मंगलवार, 28 मई 2019

अक्षर

कहाँ कहाँ छिपे रहते हैं अक्षर
होता है इनका मिलन तो शब्द बन जाते हैं अक्षर

जब कागज पर उभर आतें हैं
तब जीवंत बन जातें हैं अक्षर ।

ये खुरदरे अक्षर स्निग्धता का एहसास कराते हैं
अक्षरों की सुनो ये विश्वास दिलातें हैं।

कभी अजान की ध्वनियों में गुँजते
कभी प्रार्थना के मंत्र बन जाते अक्षर ।

कभी बजते हैं मधुर घंटी बनकर
कभी युद्ध वाद्य बन चहुँ ओर पसर जाते अक्षर।

अक्षरों में ही तो छिपा है पीड़ा और प्रीत
अक्षर ही निभा जाते हैं नफरत की रीत।

अक्षरों की सुनो ये कुछ कहतें हैं
कुछ नयी कुछ पुरानी यादों को बुनते हैं।

इन अक्षरों को जब जब मैं गढ़ती हूँ
तब कुछ अनोखा सा मैं रचती हूँ।

डॉ. अनिता सिंह

28/5/2019

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