रविवार, 22 जुलाई 2018

मेरा आनंद

मेरा आनंद तुझ पर ही निर्भर है
इसलिए विकल होती हूँ हर बार।
प्रभु अगर तुम नहीं होते तो
मेरा प्रेम था निष्फल बेकार।
तुमको ही लेकर रहती हूँ
तुम बसते हो हृदय के पार।
कितना मुग्धकारी रूप है तुम्हारा
तभी तो देखने आती हूँ तेरे द्वार।
प्रेम तुम्हारा है सब पर
फिर मुझसे ही क्यों दूर हो जाते हो हर बार।
यह तुम्हारी झिलमिल मूरत
दिखाती है कितने रूप अपार।
मेरे जीवन में प्रेम को लाने वाले
मेरे कृष्णा एक बार हो जाओ साकार।
आँखों से ओझल मत होना
रखूँ तुझको पलको में बाँध।

डॉ. अनिता सिंह
22/7/2018

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