सोमवार, 30 नवंबर 2020

वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

ऐसा क्या गुनाह किया कि,
सबने मुझे छोड़ दिया।

पाला था जिसे प्यार से इतना,
उसने ही दिल तोड़ दिया।

परिवार से ही खुशियाँ थी,
पर परिवार ने ही मुंह मोड़ लिया।

कहाँ गए संस्कारों के मोती,
क्यों सबने उसे बिखेर दिया।

कहाँ रह गयी परवरिश में कमी,
जो अपनों ने ही छोड़ दिया।

जहाँ बसती थी खुशियाँ हर दिन,
वह निकेतन सबने तोड़ दिया।

जिसका भगवान के बाद दूजा स्थान,
उन्हें क्यों वृद्धाश्रम में ढकेल दिया।

बना छत्र छाया यह वृद्धाश्रम,
जिसने टूटे दिलों को जोड़ दिया।

डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ)

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