वृद्धाश्रम
ऐसा क्या गुनाह किया कि,
सबने मुझे छोड़ दिया।
पाला था जिसे प्यार से इतना,
उसने ही दिल तोड़ दिया।
परिवार से ही खुशियाँ थी,
पर परिवार ने ही मुंह मोड़ लिया।
कहाँ गए संस्कारों के मोती,
क्यों सबने उसे बिखेर दिया।
कहाँ रह गयी परवरिश में कमी,
जो अपनों ने ही छोड़ दिया।
जहाँ बसती थी खुशियाँ हर दिन,
वह निकेतन सबने तोड़ दिया।
जिसका भगवान के बाद दूजा स्थान,
उन्हें क्यों वृद्धाश्रम में ढकेल दिया।
बना छत्र छाया यह वृद्धाश्रम,
जिसने टूटे दिलों को जोड़ दिया।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ)
सोमवार, 30 नवंबर 2020
रविवार, 29 नवंबर 2020
प्रार्थना
प्रार्थना
जिसका गुढ़ अर्थ है वह शब्द है प्रार्थना ।
जो ईश्वर को नमन है वही स्वर है प्रार्थना।
ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास है प्रार्थना।
मानव की करूण पुकार है प्रार्थना।
हृदय का निर्मल प्रवाह है प्रार्थना।
याचना के स्वर की आवाज है प्रार्थना।
दुखों में व्याकुल पुकार है प्रार्थना ।
सुखों में मन का उल्लास है प्रार्थना |
वेदना में सुखद अनुभूति है प्रार्थना ।
दिल के आहों की तृप्ति है प्रार्थना ।
ईश्वर के समक्ष मनुष्य का प्रश्न है प्रार्थना।
सुखद अनुभूति का ही प्रतिउत्तर है प्रार्थना।
निराकार को पाने दिव्य दृष्टि है प्रार्थना ।
सबमें समाया वही सृष्टि है प्रार्थना ।
डॉ.अनिता सिंह
जिसका गुढ़ अर्थ है वह शब्द है प्रार्थना ।
जो ईश्वर को नमन है वही स्वर है प्रार्थना।
ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास है प्रार्थना।
मानव की करूण पुकार है प्रार्थना।
हृदय का निर्मल प्रवाह है प्रार्थना।
याचना के स्वर की आवाज है प्रार्थना।
दुखों में व्याकुल पुकार है प्रार्थना ।
सुखों में मन का उल्लास है प्रार्थना |
वेदना में सुखद अनुभूति है प्रार्थना ।
दिल के आहों की तृप्ति है प्रार्थना ।
ईश्वर के समक्ष मनुष्य का प्रश्न है प्रार्थना।
सुखद अनुभूति का ही प्रतिउत्तर है प्रार्थना।
निराकार को पाने दिव्य दृष्टि है प्रार्थना ।
सबमें समाया वही सृष्टि है प्रार्थना ।
डॉ.अनिता सिंह
शनिवार, 10 अक्टूबर 2020
प्रसून
प्रसून
○○○○○○
यह कैसा आकर्षण है तेरा प्रसून ।
बार- बार निहारती हूँ
हर्षित करती है तेरी सुंदरता ।
बंद पलकों से भी
महसूस करती हूँ तेरी सुषमा ।
स्पर्श करती हूँ
तेरी मखमली कोमलता ।
खिला- खिला मनभावन है
तेरा मुस्काता रूप ।
तुम तो रूपसी हो
धरा के श्रृंगार स्वरूप ।
अलग-अलग है रूप तुम्हारा
सदियों की पहचान पुरानी है ।
सतरंगी रंगों से सुसज्जित
सुरभि जानी पहचानी है ।
कहूँ कहाँ तक तेरी महिमा
तू सृष्टि की अनिद्य सौंदर्य निराली है ।
कोशिश करती हूँ पढ़ने की
पर तू उलझाती जाती है।
गुम हो जाती हूँ तेरी सुंदरता में
तू उलझी पहेली बन जाती है ।
भौरों को मकरंद मिले
तुझे तितली भी देख हर्षाती हैं ।
कवि हृदय की कविता बन
तू उर में पलती जाती हो।
चित्रकार की कूची से
कैनवास पर सजती जाती हो।
प्रेमी के प्रिय की सौगात बन
तुम इठलाती- इतराती हो ।
देवालय की प्रतिमा पर भी तो
तुम अपना ही अधिकार जताती हो।
वीरों की मृत शैया पर आकर
तुम भी तो शोक मनाती हो ।
हे प्रसून! तुम ऐसी हो कि
सबके मन को भाती हो ।
डॉ.अनिता सिंह
मंगलवार, 29 सितंबर 2020
जीवन
जीवन
जीवन क्या है?
