रविवार, 4 फ़रवरी 2018

पत्थर बन जाऊँ

काश! तुम्हारी तरह मैं भी
पत्थर बन जाऊँ।
तुम हो मेरी तरह बेचैन
और मैं तुमको तड़पाऊँ।

समाकर तेरी साँसों में
तेरे दिल को भी धड़काऊँ।
बेचैन हो तुम खोजो मुझको
मैं खुशबू सी उड़ जाऊँ।

हर पथ में तुम तलाशो मुझे
पर मैं ना तुझे नज़र आऊँ।
हो जाए गर तुमसे सामना
बिन बोले ही मैं भी आगे बढ़ जाऊँ।

बंद आँखों से जब महसूस करो तुम
मैं आँखों से अश्रु बन ढुलक जाऊँ।
ख्वाबों जब तुम मुझे प्यार करो
तेरे बाहों से परे मैं भी हो जाऊँ।

काश! तुम्हारी तरह मैं भी
पत्थर बन जाऊँ।
फिर कभी ना तुझे याद करूँ
ना फिर तेरी याद में
नयन नीर छलकाऊँ।
काश!.....................।

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