रविवार, 11 फ़रवरी 2018

अश्रु अनमोल

काश! तुम मेरे अश्रुओं को देख पाते।
जो मन में छिपी मेरी पीड़ा को
कैसे चक्षु द्वार से हैं बाहर लाते।

मेरे मन का सागर
कुछ पल के लिए रिक्त हो जाता है।
मन में चुभा हुआ काँटा
जब तरल रूप में बह जाता है।

ना जाने ये क्या करते
जब मूल्य इनका तुम समझ पाते।
देख नयनों के इस सागर को
शायद तुम विचलित हो जाते ।

तेरे लिए भले इनका है नहीं कोई मोल।
तेरी यादों में निकले ये मेरे हैं अश्रु अनमोल।

डॉ. अनिता सिंह

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