गुरुवार, 28 नवंबर 2019

भूल जाना

तुमने कभी कहा था मुझसे
धीरे- धीरे भूल जाना मुझे
मैं भी भूल जाना चाहती हूँ तुझे
तेरी याद संजोते -संजोते
बहुत थक गयी हूँ।
तुमने तो एक झटके में
डाली के पत्ते सदृश
अलग कर दिया
लेकिन तेरा स्पर्श
आज भी तेरी उपस्थिति
दर्ज करा जाती है।
तेरी याद में
आखों से बहते अश्रु
आज भी तेरी
बेरूखी जता जाती है
तुम्हारे दूर जाने का अहसास
आज भी ताजा है
जो उम्मीद जगाते हैं
तेरे लौट आने का
तुमने कहा जरुर था मुझसे
भुल जाना मुझे
लेकिन कहाँ भूल पायी हूँ
आज भी तुझे
अब कभी मत कहना मुझसे
कि भूल जाना मुझे।

डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर


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