शनिवार, 5 जनवरी 2019

तुम एक रहस्य हो

तुम एक रहस्य हो
तुम्हें जान नहीं पाती हूँ।

तुम्हें जानना तो चाहती हूँ।
पर पहचान नहीं पाती हूँ।

तुम्हें समझना तो चाहती हूँ।
पर समझ नहीं पाती हूँ।

हर पल महसूस करती हूँ।
पर सदैव अदृश्य पाती हूँ।

दर्द कैसा भी हो।
तुम्हें करीब पाती हूँ।

लगता है हर पल मेरे आस- पास हो।
पर क्यों? पहचान नहीं पाती हूँ।

कितने ही रिश्ते -नाते है।
पर तेरे रिश्ते को सदैव अटूट पाती हूँ।

चाहे सुख हो या दुख ।
सदैव अपनी यादों में तुम्हें सजाती हूँ।

एक उम्मीद की किरण हो तुम ।
इसलिए तो दृढ़ विश्वास जताती हूँ।

तेरी सूरत है बसी दिल में।
लेकिन हर बार नया पाती हूँ।

तुम रहस्य या अनसुलझी पहेली हो।
तभी तो तुम्हें जान नहीं पाती हूँ।

डॉ. अनिता सिंह
05/01/2017

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