मंगलवार, 6 मार्च 2018

ख्वाबों में

मेरे ख्वाबों में जब से तुम आने लगे,
दिल ही दिल में मुझे तुम भाने लगे।

मेरा सब कुछ सही और सलामत ही था,
फिर मुझे क्यों लगा कुछ चुराने लगे।

जब से तेरी नज़रों से है मेरी नजरें मिली,
तब से मौन ही मौन बतियाने लगे।

इक लहर -सी मेरे तन-वदन में उठी,
तेरी हल्की छुअन भी चौकाने लगे।

हँस पड़ी खिल-खिलाकर खामोशी मेरी,
मेरे दिल में जगह तुम बनाने लगे।

तुझसे मिलने का मुझ पर असर यूँ हुआ,
तुम हमीं-से-हमीं को चुराने लगे।

क्यों हो गये बेवफा इस तरह............
तेरी मुस्कराहट भी मुझे तड़पाने लगे।

जाने को तो, तुम चले ही गये,
मगर ख्वाबों में अपने डुबाने लगे।

जाने किस राह से आ जाओ तुम,
इसलिए हर ओर हम नजरे बिछाने लगे।

तुमने तो सदैव किया है मायूस हमको,
फिर भी हम रिश्ता निभाने लगे।

तुम्हारे दर्द की दौलत को संभाला इस कदर,
अपने साये से भी उसको बचाने लगे।

तेरे इंतजार में हम हो गये हैं ऐसे पागल,
कि हर मौसम को तेरी पहचान बताने लगे।

इस तरह बस गये हो ख्वाबों -ख्यालों में तुम,
हर तरफ तुम-ही-तुम नज़र आने लगे।

डॉ. अनिता सिंह

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