,
अब कोई नहीं जो याद दिलाये!
अब ....अच्छा नही लगता है।
अब कोई त्यौहारों पर आता नही
अब रिश्तेदारों का आना भी बंद हो गया है
ससुराल में सास-ससुर नही होते तो
ससुराल भी अच्छा नहीं लगता है।
अब तो सास के बिना
न तो घर अच्छा लगता है
और न ही द्वार
मंदिर भी पड़ा है सुनसान
सच ही है सास के बाद
ससुराल भी ख़त्म हो जाता है..!
लोगों का अपनापन और
प्यार भी खत्म हो जाता है।
जब तक सास हैं ससुराल है
नहीं तो पूरा घर ही सुनसान है।
अश्रुपूरित श्रद्धांजली के साथ
दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सासू माँ को समर्पित
डॉ.अनिता सिंह
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