कैसे सम्भालूँ अपने आप को
सम्भलने नहीं देते हो तुम।
तेरी यादों का गुलदस्ता बसा है मेरे दिल में
लेकिन उसको खिलने नहीं देते हो तुम।
तेरी एक झलक से ही बेकाबू हो जाता है दिल ।
लेकिन मेरे दिल को धड़कने नहीं देते हो तुम।
चाहती हूँ दूर चली जाऊँ तेरी यादों की घरौदें से
पर यादों से बाहर निकलने नहीं देते हो तुम।
बहुत तर्क होती है दिल और दिमाग में
दिल को कहीं और भटकने नहीं देते हो तुम।
तेरी नफरतों को लेकर चलूँ जिस राह पर
उस राह पर भी चलने नहीं देते हो तुम।
बदल देना चाहती हूँ अपने आपको मैं
लेकिन बदलने भी नहीं देते हो तुम।
चाह है कि दिल में तेरे जगह पाऊँ
पत्थर दिल को अपने पिघलने नही देते हो तुम ।
हैरान परेशान हूँ अपनी जिंदगी से बहुत
पर इन परेशानियों से उबरने नहीं देते हो तुम।
फैली है हर तरफ तेरी यादों की खुशबू
चाहूँ भी तो भूलने नहीं देते हो तुम।
जीना नहीं चाहती तुमसे अलग होकर
मगर चाहत ऐसी की मरने नहीं देते हो तुम।
डॉ. अनिता सिंह
गुरुवार, 26 मार्च 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Popular posts
-
मुझे कुछ पता नहीं था कहाँ,कैसे, कब जाना है । रात में अचानक नींद खुली तो मैं छटपटा कर उठ बैठी । ठीक ही तो कह रहे थे मैंने इतने वर्ष ...
-
अनंत इच्छाएँ.... अनंत इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं हर पल मन में चलती रहती हैं। सुबह उठते ही अखबार पढ़ती हूँ तो खोजी पत्रकार होने की इच...
-
अब मैं धीरे-धीरे बुझने के लगी हूँ। करती नहीं अब किसी से बात । सुनती नहीं जीवन का राग । करती नहीं किसी की तारीफ , क्योंकि अब मैं--------...
-
अनंत इच्छाएँ.... अनंत इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं हर पल मन में चलती रहती हैं। सुबह उठते ही अखबार पढ़ती हूँ तो खोजी पत्रकार होने की इ...
-
बड़ा बेटा पिता के जाते हैं बेटे ने ओढ़ ली जिम्मेदारियाँ । किसी ने कुछ नहीं कहा फिर भी बेटे ने ओढ़ ली पिता की सारी जिम्मेदारियाँ क्योंकि व...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें