बुधवार, 29 नवंबर 2017

धीरे - धीरे

अब मैं धीरे-धीरे बुझने के लगी  हूँ।
करती नहीं अब किसी से बात ।
सुनती नहीं जीवन का राग ।
करती नहीं किसी की तारीफ ,
क्योंकि अब मैं----------------
मार दिया मैने अपना स्वाभिमान
नहीं करती मैं अपनी मदद
सिमट गयी मेरी खूबसूरती
दिखने लगी हूँ मैं बदसूरत
क्योंकि .........................
करने लगे हैं सब मुझसे नफरत
नहीं करते लोग अब मेरी तारीफ
बन गयी हूँ अपनी आदतों की गुलाम
नहीं करती अब कोई नया काम
क्योंकि_------------------------
सब कुछ छूट गया पीछे
जिसे रखा था जकड़कर
नहीं देख पाती हूँ सुनहरे ख्वाब
डरती हूँ ख्वाबों को सामने देखकर
क्योंकि_-----------_-----------
पढ़ती हूँ सिर्फ किताबें
 जीवन का रास्ता ढूढने
लेकिन कुछ भी नहीं मिलता है
तब हो जाती हूँ निराश
क्योकि...........................

         डॉ.अनिता सिंह

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