गुरुवार, 18 जनवरी 2018

निंदा

मेरी निंदा करने वाले तेरा अभिनंदन करती हूँ।
तेरी ही निंदा से मैं हर पलआगे बढ़ती रहती हूँ।

तेरी ही निंदा से मैं आहत भी होती रहती हूँ ।
तभी तो सम्भल -सम्भल कर चलती हूँ ।

तुम सब मेरी निंदा में आकंठ वही पड़े रहते हो ।
पर मै अपनी निंदा सुन पहचान बनाती रहती हूँ।

जब तुम मेरी निंदा का रस ले आनंदित होते हो।
तब मैं कंटको के पथ में भी पथ खोजा करती हूँ।

हे! मेरे निन्दक मैं तेरा अभिवादन उर से करती हूँ।
क्योंकि तेरे ही निंदा से मैं हर पल आगे बढ़ती रहती हूँ.......।
डॉ. अनिता सिंह

8 टिप्‍पणियां:

  1. काफी सुंदर तरह से लिखा गया हैं. बेहतरिन👌👍.

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  2. काफी सुंदर तरह से लिखा गया हैं. बेहतरिन👌👍.

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  3. काफी सुंदर तरह से लिखा गया हैं. बेहतरिन👌👍.

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