सोमवार, 9 दिसंबर 2019
मैं नहीं जानती
पर मुझे तुमसे मुहब्बत क्यों है
मैं नहीं जानती।
मैने कही थी दिल की बात, तुमने सुना नहीं
फिर तेरा इंतजार क्यों है
मैं नहीं जानती।
तेरे मेरे दरमियाँ है घना फासला
फिर हर पल तेरा अहसास क्यों है
मैं नहीं जानती।
तेरे बिन जिंदगी है उदास सी
पल भर के साथ का अब तक उजास क्यों है
मैं नहीं जानती।
डॉ .अनिता सिंह
9/12/2019
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
अपरिचित
तुम अपरिचित से
कब परिचित बन गए
पता ही नहीं चला
इससे अच्छा होता कि
तुम अपरिचित ही रहते
न परिचित होते
न मेरे दिल में बसते
न तुम्हें पाने की तड़प होती
न आसुओं की छलक होती।
डॉ. अनिता सिंह
गुरुवार, 28 नवंबर 2019
भूल जाना
धीरे- धीरे भूल जाना मुझे
मैं भी भूल जाना चाहती हूँ तुझे
तेरी याद संजोते -संजोते
बहुत थक गयी हूँ।
तुमने तो एक झटके में
डाली के पत्ते सदृश
अलग कर दिया
लेकिन तेरा स्पर्श
आज भी तेरी उपस्थिति
दर्ज करा जाती है।
तेरी याद में
आखों से बहते अश्रु
आज भी तेरी
बेरूखी जता जाती है
तुम्हारे दूर जाने का अहसास
आज भी ताजा है
जो उम्मीद जगाते हैं
तेरे लौट आने का
तुमने कहा जरुर था मुझसे
भुल जाना मुझे
लेकिन कहाँ भूल पायी हूँ
आज भी तुझे
अब कभी मत कहना मुझसे
कि भूल जाना मुझे।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर
रविवार, 17 नवंबर 2019
संत आज के बड़े निराले
गेरूआ है सिर्फ वसन उनका
मन मलिन और काले।
त्याग तपस्या से नाता तोड़ दिया है ।
नैतिकता का उत्तरदायित्व छोड़ दिया है।
राह दिखाने वाले बन गए राह के रोड़े।
गैरिक वस्त्रों की मर्यादा भूलकर
व्यभिचार अनैतिकता में डूबकर
मदिरा के उड़ेल रहें हैं प्याले ।
लोभ -लालच में फँसे हुए हैं
भोग -विलास में डूबे हुए हैं
संपत्ति संग्रह में लिप्त हुए हैं
धर्म के रखवाले।
अच्छे -बुरे की पहचान नहीं है
धर्म का वास्तविक ज्ञान नहीं है
फिर भी प्रवचन करते सांझ सबेरे।
संत -महात्मा के गुणों से कोशो दूर
शानो -शौकत में जीने को मजबूर
अध्यात्म के नाम पर करते चोचले सारे।
धर्म के ठेकेदार बने हैं
जनता को गुमराह किए हैं
अपना उल्लू सीधा करने करते हैं उद्यम सारे।
महिलाओं का यौन शोषण इनका धार्मिक कृत्य है
सलाखों के पीछे जाना इसका प्रमाणित सबूत है
अरबों का व्यापार करते ढोंगी बाबा प्यारे ।
डॉ. अनिता सिंह
शुक्रवार, 8 नवंबर 2019
तुम मेरे ही तो हो
अगर मेरी चाहत में तेरी चाहत
नहीं मिली तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तेरी नजरों ने मेरी नजरें
नहीं पढ़ी तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तेरी धड़कनो ने मेरी धड़कनो का
एहसास नहीं किया तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तेरे दिल ने मेरे दिल की आवाज़
नहीं सुनी तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
जिंदगी की सफर में एक राह पर
साथ नहीं चले तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
तुम प्यार के बदले मुझे नफरत
करते हो तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
मैं करती रहूँगी यूँ ही तुमसे मुहब्बत दिल से
नहीं समझते तो क्या हुआ
तुम मेरे ही तो हो।
डॉ .अनिता सिंह
बिलासपुर छत्तीसगढ़
मंगलवार, 5 नवंबर 2019
प्रेम के प्याले ने
सम्भाल रखी है तेरी तस्वीर
दिल के तहखाने में।
धुँधली नहीं होने दी है
तेरी यादों को
वक्त के पैमाने में।