एक सपना है।
जरा ध्यान से देखो,
कौन अपना है।
बचपन यदि साथी है
तो, बालपन तक।
यौवन यदि साथी है तो,
उम्र के एक पहर तक।
बुढ़ापा यदि साथी है तो,
अपने शहर तक।
परिवार यदि साथी है तो,
अपने घर तक।
रिश्तेदार यदि साथी हैं तो,
श्मशान तक।
बेटा अगर साथी है तो,
अग्निदान तक।
इसके बाद कौन तेरा,
फिर तो जीवन का नया सबेरा।
डॉ.अनिता सिंह
जीवन क्या है?
एक सपना है।
जरा ध्यान से देखो,
कौन अपना है।
बचपन यदि साथी है
तो, बालपन तक।
यौवन यदि साथी है तो,
उम्र के एक पहर तक।
बुढ़ापा यदि साथी है तो,
अपने शहर तक।
परिवार यदि साथी है तो,
अपने घर तक।
रिश्तेदार यदि साथी हैं तो,
श्मशान तक।
बेटा अगर साथी है तो,
अग्निदान तक।
इसके बाद कौन तेरा,
फिर तो जीवन का नया सबेरा।
डॉ.अनिता सिंह
सोमवार, 31 अगस्त 2020
प्राइवेट स्कूल के शिक्षक की व्यथा
प्राइवेट स्कूल
--‐-------
प्राइवेट स्कूल की व्यथा वह
नहीं समझ है सकता ।
जो सरकारी पैसे से है
पल्लवित -पुष्पित होता ।
कोरोना के खतरे के चलते बच्चों को
पढ़ाते हैं हम शिक्षकऑनलाइन ।
दिनभर मोबाइल पर माथापच्ची कर
देते हैं हम गाइड लाइन ।
शिक्षा ही नहीं संस्कारों के लौ भी
हम शिक्षक जगाते हैं ।
अभिभावकों से मिन्नत कर बच्चों को
ऑनलाइन बुलाते हैं ।
फिर भी शिक्षक की मेहनत को सभी ने नजरअंदाज किया ।
बच्चों की फीस न पटा कर इनके
पेट पर लात मार दिया ।
प्राइवेट स्कूलों की नहीं है
कोई मद और कमाई।
बच्चों के फीस से है होती इनके
तनख्वाह की भरपाई ।
इनकी मेहनत का अंदाजा आपको
कभी नहीं हो सकता ।
दिन भर मोबाइल कंप्यूटर के साथ
टीचिंग लर्निंग को अपनाता ।
कभी व्हाट्सएप ,कभी यूट्यूब चलाते हैं
सिग्नल नहीं मिले तब भी हम पढ़ाते हैं ।
पारिवारिक सुख संबंधों को ताक पर
रखकर कराते हैं पढ़ाई ।
सी बी एस ई के नियमानुसार चलते हैं
हम शिक्षक भाई ।
कहीं कोई कमी न रह जाए
ऑनलाइन पढ़ाई में ।
इसलिए पीडीएफ एवं वीडियो बनाने में
लगा देते हैं बची खुची कमाई ।
शिक्षक के मेहनत को सब ने
नजरअंदाज कर दिया है।
बच्चों को आॅनलाइन पढ़ाने में
हमने की जान लगा दिया ।
फिर भी पचास में से पच्चीस बच्चे ही
सिर्फ आते हैं ऑनलाइन ।
फिर भी इन के हित को ध्यान में रखकर
पढ़ाते हैं हम शिक्षक भाई ।
कोरोना में घर बैठकर भी
ज्ञान का दिया जलाते हैं।
हम शिक्षक बच्चों का भविष्य
सुधारने हेतु ऑनलाइन पढ़ाते हैं ।
कोरोना के संकट में सब कुछ
उथल -पुथल हो गया ।
शिक्षक का जीवन भी इसमें
कहीं बिखर गया ।
अब तक भविष्य निर्माता शिक्षकों की
कहीं किसी को सुध नहीं आई ।
पेट भरे तो भरे कैसे तनख्वाह के साथ
ट्यूशन की भी बंद है कमाई।
माता -पिता ,बीवी -बच्चे
सब लगाए आस हैं ।
दिन भर मेहनत करके भी
हम शिक्षक आज उदास हैं।
बच्चों के भविष्य सुधारने वालों का
भविष्य अंधकार में है ।
तनख्वाह के बिना विवश ,लाचार
प्राइवेट स्कूल का शिक्षक
कोरोना काल में है ।
डॉ .अनिता सिंह
--‐-------
प्राइवेट स्कूल की व्यथा वह
नहीं समझ है सकता ।
जो सरकारी पैसे से है
पल्लवित -पुष्पित होता ।
कोरोना के खतरे के चलते बच्चों को
पढ़ाते हैं हम शिक्षकऑनलाइन ।
दिनभर मोबाइल पर माथापच्ची कर
देते हैं हम गाइड लाइन ।
शिक्षा ही नहीं संस्कारों के लौ भी
हम शिक्षक जगाते हैं ।
अभिभावकों से मिन्नत कर बच्चों को
ऑनलाइन बुलाते हैं ।
फिर भी शिक्षक की मेहनत को सभी ने नजरअंदाज किया ।
बच्चों की फीस न पटा कर इनके
पेट पर लात मार दिया ।
प्राइवेट स्कूलों की नहीं है
कोई मद और कमाई।
बच्चों के फीस से है होती इनके
तनख्वाह की भरपाई ।
इनकी मेहनत का अंदाजा आपको
कभी नहीं हो सकता ।
दिन भर मोबाइल कंप्यूटर के साथ
टीचिंग लर्निंग को अपनाता ।
कभी व्हाट्सएप ,कभी यूट्यूब चलाते हैं
सिग्नल नहीं मिले तब भी हम पढ़ाते हैं ।
पारिवारिक सुख संबंधों को ताक पर
रखकर कराते हैं पढ़ाई ।
सी बी एस ई के नियमानुसार चलते हैं
हम शिक्षक भाई ।
कहीं कोई कमी न रह जाए
ऑनलाइन पढ़ाई में ।
इसलिए पीडीएफ एवं वीडियो बनाने में
लगा देते हैं बची खुची कमाई ।
शिक्षक के मेहनत को सब ने
नजरअंदाज कर दिया है।
बच्चों को आॅनलाइन पढ़ाने में
हमने की जान लगा दिया ।
फिर भी पचास में से पच्चीस बच्चे ही
सिर्फ आते हैं ऑनलाइन ।
फिर भी इन के हित को ध्यान में रखकर
पढ़ाते हैं हम शिक्षक भाई ।
कोरोना में घर बैठकर भी
ज्ञान का दिया जलाते हैं।
हम शिक्षक बच्चों का भविष्य
सुधारने हेतु ऑनलाइन पढ़ाते हैं ।
कोरोना के संकट में सब कुछ
उथल -पुथल हो गया ।
शिक्षक का जीवन भी इसमें
कहीं बिखर गया ।
अब तक भविष्य निर्माता शिक्षकों की
कहीं किसी को सुध नहीं आई ।
पेट भरे तो भरे कैसे तनख्वाह के साथ
ट्यूशन की भी बंद है कमाई।
माता -पिता ,बीवी -बच्चे
सब लगाए आस हैं ।
दिन भर मेहनत करके भी
हम शिक्षक आज उदास हैं।
बच्चों के भविष्य सुधारने वालों का
भविष्य अंधकार में है ।
तनख्वाह के बिना विवश ,लाचार
प्राइवेट स्कूल का शिक्षक
कोरोना काल में है ।
डॉ .अनिता सिंह
रविवार, 10 मई 2020
मैं और मेरी माँ
मैं और मेरी माँ
मैं और मेरी माँ का रिश्ता अटूट ।
जिसमें नहीं कोई डाल सकता फूट।
माँ की ममता का मीठा अहसास ।
कर जाता मुझे हरदम उदास ।
काश मैं बाँट सकती माँ का दर्द ।
दुखों को उठा लेती बनकर हमदर्द।
समझा पाती सबको उनकी पीड़ा ।
उनके अरमानों को देती कोई दिशा।
उनके चेहरे पर ला सकती खुशियाँ ।
बनकर उनकी अच्छी बिटिया ।
तमन्ना है मेरी हर रात हो उनकी दिवाली ।
हर दिन में हो होली की गुलाली ।
हर शाम हो उनकी सुरमई ।
हर सुबह हो उनकी सतरंगी ।
मैं और मेरी माँ रहते हरदम साथ ।
उनके हाथों में रहता सदैव मेरा हाथ ।
डॉ . अनिता सिंह
