संत आज के बड़े निराले
गेरूआ है सिर्फ वसन उनका
मन मलिन और काले।
त्याग तपस्या से नाता तोड़ दिया है ।
नैतिकता का उत्तरदायित्व छोड़ दिया है।
राह दिखाने वाले बन गए राह के रोड़े।
गैरिक वस्त्रों की मर्यादा भूलकर
व्यभिचार अनैतिकता में डूबकर
मदिरा के उड़ेल रहें हैं प्याले ।
लोभ -लालच में फँसे हुए हैं
भोग -विलास में डूबे हुए हैं
संपत्ति संग्रह में लिप्त हुए हैं
धर्म के रखवाले।
अच्छे -बुरे की पहचान नहीं है
धर्म का वास्तविक ज्ञान नहीं है
फिर भी प्रवचन करते सांझ सबेरे।
संत -महात्मा के गुणों से कोशो दूर
शानो -शौकत में जीने को मजबूर
अध्यात्म के नाम पर करते चोचले सारे।
धर्म के ठेकेदार बने हैं
जनता को गुमराह किए हैं
अपना उल्लू सीधा करने करते हैं उद्यम सारे।
महिलाओं का यौन शोषण इनका धार्मिक कृत्य है
सलाखों के पीछे जाना इसका प्रमाणित सबूत है
अरबों का व्यापार करते ढोंगी बाबा प्यारे ।
डॉ. अनिता सिंह
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