गुरुवार, 22 मार्च 2018

मीत

मीला था कोई मीत
मुझे जिंदगी की राह में।
कभी समझा नहीं मुझे
फिर भी बसा है मेरे ख्याल में ।
दिल की धड़कने शोर करती हैं
खामोशियाँ है जुबान में
निहारतें हैं एक दूजे को
बस नजरों से ही मुलाकात में ।
समझते हैं मन के भाव
बदले हुए वक्त और हालात में ।
मन की मन में ही लिए
उलझते हैं इधर -उधर की बात में।
काश! समझ पाता वो मुझे
जो रहता है मेरे ख्वाब में।
बाँट सकते सुख-दुख
एक दूजे के साथ में ।

डॉ. अनिता सिंह

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