सुरभि🌹🌹 श्रीवंत🖊🖊
Page
कविताऐं
My profile
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
अपरिचित
तुम अपरिचित से
कब परिचित बन गए
पता ही नहीं चला
इससे अच्छा होता कि
तुम अपरिचित ही रहते
न परिचित होते
न मेरे दिल में बसते
न तुम्हें पाने की तड़प होती
न आसुओं की छलक होती।
डॉ. अनिता सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Popular posts
हक
तुमने मुझे कोई हक तो नहीं दिया फिर भी हक है मुझे तेरी मुस्कराहट देख कर मुस्कराने का। तुम देखकर भी अनदेखा करते हो मुझे हक है मुझे तुम्हे...
प्राइवेट स्कूल के शिक्षक की व्यथा
प्राइवेट स्कूल --‐------- प्राइवेट स्कूल की व्यथा वह नहीं समझ है सकता । जो सरकारी पैसे से है पल्लवित -पुष्पित होता । कोरोना के खतरे ...
स्वाति
तू स्वाति का बूंद 💧 है मेरा मैं हूँ चातक तेरी । तू चाँद 🌙 की शीतल चाँदनी मैं हूँ तेरी चकोरी । कब आओगे मीत मेरे ...
नयी पहल
नयी पहल कोरोना की दूसरी लहर ने मेरे परिवार को पूरी तरह से बिखेर दिया था। माँ - बाबू जी दोनों को कोरोना ने अपने चपेट में ले लिया था। कोरोना...
कांवड़ यात्रा
श्रावण मास आरंभ होते हैं कांवड़ियों की कांवड़ यात्रा का भी शुभारंभ हो जाता है। कांवड़ियों की शिव के प्रति अटूट भक्ति देखकर ही मन में उनक...
राहत है तू
कैसे भूला दूँ तुम्हें मेरी वर्षों की चाहत है तू। नींद आती नहीं है मुझे मेरी वर्षों की आदत है तू। तेरी कमी महसूस होती है मुझे मेरी जिंदग...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें