मंगलवार, 28 नवंबर 2017

दर्पण

ऐ दर्पण!
लोग कहते हैं कि
तू झूठ नहीं बोलता।
लेकिन तुम केवल
अर्धसत्य हो।
कयोंकि तुम तो सिर्फ
तन को प्रतिबिम्बित करते हो।
मन को नहीं ।
काश! तुम खूबसूरत, बदसूरत
मन में भेद कर पाते।
तुम ईमानदार होते हुए भी
बेईमान क्यों हो?
तुम्हारी ईमानदारी यह है कि
तुम मुझे वैसा ही दिखाते हो
जैसी मैं हूँ।
किन्तु बेईमान इसलिए हो कि
तुम सिर्फ बाहरी सौन्दर्य को दिखाते हो।
मेरे आन्तरिक सौन्दर्य को नहीं।
काश! तुम उन्हें
मेरे आन्तरिक सौन्दर्य को
दिखा पाते तो,
आज वह मेरे होते,
किसी और के नहीं।

डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छ. ग.)

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