बुधवार, 20 सितंबर 2023

तुझमें डूब गयी

तुझमें डूब गयी

जाने कब मैं तुझमें डूब गई 
पा न सकी मैं तेरी थाह
 दुनिया के उथले रिश्ते में 
पाती हूँ तेरा स्नेह अथाह।

कभी डूबती, कभी उतराती 
कभी लहरों पर हूं करती नर्तन 
जब जब तुझको महसूस किया 
तेरे नाम का करती हूँ किर्तन ।

मन की इस भटकन में
 तेरा सुमिरन ही करती हूँ 
तेरी माला जप-जप कर ,प्रभु!
तुझको ही अर्पण करती हूँ।

डॉ. अनिता सिंह 
समीक्षक/उपन्यासकार 

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