किताब है तू
इक धूँधला सा आइना है तू
आधा अधूरा सा मेरा ख्वाब है तू।
वक्त का टूटा लमहा है तू
मेरी आँखों में ठहरा सैलाब है तू।
न जुड़ पाये न अलग हुए
उलझा हुआ सा हिसाब है तू।
गुमनामी की भीड़ में गुम गये हो कहीं
जो गुम गया वही खिताब है तू ।
आती है हर पल तेरी खुशबू
तू ही बेला तू ही गुलाब है तू।
बहुत पढ़ने की कोशिश करती हूँ तुझे
पर धूँधले शब्दों की किताब है तू।
डॉ. अनिता सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें