रविवार, 19 अगस्त 2018

मेरे मीत

ओ मेरे मीत
अब तो मेरी आहें सुन लो।
शब्द हो गये खंजर
हृदय हो गये बंजर
अब तो उन पर उग आने दो।
करुणा बह रही आँखों में
बस टीस बची है हृदय में
अब तो राह दिखा दो ।
हुई प्रार्थना व्यर्थ
यह जीवन लगता निरर्थक
पतझण के इस मौसम में
नये कोपल खिल जाने दो।
पल -पल बीत रहा जैसे
युग -युग प्रतिपल प्रतिक्षण
मत रोको मुझे अब
अपने शरण में आने दो।
भूल भूलैया है मोह -माया
राग -विराग, आमोद -प्रमोद
अब सब कुछ तज मुझे
इस जहाँ से जाने दो।

डॉ. अनिता सिंह
19/8/2018

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