वृद्धाश्रम
ऐसा क्या गुनाह किया कि,
सबने मुझे छोड़ दिया।
पाला था जिसे प्यार से इतना,
उसने ही दिल तोड़ दिया।
परिवार से ही खुशियाँ थी,
पर परिवार ने ही मुंह मोड़ लिया।
कहाँ गए संस्कारों के मोती,
क्यों सबने उसे बिखेर दिया।
कहाँ रह गयी परवरिश में कमी,
जो अपनों ने ही छोड़ दिया।
जहाँ बसती थी खुशियाँ हर दिन,
वह निकेतन सबने तोड़ दिया।
जिसका भगवान के बाद दूजा स्थान,
उन्हें क्यों वृद्धाश्रम में ढकेल दिया।
बना छत्र छाया यह वृद्धाश्रम,
जिसने टूटे दिलों को जोड़ दिया।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ)
सोमवार, 30 नवंबर 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Popular posts
-
मुझे कुछ पता नहीं था कहाँ,कैसे, कब जाना है । रात में अचानक नींद खुली तो मैं छटपटा कर उठ बैठी । ठीक ही तो कह रहे थे मैंने इतने वर्ष ...
-
अनंत इच्छाएँ.... अनंत इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं हर पल मन में चलती रहती हैं। सुबह उठते ही अखबार पढ़ती हूँ तो खोजी पत्रकार होने की इच...
-
अब मैं धीरे-धीरे बुझने के लगी हूँ। करती नहीं अब किसी से बात । सुनती नहीं जीवन का राग । करती नहीं किसी की तारीफ , क्योंकि अब मैं--------...
-
अनंत इच्छाएँ.... अनंत इच्छाएं कभी खत्म ही नहीं होती हैं हर पल मन में चलती रहती हैं। सुबह उठते ही अखबार पढ़ती हूँ तो खोजी पत्रकार होने की इ...
-
बड़ा बेटा पिता के जाते हैं बेटे ने ओढ़ ली जिम्मेदारियाँ । किसी ने कुछ नहीं कहा फिर भी बेटे ने ओढ़ ली पिता की सारी जिम्मेदारियाँ क्योंकि व...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें