सोमवार, 15 जनवरी 2018

मुक्तक


प्यास तब थी बहुत अब तो है भी नहीं ।
लाख सागर मिले लेकिन मैं यूँ पीती नहीं ।
अब पपीहे की भाँति मेरी प्यास है
बूंद स्वाति की अब तक मुझे आस है।
डॉ. अनिता सिंह

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