मंगलवार, 30 जनवरी 2018

फरियाद लिखी हूँ

जाने क्या -क्या भूल गयी
जाने क्या -क्या याद रखी हूँ।
जो कुछ भी लिखा है मैने
सब तुमसे मिलने के बाद
लिखी हूँ।

कुछ भूली -बिसरी यादें थीं
कुछ तेरी सुंदर सौगाते थीं
आज उनका भी मैं हिसाब
लिखी हूँ।

जो बात दिल की तुमसे कह न सकी
तेरी जुदाई को मैं सह न सकी
तेरी - मेरी बातों को कागज पर आजाद
लिखी हूँ।

तुम रूठ गए, मैं बिखर गई
वक्त निकल गया ,मैं ठहर गई
कुछ पल के तेरे साथों का कोमल अहसास
लिखी हूँ।

कुछ दिल की तनहाई में
कुछ रातों की निरवता में
जो तुम आए ख्वाबों में उन ख्वाबों की तादाद             लिखी हूँ।

हर रात तुम्ही तो आते हो
ख्वाबों में प्यार जताते हो
उन प्यारी - प्यारी बातों की आवाज़
लिखी हूँ।

हर लम्हा तेरे जाने के बाद
जब अकेली तन्हा रह जाती हूँ
तब दिल को समझाने कुछ अल्फाज़
लिखी हूँ।

मेरी चाहत की कोई सीमा नहीं
पर तुमको न कभी अहसास हुआ
पर मैं तेरे दिए दर्दों को भी बेहिसाब
लिखी हूँ।

कैसे सम्भालूँ ,कैसे समझाऊँ
काश दिल का दर्द तुझे दिखा पाऊँ
तेरे गम में आए अश्रुओं का सैलाब
लिखी हूँ।

तुम मेरे हो मेरे ही रहोगे
तुम आओगे लौटकर मेरे पास
उम्मीद की किरण से यह अटल विश्वास
लिखी हूँ।

दुनिया चाहे कुछ भी समझे
तेरे - मेरे इस रिश्ते को
मैं अन्नु बस तुमको पाने छोटी सी फरियाद
लिखी हूँ।

डॉ. अनिता सिंह

रविवार, 28 जनवरी 2018

चाहने की आदत

अब तुम्हें चाहने की आदत हो गयी है ।
तुम्हें देखूँ या न देखूँ
आँखों में उतारने की आदत हो गयी है।

तुम मुझे देखो या न देखो
मुझे तुमसे नजरें मिलाने की आदत हो गयी है।

किसका कसूर है नहीं जानती
तेरे लिए दिल को धड़कने की आदत हो गयी है।

तुम्हारी खूबी है या मेरी कमी
तुम्हें याद कर आँसू बहाने की आदत हो गयी है।

किसी और की अमानत हो तुम
फिर भी तुम्हें अपनाने की आदत हो गयी है।

तुमसे मिलकर भी कुछ न कह पाना
लबों को मौन ही बतियाने की आदत हो गयी है।

तेरे दिए गम और खुशी के साथ
तेरे ही ख्यालों में खो जाने की आदत हो गयी है।

तेरे मेरे बीच में है मीलों दूरियाँ
फिर भी गले लगाने की आदत हो गयी है।

नहीं जानती तुम्हें चाहती हूँ क्यों ?
इस चाहत को तुमसे छिपाने की आदत हो गयी है।

तोड़ दिया है तुमने हर रिश्ता
फिर भी तुमसे रिश्ता निभाने की आदत हो गयी है।

नहीं जानती तुम मुझे चाहते हो या नहीं
फिर क्यों तुम्हें चाहने की आदत हो गयी है????

डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 25 जनवरी 2018

तुम लौटोगे न............?

मैं तुम्हें मित्रवत चाहती हूँ।
तुम्हारे संग हर्षित होती हूँ,
तुम्हारे ही संग रोती हूँ।

चाहे तुम मुझे उल्लास दो
चाहे तुम मुझे विषाद दो
यह तुम पर निर्भर है।

मेरी चाहत की पराकाष्ठा है
तुम्हारा स्पर्श ।
तेरे चरणों में कर दूँ सब अर्पण।

फिर भी मुझसे बात नहीं करना चाहते तो
कोई बात नहीं ।
मुझे नहीं देखना चाहते तो
कोई बात नहीं ।
तुम्हारे पास मुझे देने के लिए
खुशी नहीं तो कोई बात नहीं ।

मुझे तो तुम्हारा दिया दर्द भी अजीज है
उसी के साथ रोती हूँ, तड़पती हूँ
तुम्हारे लौटने का इंतजार करती हूँ।
तुम लौटोगे न......................??

सोमवार, 22 जनवरी 2018

हक

तुमने मुझे कोई हक तो नहीं दिया
फिर भी हक है मुझे
तेरी मुस्कराहट देख कर मुस्कराने का।

तुम देखकर भी अनदेखा करते हो मुझे
हक है मुझे
तुम्हें देखकर सिर झुकाने का।

गुजरते हो दिल की गली से
फिर क्यों कहते हो नफरत है मुझसे
हक है मुझे
तेरी नफरतों को दिल से लगाने का।

तुम्हारी गुनहगार हूँ मैं तो
दे लो सजा जितनी मुझे देनी है
हक है मुझे
तेरी सजा को आँचल में सजाने का।

तोड़कर सभी रिश्ते
परे कर दिया अपने से मुझे
हक है मुझे
इस खूबसूरत रिश्ते को निभाने का ।

खुदा से माँगा है मैने
तुझे बड़ी मिन्नतों से
हक है मुझे
तुमसे दिल लगाने का।

तुम मेरे हो मेरे ही रहेंगे
हर दुआ में यही माँगती हूँ
हक है मुझे
तेरे करीब आने का
और तुझे गले लगाने का।

डॉ. अनिता सिंह

उँ ऐं सरस्वत्यै नमः

(1)माँ शारदे के चरणों में स्नेह जो लगाता है।
खिल जाएं शब्द चारो ओर यश पाता है।
माँ शारदे तेरी महिमा अपरमपार है,
तेरा आशीर्वाद लेखनी को धनी बना जाता है।

(2)माँ शारदे तेरी महिमा का मैने असर देखा है।
मेरी लेखनी पर तेरी कृपा का लहर देखा है ।
जिसे ढूँढती थी समुद्र की गहराई में ,
अब उन शब्दों को उर में लेते ठहर देखा है।
डॉ. अनिता सिंह

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

निंदा

मेरी निंदा करने वाले तेरा अभिनंदन करती हूँ।
तेरी ही निंदा से मैं हर पलआगे बढ़ती रहती हूँ।

तेरी ही निंदा से मैं आहत भी होती रहती हूँ ।
तभी तो सम्भल -सम्भल कर चलती हूँ ।

तुम सब मेरी निंदा में आकंठ वही पड़े रहते हो ।
पर मै अपनी निंदा सुन पहचान बनाती रहती हूँ।

जब तुम मेरी निंदा का रस ले आनंदित होते हो।
तब मैं कंटको के पथ में भी पथ खोजा करती हूँ।

हे! मेरे निन्दक मैं तेरा अभिवादन उर से करती हूँ।
क्योंकि तेरे ही निंदा से मैं हर पल आगे बढ़ती रहती हूँ.......।
डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

मुक्तक


शहर में हमने हर जगह कोहराम देखा है।
झूठ और बेईमानी का ऊँचा नाम देखा है।
परोपकार करने वाले इंसानों को,
हर वक्त होते बदनाम देखा है ।
डॉ. अनिता सिंह

सोमवार, 15 जनवरी 2018

मुक्तक


प्यास तब थी बहुत अब तो है भी नहीं ।
लाख सागर मिले लेकिन मैं यूँ पीती नहीं ।
अब पपीहे की भाँति मेरी प्यास है
बूंद स्वाति की अब तक मुझे आस है।
डॉ. अनिता सिंह

अपलक

तुम्हें देखते ही हृदय ममुस्कुरा उठता है
लेकिन हृदय की धड़कनो को समेटते हुए
हौले से मुस्कुराती हूँ।
तुम्हारा इंतज़ार करती हूँ
तुम कुछ कहोगे.......।
लेकिन तुम पक्के व्यापारी की तरह
अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हो।
मेरी खुशी अपने पास रख
दर्द देकर चले जाते हो।
और मैं तुम्हें देखती रह जाती हूँ
अपलक.........................।
डॉ. अनिता सिंह

मंगलवार, 9 जनवरी 2018

मुखौटा

मैं जानती हूँ कि
तुमने अपने खूबसूरत चेहरे पर
नफरत का मुखौटा ओढ़ रखा है।
तेरी बोलती आँखें
सब कुछ बयाँ कर जाती है ।
सूरज की राश्मियों के साथ
तेरे स्नेह की किरणें फैल जाती हैं।
चाँद की शीतलता के साथ
रातों को महका जाती हैं।
फिर यह नफरत का मुखौटा क्यों..?

डॉ. अनिता सिंह

सोमवार, 8 जनवरी 2018

गणित


दिल के रिश्तों में भी
गणित का सुत्र लगा गया वो।
जाने क्या जोड़ - घटा कर
मेरी जिंदगी उलझा गया वो।

करके बहुत गुणा - भाग
मुझे हासिए पर बैठा गया वो ।
ले गया मेरी जिंदगी की सारी खुशियाँ
मेरे हिस्से में शुन्य छोड़ गया वो।

एहसासों में भी लाभ - हानि का सौदा कर
परे हट गया मुझे छोड़ कर वो।
दिल की जगह दिमाग का गणित लगाकर
करीब आकर दूर चला गया वो।
डॉ. अनिता सिंह

वो कौन है......?

वो कौन है....?
जो दर्पण बनकर उतर गया मुझमें।
जिसकी चाहत में मैं डूब गयी
और वह उभर गया मुझमें।

वो कौन है?
उसके लिए मैं बेचैन रहती हूँ
वही दर्द भर गया मुझे।

वो कौन है ?
इंसान है पत्थर नहीं समझ पायी
लेकिन जब करीब से गुजारा तो
मेरा बनकर रह गया मुझमें।

वो कौन है?
वो था तो अजब धूप -छाँव सी खुमार थी
अब तो दर्द का मौसम ठहर गया मुझमें।

वो कौन है?
उसकी यादें की शै ऐसी कि
कविता बनकर उतर गया मुझमें ।
डॉ. अनिता सिंह

दर्द

ऐ दर्द तू कितने रूप में रहता है?
किसी के आँखों में आँसू बनकर
किसी के दिल की धड़कन बनकर
किसी के भूख में तड़पकर
हर रिश्ते में रहता है।

तुझसे रिश्ता पुराना है
किसी रांझे की हीर बनकर
किसी ममता की पीर बनकर
मासूम ह्रदय में तू पलता है।

कहीं विवशता में रहकर
कहीं लाचारी में पलकर
फिर भी मौन रहकर सपनों में सजता है।
डॉ. अनिता सिंह

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