जाने कितने नाम
जेहन में आकर चले गये
पर तेरे नाम की रोशनाई
मिटने नहीं दी है
तेरी यादों ने।
अधूरे ख्वाबों को
छिपा रखा है
दिल के बंद दरवाजे में।
तेरी पुरानी यादें
अभी भी कैद हैं
दिल के तहखाने में।
बनाना चाहती तुम्हें कृष्ण
पता नहीं तुम बने कि नहीं
पर मुझे राधा बना दिया
तेरे प्रेम के प्याले ने।
डॉ .अनिता सिंह
बिलासपुर छत्तीसगढ़
बुधवार, 11 सितंबर 2019
उम्मीद
जीतनी उम्मीद से
चातक देखता है
बादल को
उतनी ही
उम्मीद से
देखती हूँ
पथ मैं
तेरे आगम की।
डॉ. अनिता सिंह
शनिवार, 31 अगस्त 2019
बेटी
आज बेटी कैसे घृणित
वातावरण में घुट रही है।
भारत जैसे देश में
उसकी अस्मत लुट रही है।
क्यों? बेटी -बहन के रिश्ते
हो गये हैं बेगाने।
करने लगे हैं अनाचार
सब जाने -पहचाने।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर
रविवार, 25 अगस्त 2019
द्रौपदी
बेटियों पर पाबंदी लगाते हो कि
छोटे कपड़े मत पहना करो बाजारों में ।
कैद रहो घर की चारदीवारों में।
द्रौपदी तो लिपटी थी पाँच गज की साड़ी में ।
फिर क्यों लुट गयी थी घर की चारदीवारी में ।
गली -गली में दुशासन की भरमार है ।
फिर भी कहते हो बेटी भारत में आजाद है।
डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर
सोमवार, 15 जुलाई 2019
एक पल
एक पल जो
तुम्हारे और मेरे
बीच से
गुजरा था
कितना
मखमली था
गुजरता है
आज भी
वह पल
पर तुमने
उगा दिए हैं
उस पल पर
नफरतों के
घने जंगल।
डॉ .अनिता सिंह
शनिवार, 13 जुलाई 2019
शिद्दत
जितनी शिद्दत से
देखा था तुमने
मुझे कभी
काश!!!!!
उतनी ही शिद्दत से
रिश्ता भी
निभाया होता
तुमने सभी!
डॉ. अनिता सिंह
13/7/2019
मंगलवार, 2 जुलाई 2019
किताब है तू
किताब है तू
इक धूँधला सा आइना है तू
आधा अधूरा सा मेरा ख्वाब है तू।
वक्त का टूटा लमहा है तू
मेरी आँखों में ठहरा सैलाब है तू।
न जुड़ पाये न अलग हुए
उलझा हुआ सा हिसाब है तू।
गुमनामी की भीड़ में गुम गये हो कहीं
जो गुम गया वही खिताब है तू ।
आती है हर पल तेरी खुशबू
तू ही बेला तू ही गुलाब है तू।
बहुत पढ़ने की कोशिश करती हूँ तुझे
पर धूँधले शब्दों की किताब है तू।
डॉ. अनिता सिंह
शनिवार, 22 जून 2019
वर्षों में
वर्षों में
मैं सपना सुकुमार तुम्हारा
पोषित करती हूँ पलकों में।
बीत रहा है पल पल हर दिन
रहते हो तुम अश्कों में।
तेरे प्रीत में डूब रही हूँ
पिछले कितने वर्षों में।
पल पल देख रही पथ तेरा
क्या आओगे तुम वर्षों में।
मंगलवार, 28 मई 2019
अक्षर
कहाँ कहाँ छिपे रहते हैं अक्षर
होता है इनका मिलन तो शब्द बन जाते हैं अक्षर
जब कागज पर उभर आतें हैं
तब जीवंत बन जातें हैं अक्षर ।
ये खुरदरे अक्षर स्निग्धता का एहसास कराते हैं
अक्षरों की सुनो ये विश्वास दिलातें हैं।
कभी अजान की ध्वनियों में गुँजते
कभी प्रार्थना के मंत्र बन जाते अक्षर ।
कभी बजते हैं मधुर घंटी बनकर
कभी युद्ध वाद्य बन चहुँ ओर पसर जाते अक्षर।
अक्षरों में ही तो छिपा है पीड़ा और प्रीत
अक्षर ही निभा जाते हैं नफरत की रीत।
अक्षरों की सुनो ये कुछ कहतें हैं
कुछ नयी कुछ पुरानी यादों को बुनते हैं।
इन अक्षरों को जब जब मैं गढ़ती हूँ
तब कुछ अनोखा सा मैं रचती हूँ।
डॉ. अनिता सिंह
28/5/2019
रविवार, 5 मई 2019
शब्द
शब्द सिर्फ शब्दकोश का
श्रृंगार ही नहीं होते हैं ।
शब्दों की अनंत दुनिया में
जब प्रवेश कर जाते हैं।
तब इन्हें असिमित हम पाते हैं
कुछ शब्द तो ख्वाबों से जगाते हैं।
कुछ शब्द आँसू बनकर बह जाते हैं।
कुछ जिस्म को गहरा जख्म दे जाते हैं।
कुछ हौले - हौले से मुस्काते हैं।
कुछ प्रिय की मीठी याद दिलाते हैं।
डॉ. अनिता सिंह
05/05/2019
शनिवार, 13 अप्रैल 2019
फरेब
कैसे करूँ भरोसा हर जगह फरेब दिखता है।
सच दबकर बैठ गया है कोने में
हर जगह झूठ का चौपाल लगता है।
सच डरा सहमा मुरझाया सा
झूठ का फल फलता- फूलता है।
सच कहाँ से लाए कहीं बिकता नहीं
झूठ का दुकान हर जगह लगता है।
डॉ. अनिता सिंह
13/04/2019
रविवार, 24 मार्च 2019
गुलाल
लगा दो गुलाल तुम मुझे
खेलूँ तुझ संग मैं होली ।
है फागुन गुलाल सा खिला
तुम बिन है अधूरी होली।
सारा जहाँ है गुलाल में डूबा
तुम बिन गुलाल का सौन्दर्य कुछ नहीं।
तुम गले लगालो मुझे
पा लूँ मैं मोक्ष यहीं।
बस इसी आस में
मेरे सपने जीवित हैं अभी।
डॉ. अनिता सिंह
21/3/2019
बुधवार, 13 मार्च 2019
अजनबी
क्यों मुझे मिल गये तुम कहानी बनकर।
दिल में बस गए निशानी बनकर ।
रहते हो धड़कनो में जिंदगानी बनकर ।
नयनो से ढुलक जाते हो पानी बनकर ।
नींदों से जगाते हो ख्वाब सुहानी बनकर ।
फिर क्यों सामने आते हो अजनबी बनकर।
डॉ. अनिता सिंह
13/3/2018
रविवार, 17 फ़रवरी 2019
रिक्त स्थान
मेरे जीवन में आए
रिक्त स्थानो की पूर्ति
अब कौन करेगा?
यह प्रश्न
जीवन के पाठ्यक्रम
के बाहर का है।
पूर्ति से पहले
रिक्त स्थान की पहचान
का सवाल है।
जो तुम्हारे जाने से
रिक्त हो गया है।
अब उस रिक्तता की जगह
कोई नहीं ले पा रहा है
जानते हो क्यो?
क्योंकि रिक्त स्थान
भरने के लिए कोई
सटिक उत्तर नही
मिल रहा है
इसलिए आज भी वह स्थान
तुम्हारे लिए रिक्त है,
रिक्त रहेगा
जब तक तुम लौट नहीं आते
प्रभु ...............।
डॉ .अनिता सिंह
17/2/2019
रविवार, 20 जनवरी 2019
सेंध
ओ सेंध लगाकर जाने वाले
कुछ मेरी भी सुनते जाना ।
मेरी सोई धड़कनो को जगाने वाले
एक मधुर गीत तो गुनगुनाना।
रातों को नींदो से जगाने वाले
सुहानी ख्वाब बनकर आना।
निहारती हूँ हर लम्हा पथ तेरा
एक बार लौट आना।
जाना ही चाहते हो तो जाओ
जाते जाते एक बार मुस्कुराना।
गिले शिकवे सब भूला कर
मुझे माफ करते जाना।
डॉ. अनिता सिंह
20/01/2019
सोमवार, 14 जनवरी 2019
जो मिल जाते
जो मिल जाते तुम एक बार,
लेती मैं जी भर के निहार।
रखती हरपल पलकों में तुझे,
कर देती अपना सर्वस्व वार।
हर पीड़ा में पाया तुझको,
दिया तूने है सदैव सहाय।
अहसास है होने का तुम्हारे,
फिर भी मन क्यों है उदास ।
इसमें -उसमें सबमें ढूँढा,
जब बैठी मैं मन हार।
तब तूने अहसास कराया,
मैं सदैव हूँ तेरे साथ।
डॉ. अनिता सिंह
14/01/2019
शनिवार, 5 जनवरी 2019
तुम एक रहस्य हो
तुम एक रहस्य हो
तुम्हें जान नहीं पाती हूँ।
तुम्हें जानना तो चाहती हूँ।
पर पहचान नहीं पाती हूँ।
तुम्हें समझना तो चाहती हूँ।
पर समझ नहीं पाती हूँ।
हर पल महसूस करती हूँ।
पर सदैव अदृश्य पाती हूँ।
दर्द कैसा भी हो।
तुम्हें करीब पाती हूँ।
लगता है हर पल मेरे आस- पास हो।
पर क्यों? पहचान नहीं पाती हूँ।
कितने ही रिश्ते -नाते है।
पर तेरे रिश्ते को सदैव अटूट पाती हूँ।
चाहे सुख हो या दुख ।
सदैव अपनी यादों में तुम्हें सजाती हूँ।
एक उम्मीद की किरण हो तुम ।
इसलिए तो दृढ़ विश्वास जताती हूँ।
तेरी सूरत है बसी दिल में।
लेकिन हर बार नया पाती हूँ।
तुम रहस्य या अनसुलझी पहेली हो।
तभी तो तुम्हें जान नहीं पाती हूँ।
डॉ. अनिता सिंह
05/01/2017