रविवार, 28 जनवरी 2018

चाहने की आदत

अब तुम्हें चाहने की आदत हो गयी है ।
तुम्हें देखूँ या न देखूँ
आँखों में उतारने की आदत हो गयी है।

तुम मुझे देखो या न देखो
मुझे तुमसे नजरें मिलाने की आदत हो गयी है।

किसका कसूर है नहीं जानती
तेरे लिए दिल को धड़कने की आदत हो गयी है।

तुम्हारी खूबी है या मेरी कमी
तुम्हें याद कर आँसू बहाने की आदत हो गयी है।

किसी और की अमानत हो तुम
फिर भी तुम्हें अपनाने की आदत हो गयी है।

तुमसे मिलकर भी कुछ न कह पाना
लबों को मौन ही बतियाने की आदत हो गयी है।

तेरे दिए गम और खुशी के साथ
तेरे ही ख्यालों में खो जाने की आदत हो गयी है।

तेरे मेरे बीच में है मीलों दूरियाँ
फिर भी गले लगाने की आदत हो गयी है।

नहीं जानती तुम्हें चाहती हूँ क्यों ?
इस चाहत को तुमसे छिपाने की आदत हो गयी है।

तोड़ दिया है तुमने हर रिश्ता
फिर भी तुमसे रिश्ता निभाने की आदत हो गयी है।

नहीं जानती तुम मुझे चाहते हो या नहीं
फिर क्यों तुम्हें चाहने की आदत हो गयी है????

डॉ. अनिता सिंह

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