गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

बेपनाह.......

दर्द से तपते बंजर में
शीतल ठंडक सी है तेरी याद।
मैं ओढ़ा देना चाहती हूँ
तुम्हें अपनी चाहत की चादर।
चुपके से थाम लेती हूँ
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में।
तुम जानते नहीं हो
मेरे दिल में छिपा एक राज
जो तुम्हें चाहता है बेपनाह..........।

डॉ. अनिता सिंह

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