जाने क्या -क्या भूल गयी
जाने क्या -क्या याद रखी हूँ।
जो कुछ भी लिखा है मैने
सब तुमसे मिलने के बाद
लिखी हूँ।
कुछ भूली -बिसरी यादें थीं
कुछ तेरी सुंदर सौगाते थीं
आज उनका भी मैं हिसाब
लिखी हूँ।
जो बात दिल की तुमसे कह न सकी
तेरी जुदाई को मैं सह न सकी
तेरी - मेरी बातों को कागज पर आजाद
लिखी हूँ।
तुम रूठ गए, मैं बिखर गई
वक्त निकल गया ,मैं ठहर गई
कुछ पल के तेरे साथों का कोमल अहसास
लिखी हूँ।
कुछ दिल की तनहाई में
कुछ रातों की निरवता में
जो तुम आए ख्वाबों में उन ख्वाबों की तादाद लिखी हूँ।
हर रात तुम्ही तो आते हो
ख्वाबों में प्यार जताते हो
उन प्यारी - प्यारी बातों की आवाज़
लिखी हूँ।
हर लम्हा तेरे जाने के बाद
जब अकेली तन्हा रह जाती हूँ
तब दिल को समझाने कुछ अल्फाज़
लिखी हूँ।
मेरी चाहत की कोई सीमा नहीं
पर तुमको न कभी अहसास हुआ
पर मैं तेरे दिए दर्दों को भी बेहिसाब
लिखी हूँ।
कैसे सम्भालूँ ,कैसे समझाऊँ
काश दिल का दर्द तुझे दिखा पाऊँ
तेरे गम में आए अश्रुओं का सैलाब
लिखी हूँ।
तुम मेरे हो मेरे ही रहोगे
तुम आओगे लौटकर मेरे पास
उम्मीद की किरण से यह अटल विश्वास
लिखी हूँ।
दुनिया चाहे कुछ भी समझे
तेरे - मेरे इस रिश्ते को
मैं अन्नु बस तुमको पाने छोटी सी फरियाद
लिखी हूँ।
डॉ. अनिता सिंह
nice
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