मैं और मेरी माँ का रिश्ता अटूट ।
जिसमें नहीं कोई डाल सकता फूट।
माँ की ममता का मीठा अहसास ।
कर जाता मुझे हरदम उदास ।
काश मैं बाँट सकती माँ का दर्द ।
दुखों को उठा लेती बनकर हमदर्द।
समझा पाती सबको उनकी पीड़ा ।
उनके अरमानों को देती कोई दिशा।
उनके चेहरे पर ला सकती खुशियाँ ।
बनकर उनकी अच्छी बिटिया ।
तमन्ना है मेरी हर रात हो उनकी दिवाली ।
हर दिन में हो होली की गुलाली ।
हर शाम हो उनकी सुरमई ।
हर सुबह हो उनकी सतरंगी ।
मैं और मेरी माँ रहते हरदम साथ ।
उनके हाथों में रहता सदैव मेरा हाथ ।
डॉ . अनिता सिंह
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020
पिता
प्रखर हैं, आलोकित हैं, देदीप्यमान हैं पिता ।
शांत हैं शीतल हैं, प्रकाशमान हैं पिता।।
सरल हैं गंभीर हैं, एकसार हैं पिता ।
स्नेह हैं, बंधन हैं, प्यार हैं पिता ।।
आराध्य हैं,उपासक हैं,भगवान हैं पिता।
जीवन हैं, संभल हैं, सम्मान हैं पिता ।।
घर हैं, परिवार हैं, संसार हैं पिता ।
छत हैं, छाया हैं, सहारा हैं,पिता ।।
पालन हैं, पोषण हैं, परिवार हैं, पिता ।
शक्ति हैं, भक्ति हैं, संस्कार हैं, पिता ।।
घने अंधेरे के सम्मुख चमकती धूप हैं पिता ।
जीवन में आती रोशनी के सदृश हैं पिता ।।
पिता हैं तो सर्वस्य मान सम्मान हैं ।
पिता से ही आन बान और शान हैं ।।
पिता हैं तो बच्चों का जीवन चाँदनी रात हैं ।
पिता से ही खुशहाल सारा परिवार हैं ।।
पिता बगैर जीवन का कोई अर्थ नहीं ।
पिता हैं तो बच्चों का जीवन कभी व्यर्थ नहीं ।।
डाॅ. अनिता सिंह
शांत हैं शीतल हैं, प्रकाशमान हैं पिता।।
सरल हैं गंभीर हैं, एकसार हैं पिता ।
स्नेह हैं, बंधन हैं, प्यार हैं पिता ।।
आराध्य हैं,उपासक हैं,भगवान हैं पिता।
जीवन हैं, संभल हैं, सम्मान हैं पिता ।।
घर हैं, परिवार हैं, संसार हैं पिता ।
छत हैं, छाया हैं, सहारा हैं,पिता ।।
पालन हैं, पोषण हैं, परिवार हैं, पिता ।
शक्ति हैं, भक्ति हैं, संस्कार हैं, पिता ।।
घने अंधेरे के सम्मुख चमकती धूप हैं पिता ।
जीवन में आती रोशनी के सदृश हैं पिता ।।
पिता हैं तो सर्वस्य मान सम्मान हैं ।
पिता से ही आन बान और शान हैं ।।
पिता हैं तो बच्चों का जीवन चाँदनी रात हैं ।
पिता से ही खुशहाल सारा परिवार हैं ।।
पिता बगैर जीवन का कोई अर्थ नहीं ।
पिता हैं तो बच्चों का जीवन कभी व्यर्थ नहीं ।।
डाॅ. अनिता सिंह
सोमवार, 6 अप्रैल 2020
कोरोना से लाभ
कोरोना से लाभ
शायद यह शीर्षक पढ़कर आप चौंक जाएँगे और कहेंगे कि जिस कोरोना ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचाकर रखा है उससे क्या लाभ हो सकता है? लेकिन हैं बहुत सारे लाभ। भले ही कोरोना ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में लिया है और जान बचाने के लिए शहर -शहर लाॅकडाउन है। सबसे पहले तो हमें खुद को जानने का मौका मिला है। आज अखबार पढ़ते हुए मन सोचने पर विवश हो गया है कि जिस कचरे वाले को हम सिर्फ उसकी गाड़ी की आवाज से पहचानते हैं और आवाज सुनते ही भागते हैं कचरा गाड़ी में डालने। हम आप इतनी जल्दी में रहते हैं कि धन्यवाद कहना तो दूर हम तो कचरे वाले का शक्ल भी नहीं देखते हैं। परंतु आज कोरोना के कारण जहाँ सब जगह लाॅकडाउन है वहीं ये सफाईकर्मी देवदूत बने सभी मोहल्ले की सफाई कर रहे हैं और लोगों को सोचने पर विवश कर रहें हैं कि इनके साफ सफाई के कारण ही हम सुरक्षित है। इसी परिणाम है कि पंजाब के नाभा जिले के लोग सफाईकर्मियों पर फूल बरसाकर उनका स्वागत कर रहें हैं। यह खुशी की बात है कि इस मुश्किल संकट की घड़ी में लोग मानवता का परिचय दे रहें हैं और कोरोना के खिलाफ जंग में हिस्सा लेने वालों का सम्मान कर रहें हैं। चाहे वह पुलिस, डाॅक्टर,नर्स,दूधवाला,सब्जीवाला,पेपरवाला,
समाजसेवी सभी सम्मान के योग्य है जो अपनी जान की परवाह किए बिना सेवा कार्य में लगे हैं।
डॉ अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
शायद यह शीर्षक पढ़कर आप चौंक जाएँगे और कहेंगे कि जिस कोरोना ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचाकर रखा है उससे क्या लाभ हो सकता है? लेकिन हैं बहुत सारे लाभ। भले ही कोरोना ने पूरी दुनिया को अपने चपेट में लिया है और जान बचाने के लिए शहर -शहर लाॅकडाउन है। सबसे पहले तो हमें खुद को जानने का मौका मिला है। आज अखबार पढ़ते हुए मन सोचने पर विवश हो गया है कि जिस कचरे वाले को हम सिर्फ उसकी गाड़ी की आवाज से पहचानते हैं और आवाज सुनते ही भागते हैं कचरा गाड़ी में डालने। हम आप इतनी जल्दी में रहते हैं कि धन्यवाद कहना तो दूर हम तो कचरे वाले का शक्ल भी नहीं देखते हैं। परंतु आज कोरोना के कारण जहाँ सब जगह लाॅकडाउन है वहीं ये सफाईकर्मी देवदूत बने सभी मोहल्ले की सफाई कर रहे हैं और लोगों को सोचने पर विवश कर रहें हैं कि इनके साफ सफाई के कारण ही हम सुरक्षित है। इसी परिणाम है कि पंजाब के नाभा जिले के लोग सफाईकर्मियों पर फूल बरसाकर उनका स्वागत कर रहें हैं। यह खुशी की बात है कि इस मुश्किल संकट की घड़ी में लोग मानवता का परिचय दे रहें हैं और कोरोना के खिलाफ जंग में हिस्सा लेने वालों का सम्मान कर रहें हैं। चाहे वह पुलिस, डाॅक्टर,नर्स,दूधवाला,सब्जीवाला,पेपरवाला,
समाजसेवी सभी सम्मान के योग्य है जो अपनी जान की परवाह किए बिना सेवा कार्य में लगे हैं।
डॉ अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
दीया
दीया
आओ सब मिलकर दीया जलाते हैं।
उत्साह, उम्मीद, उमंग को लाते हैं ।
एकता, अखंडता के नाम पर
जननी जन्मभूमि को चढ़ाते हैं।
आओ सब......................
संकल्प, संयम, सम्मान के साथ
सकारात्मक सोच को बुलाते हैं।
सेवा, संघर्ष, समर्पण के साथ चल
प्रेरणा के प्रतीक दीपक को शीश झुकाते हैं।
आओ सब मिलकर दीया जलाते हैं।
आओ सब मिलकर दीया जलाते हैं।
उत्साह, उम्मीद, उमंग को लाते हैं ।
एकता, अखंडता के नाम पर
जननी जन्मभूमि को चढ़ाते हैं।
आओ सब......................
संकल्प, संयम, सम्मान के साथ
सकारात्मक सोच को बुलाते हैं।
सेवा, संघर्ष, समर्पण के साथ चल
प्रेरणा के प्रतीक दीपक को शीश झुकाते हैं।
आओ सब मिलकर दीया जलाते हैं।
गुरुवार, 26 मार्च 2020
कैसे सम्भालूँ
कैसे सम्भालूँ अपने आप को
सम्भलने नहीं देते हो तुम।
तेरी यादों का गुलदस्ता बसा है मेरे दिल में
लेकिन उसको खिलने नहीं देते हो तुम।
तेरी एक झलक से ही बेकाबू हो जाता है दिल ।
लेकिन मेरे दिल को धड़कने नहीं देते हो तुम।
चाहती हूँ दूर चली जाऊँ तेरी यादों की घरौदें से
पर यादों से बाहर निकलने नहीं देते हो तुम।
बहुत तर्क होती है दिल और दिमाग में
दिल को कहीं और भटकने नहीं देते हो तुम।
तेरी नफरतों को लेकर चलूँ जिस राह पर
उस राह पर भी चलने नहीं देते हो तुम।
बदल देना चाहती हूँ अपने आपको मैं
लेकिन बदलने भी नहीं देते हो तुम।
चाह है कि दिल में तेरे जगह पाऊँ
पत्थर दिल को अपने पिघलने नही देते हो तुम ।
हैरान परेशान हूँ अपनी जिंदगी से बहुत
पर इन परेशानियों से उबरने नहीं देते हो तुम।
फैली है हर तरफ तेरी यादों की खुशबू
चाहूँ भी तो भूलने नहीं देते हो तुम।
जीना नहीं चाहती तुमसे अलग होकर
मगर चाहत ऐसी की मरने नहीं देते हो तुम।
डॉ. अनिता सिंह
सम्भलने नहीं देते हो तुम।
तेरी यादों का गुलदस्ता बसा है मेरे दिल में
लेकिन उसको खिलने नहीं देते हो तुम।
तेरी एक झलक से ही बेकाबू हो जाता है दिल ।
लेकिन मेरे दिल को धड़कने नहीं देते हो तुम।
चाहती हूँ दूर चली जाऊँ तेरी यादों की घरौदें से
पर यादों से बाहर निकलने नहीं देते हो तुम।
बहुत तर्क होती है दिल और दिमाग में
दिल को कहीं और भटकने नहीं देते हो तुम।
तेरी नफरतों को लेकर चलूँ जिस राह पर
उस राह पर भी चलने नहीं देते हो तुम।
बदल देना चाहती हूँ अपने आपको मैं
लेकिन बदलने भी नहीं देते हो तुम।
चाह है कि दिल में तेरे जगह पाऊँ
पत्थर दिल को अपने पिघलने नही देते हो तुम ।
हैरान परेशान हूँ अपनी जिंदगी से बहुत
पर इन परेशानियों से उबरने नहीं देते हो तुम।
फैली है हर तरफ तेरी यादों की खुशबू
चाहूँ भी तो भूलने नहीं देते हो तुम।
जीना नहीं चाहती तुमसे अलग होकर
मगर चाहत ऐसी की मरने नहीं देते हो तुम।
डॉ. अनिता सिंह
बुधवार, 1 जनवरी 2020
नया साल
जनवरी नये खिलते फूलों की
खुशबू जैसा लगता है।
उत्साह उमंग से भर कर
जीवन चलना शुरू करता है।
फरवरी सोचते हैं अभी तो शुरू हुआ है साल।
कुहरे- कुहरे में दिला जाता है बसंत की याद।
मार्च थोड़ी तपिश और थोड़ा
पसीना छोड़ जाता है।
जिंदगी पटरी पर नहीं आई
यह फीक्र भी कराता है।
अप्रैल के साथ शुष्क सा यथार्थ आता है।
जो कोमल इरादे की पत्तियों को झुलसाता है।
मई जब सामने आता है,
धूल, धूप और गर्मी साथ लाता है ।
समय धीरे- धीरे निकल रहा है
यह भी याद दिलाता है।
जून थोड़ी बेचैनी थोड़ा उमस के साथ आता है।
आधे साल के बचे होने का एहसास दिलाता है।
जुलाई जब सामने बरसात में नहाता है।
कशमकश के साथ वादों को याद दिलाता है।
अगस्त से आरम्भ हो जाता है वर्ष का ढलान।
जिसमें पहली बार शामिल होता है
उदास खयाल।
सितम्बर थोड़ा सहारा देता है तसल्ली भी
कि बहुत कुछ किया जा सकता है अभी भी।
अक्टूबर साथ माँ दुर्गा और
लक्ष्मीको लेकर आता है।
याद दिलाता हुआ झूमकर सारे उत्सव मनाता है।
नवम्बर से ही आरम्भ हो जाता है विदा गीत।
कोमल धूप में लिपटा चिड़ियों का संगीत।
दिसंबर तो आता ही है
नये साल का दरवाजा खोलने।
खुद से किए अनगिनत वादों को भूलने।
पहली बार महसूस होता है निकल गया साल
लेकिन इसके बाद तो फिर आ रहा है नया साल।
जिसमें देख सकेंगे सपने फिर से नये सिरे से।
क्योंकि आ गया है नया साल धीरे से, धीरे से।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
मो. न. 9907901875
खुशबू जैसा लगता है।
उत्साह उमंग से भर कर
जीवन चलना शुरू करता है।
फरवरी सोचते हैं अभी तो शुरू हुआ है साल।
कुहरे- कुहरे में दिला जाता है बसंत की याद।
मार्च थोड़ी तपिश और थोड़ा
पसीना छोड़ जाता है।
जिंदगी पटरी पर नहीं आई
यह फीक्र भी कराता है।
अप्रैल के साथ शुष्क सा यथार्थ आता है।
जो कोमल इरादे की पत्तियों को झुलसाता है।
मई जब सामने आता है,
धूल, धूप और गर्मी साथ लाता है ।
समय धीरे- धीरे निकल रहा है
यह भी याद दिलाता है।
जून थोड़ी बेचैनी थोड़ा उमस के साथ आता है।
आधे साल के बचे होने का एहसास दिलाता है।
जुलाई जब सामने बरसात में नहाता है।
कशमकश के साथ वादों को याद दिलाता है।
अगस्त से आरम्भ हो जाता है वर्ष का ढलान।
जिसमें पहली बार शामिल होता है
उदास खयाल।
सितम्बर थोड़ा सहारा देता है तसल्ली भी
कि बहुत कुछ किया जा सकता है अभी भी।
अक्टूबर साथ माँ दुर्गा और
लक्ष्मीको लेकर आता है।
याद दिलाता हुआ झूमकर सारे उत्सव मनाता है।
नवम्बर से ही आरम्भ हो जाता है विदा गीत।
कोमल धूप में लिपटा चिड़ियों का संगीत।
दिसंबर तो आता ही है
नये साल का दरवाजा खोलने।
खुद से किए अनगिनत वादों को भूलने।
पहली बार महसूस होता है निकल गया साल
लेकिन इसके बाद तो फिर आ रहा है नया साल।
जिसमें देख सकेंगे सपने फिर से नये सिरे से।
क्योंकि आ गया है नया साल धीरे से, धीरे से।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
मो. न. 9907901875
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