सोमवार, 11 सितंबर 2023

स्त्री

(1)स्त्री 

जब मैं आईने के 
सामने खड़ी होती हूँ 
तब मुझे एक चिर- परिचित 
स्त्री दिखाई देती है ।
जो सारे बंधनों को तोड़कर 
खुल कर जीना चाहती है ।
कभी-कभी अपने अल्लहड़पन
 में बहकना चाहती है।
 जिस बचपन को छोड़ दिया है पीछे
उस बचपन को चहकना चाहती है।
 सारी दुनिया घूम फिर कर
 आसियाने में लौटना चाहती है।
 कह दे जिससे मन की हर पीड़ा
 ऐसे साथी को ढूंढना चाहती है।
 आईने के सामने खड़ी होकर
 अब उस चिर-परिचित स्त्री से 
नजरें चुराती हूँ।
 पता नहीं क्यों
 उसके सामने ठहर नहीं पाती हूँ।

डॉ.अनिता सिंह 


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