पिता के जाते हैं
बेटे ने ओढ़ ली जिम्मेदारियाँ ।
किसी ने कुछ नहीं कहा फिर भी बेटे ने
ओढ़ ली पिता की सारी जिम्मेदारियाँ
क्योंकि वह बड़ा बेटा है।
उनका मुकदमा, खेती-बाड़ी
रिश्तों की खातिरदारी, जिम्मेदारी
सब कुछ अबोला -अनकहा
ओढ़ता चला गया।
पिता के जाने के बाद
माँ की देखभाल
भाई -बहनों का ख्याल
घर- बाहर की जिम्मेदारी ।
सब कुछ पिता की तरह
चिताओं में डूबा लिया अपने को
टांग देता है उसी खूटी पर
अपना जिरह बख्तर
जहाँ कभी पिता टाँगते थे ।
रख देता है चिंताओं की गठरी
उसी लोहे की संदूक में
जिसमें पिता रखा करते थे।
बैठ जाता है उसी तख्त पर
लेकर पुलिंदा जहाँ पिता बैठते थे।
घंटों डूब कर पढ़ता है
जैसे पिता पढ़ा करते थे।
उतर आई है पिता की
आत्मा उसके भीतर
खाकर सब की गलियाँ
सहकर सभी का अपमान
करता है पिता के हिस्से का काम।
नहीं करता इधर-उधर की बात
पिता की तरह बैठा रहता है उदास ।
सोचता है परिवार के हित की बात
परंतु कोई साझा नहीं करता
उससे अपने दिल की बात।
कैसे सबको समझाए कि
पिता होना बहुत कठिन है
और पिता के बिना जिंदगी
का अस्तित्व भी नहीं है।
जन्म से मृत्यु प्रमाण पत्र तक
जाने जाते हैं पिता के नाम से
फिर कैसे मुहँ मोड़ ले पिता के काम से
इसलिए पिता के जाते ही
उसने ओढ़ ली सारी जिम्मेदारियाँ
कोई उसे गलत कहे या सही
उसे फर्क नहीं पड़ता
उसे अपने पिता से बहुत है प्यार
पिता नाम की जरूरत तो
हर कदम पर पड़ती है
पिता के नाम से ही हम जाने जाते हैं
इसलिए पिता के नाम से
ओढ़ ली उनकी जिम्मेदारियाँ ।
डॉ.अनिता सिंह
उपन्यासकार /समीक्षक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें